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Exclusive Articles written by Ajay Setia

मनमोहन पर जिद्द का इरादा नहीं सोनिया का

Publsihed: 17.Apr.2009, 07:22

अपने मनमोहन पीएम पद की दौड़ में थे भी नहीं। सोनिया ने दौड़ में शामिल किया। तो तुरुप का पत्ता अपने हाथ में रखा। यानी हाथी के दांत दिखाने के और, खाने के और। अपन तुरुप का पत्ता तो बताएंगे ही। उसकी वजह भी बताएंगे। आडवाणी ने भविष्य के सहयोगियों की तलाश शुरू की। तो कांग्रेस भी भविष्य की रणनीति बनाने लगी। पहले बात आडवाणी की। अपन ने कल लिखा ही था- 'यों तो हमलावर का मतलब घबराहट।' आडवाणी पीएम पद पर पहली पसंद बनते दिखे। तो कांग्रेस में खलबली होनी ही थी। अपन वैसे भरोसा नहीं करते। आईबी कभी भरोसे लायक रही भी नहीं। पर आईबी की रपट में यही खुलासा- 'बीजेपी की सीटें कांग्रेस से ज्यादा होंगी।' ऐसा हुआ, तो नए समीकरण उभरेंगे ही। उसी का इशारा आडवाणी ने किया।

यों तो हमलावर का मतलब घबराहट

Publsihed: 16.Apr.2009, 08:05

तो इस बीच सुप्रीम कोर्ट को भी वरुण पर रासुका नहीं जंचा। अब आज यूपी सरकार कोर्ट में क्या कहेगी। अपन को उसी का इंतजार। यों माया सरकार कुछ भी कहे। वरुण की रिहाई दूर नहीं। वरुण का राजनीतिक मकसद पूरा हो चुका। वह क्यों तनाव फैलाने वाली भाषा बोलेंगे। तुजुर्बे से ही सीखता है इंसान। वैसे रविशंकर प्रसाद से पूछो। तो कहेंगे- कई लोग तुजुर्बे से भी नहीं सीखते। वैसे उनने बुधवार को सोनिया के बारे में कहा। पर पहले सोनिया की बात। वह बोली- 'आडवाणी संघ के गुलाम।' यों अपन समझते थे। सोनिया पर्सनल हमले नहीं करेगी। पर सोनिया की घबराहट समझना मुश्किल नहीं। घबराहट की बात बाद में। पहले बात रविशंकर के जवाब की। बोले- 'सोनिया को राजनीतिक समझ नहीं। जो कोई लिखकर दे दे, पढ़ देती हैं।' वैसे रविशंकर ने कोई नई बात तो कही नहीं। यों सोनिया ने भी नई बात नहीं कही। अपन तो 1978 से ही देख रहे।

पीठ पीछे भी जूतम पैजार कम नहीं

Publsihed: 10.Apr.2009, 20:39

जूतेबाजी तो अब चल ही निकली। नया शिकार बने नवीन जिंदल। कांग्रेस की रैली में एक जूता नवीन पर भी चला। पर कोई जूता किसी नेता को लग नहीं रहा। जूतों को भी पसंद नहीं आ रहे नेता। बुश से लेकर जिंदल तक। एक भी नेता को जूता नहीं लगा। पर अपन को डर फ्यूचर का। अब पार्लियामेंट और एसेंबलियों में भी जूते चलेंगे। स्पीकरों को मुश्किल होगी। जूते उतार कर हाल में घुसने का नियम बनाना पडेग़ा। जूतम-पैजार पहले तो सिर्फ कहावत थी। अब उसका प्रेक्टिकल रूप सामने आ गया। जरनैल के जूते ने टाईटलर-सजन का टिकट क्या कटवाया। कांग्रेस में जूतम-पैजार शुरू हो गई। टाईटलर की सज्जनता सामने आ गई। लगे शीला दीक्षित पर भड़ास निकालने। कहा- 'मेरी पार्टी के लोगों ने मौके का फायदा उठाया।' यों सब जानते हैं- टाईटलर का इशारा शीला दीक्षित की तरफ। पर नाम पूछो। तो बोलती बंद। दुश्मनी क्यों मोल लें।

जरनैल का जूता तो चल निकला

Publsihed: 09.Apr.2009, 20:39

मुंतधार अल जैदी का जूता नाइकी का था। तो जरनैल सिंह का जूता रिबोक का। पर अपन को हैरानी तो तब हुई। जब बिना ब्रांड का जूता भी चल निकला। वह भी बुध्दिजीवियों के बीच। घटना जरनैल के जूते से ठीक एक दिन बाद की। जगह थी- दिल्ली का आत्माराम सनातन धर्म कालेज। प्रिंसिपल और स्टाफ में चखचख तो पहले से थी। पर काउंसिल की मीटिंग में जूते चलेंगे। यह किसी ने नहीं सोचा होगा। वैसे जूतेबाजी का शिकार बुश और चिदम्बरम ही नहीं हुए। अरुंधती राय भी जूता खा चुकी। अरुंधती राय का कसूर था- कश्मीर पर पाकिस्तान की पैरवी। इसी तेरह फरवरी को दिल्ली यूनिवर्सिटी की आर्ट गैलरी में पहुंची। तो भाषण से पहले ही जूताबाजी हो गई। दिल्ली में एक जज पर भी जूता चल चुका। जरनैल सिंह के जूते का चुनावी कमाल अपन बाद में बताएंगे। पहले सेक्युलर मोर्चों में जूतमपैजार की बात। इस चुनाव में सेक्युलरिज्म के तीन ठेकेदार।

आम आदमी के नाम पर करोड़पतियों का राज

Publsihed: 08.Apr.2009, 20:39

सोनिया सवा करोड़ की। राहुल ढाई करोड़ के। तो आडवाणी भी साढ़े तीन करोड़ के। आडवाणी ने बुधवार को परचा भरा। तो अपन को पता चला। पर आडवाणी और राहुल, सोनिया में एक फर्क। आडवाणी ने अपने परिवार के दो फ्लैट बताए। दोनों गुड़गांव में। दोनों की कीमत 92-92 लाख। ये दोनों फ्लैट 2004 में भी थे। तब उनने कीमत 30-30 लाख भरी थी। अपन जानते हैं- यूपीए राज में कीमतें कैसे तीन गुणी हुई। आडवाणी ने फ्लैटों की ताजा कीमत भरी। एनडीए राज में मिडिल क्लास सोच भी सकता था। खरीद भी रहा था। पर अब एनसीआर में खरीदना मिडिल क्लास के बूते में नहीं। पर उधर राहुल-सोनिया की जायदाद देखिए। अपन जानते हैं महरौली में नौ लाख की सौ गज जमीन भी नहीं मिलती। पर राहुल बाबा का फार्महाऊस नौ लाख का। अपन जानते हैं इटली में 18 लाख का वन बैड रूम फ्लैट भी नहीं मिलता। पर सोनिया के घर की कीमत सिर्फ 18 लाख। असलियत से कितने दूर हैं हल्फिया बयान। हर उम्मीदवार की यही हालत। चुनाव आयोग नेताओं की प्रापर्टी दुगनी कीमत में खरीद ले। तो भी आयोग को तीन गुणा फायदा होगा।

'जूते' के निशाने पर मौजूदा भ्रष्ट व्यवस्था

Publsihed: 07.Apr.2009, 20:39

जरनैल सिंह ने अपन को चौंका दिया। उनने देश के होम मिनिस्टर चिदम्बरम पर जूता दे मारा। अपन को जरनैल से ऐसी उम्मीद तो नहीं थी। जरनैल सीधे-सादे धार्मिक इंसान। हर रोज गुरुद्वारे जाने वाले। गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करने वाले। गुरुबाणी तो जरनैल को जुबानी याद। दैनिक जागरण में कोई दस साल से होंगे। जागरण को भी हैरानी हुई। जागरण ने अपने बयान में कहा- 'जागरण घोर निंदा करता है। जागरण का इस घटना से लेना-देना नहीं। संस्थान अनुशासनात्मक कार्रवाई भी करेगा।' यों भी यह जर्नलिज्म नैतिकता के खिलाफ। जरनैल की पहुंच वहां पत्रकार के नाते हुई। वह आम आदमी होते। तो उस कमरे तक पहुंच ही न पाते। जहां पी. चिदम्बरम मौजूद होते। पर जो पी. चिदम्बरम ने कहा। जरा उस पर गौर करें। उनने कहा- 'जरनैल सिंह ने भावनाओं में बहकर यह काम किया।' जी हां, सवाल भावनाओं का ही। कांग्रेस ने सिखों की भावनाएं ही तो नहीं समझीं। यह जो इक्का-दुक्का, कभी-कभार गुब्बार का लीकेज है। किसी दिन सुनामी लेकर आएगा। पता नहीं कितने जूते खाने पर नेताओं को अक्ल आएगी।

स्विस बैंकों के खातों पर सिब्बल हुए बेचैन

Publsihed: 06.Apr.2009, 20:39

अपने कपिल सिब्बल का भी जवाब नहीं। खुद चांदनी चौक में बुरी तरह फंस गए। पर निकले हैं मनमोहन सिंह का बचाव करने। वैसे मनमोहन के मामले में सारी कांग्रेस बचाव में। मनमोहन पर आडवाणी के हमले कम नहीं हो रहे। चुनाव घोषणापत्र जारी करते वक्त मनमोहन भड़क उठे थे। आडवाणी पर जवाबी हमला बोला। अपने कमजोर होने का जवाब तो नहीं सूझा। सोनिया के सामने कैसे कहते- 'मैंने सोनिया के इशारों पर सरकार नहीं चलाई।' सो उनने आडवाणी को भी कमजोर कह डाला। मनमोहन ने स्कूल में पढ़ा होगा- 'लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच दो। तो पहले वाली लकीर छोटी हो जाएगी।' सो उनने स्कूल में पढ़ा आडवाणी पर आजमाया। गिनाने लगे- आडवाणी एनडीए राज में कितने कमजोर थे। आतंकवादी को कंधार भेजा। तो आडवाणी चुप रहे। संसद पर हमला हुआ। तो आडवाणी चुप रहे। वगैरह-वगैरह। यानी- 'अगर मैं कमजोर हूं, तो आप भी कम नहीं।'

नई बीजेपी, हिंदुओं को मंदिर, मुस्लिमों को तालीम

Publsihed: 04.Apr.2009, 07:42

बीजेपी ने शाईनिंग इंडिया की गलती सुधारी। जैसा अपन ने कल लिखा था- 'तो पुराने मुद्दों के साथ रोटी- रोजगार का भी वादा होगा।' सो अब बीजेपी राम के साथ गरीब रथ पर भी सवार। घोषणापत्र जारी करते राजनाथ सिंह ने कहा- 'बीजेपी अपने घोषणापत्र के हर शब्द का पालन करेगी।' तो अपन बता दें- घोषणा पत्र में गरीबों, किसानों, मिडिल क्लास के लिए तोहफे ही तोहफे। सैनिकों को सैलरी पर इनकम टेक्स नहीं। समान रैंक-समान पेंशन का भी वादा। गरीबों को दो रुपए किलो चावल-गेहूं। किसानों के सारे कर्ज माफ। नए कर्ज पर ब्याज सिर्फ चार फीसदी। इनकम टेक्स तीन लाख के बाद शुरू होगा। औरतों और बुर्जुगों को पचास हजार की और छूट। सीनियर सिटीजन की उम्र पैंसठ से घटाकर साठ होगी। पेंशन पर इनकम टेक्स भी नहीं। आम आदमी को मिले बैंक ब्याज पर टेक्स नहीं। सीएसटी-एफबीटी खत्म होगा। बीजेपी का इनकम टेक्स का चेप्टर देख कांग्रेस पसीनों-पसीने हो गई।

पवार की दोहरी सदस्यता पर कांग्रेस में खलबली

Publsihed: 02.Apr.2009, 20:59

तो यूपीए का सारा कुनबा ही बिखर गया। वाइको, चंद्रशेखर राव, रामदौस तो गए ही। लालू, मुलायम, पासवान भी बाहर। अब पवार भी इशारे करने लगे। यूपीए में बची सिर्फ ममता। वह भी चुनाव बाद पक्की नहीं। ममता का असली घर एनडीए। यूपीए तो सिर्फ खेत की ढाणी। आप कहेंगे पवार का तो सीट एडजेंटमेंट हो चुका। अपन भूल भी जाएं। पर पवार क्यों भूलेंगे। सोनिया देशभर में तालमेल की बात मान जाती। तो यह दिन देखना ही नहीं पड़ता। अपने पी. चिदम्बरम मुंह लटकाए हुए थे। जब पूछा- 'पवार का सीपीएम-बीजेडी के साथ जाना कैसा लगा?' तो बोले- 'एनसीपी से उड़ीसा में तालमेल तो नहीं। पर पवार का हमारे विरोधियों से जा मिलना ठीक नहीं।' वैसे पवार भी उसी दिन उड़ीसा गए। जिस दिन सोनिया उड़ीसा में थी। तेवर दिखाने का असर भी हुआ। कांग्रेस ने गुजरात में एक सीट की पेशकश कर दी। राजकोट न सही, सूरत सही। इसे कहते हैं- दिया जब रंज बुतों ने, तो खुदा याद आया। यों पवार की टेढ़ी चाल से कांग्रेस की चाल बेढंगी हो गई।

वरुण को अभिमन्यु की तरह घिरा बताया मेनका ने

Publsihed: 02.Apr.2009, 09:40

हस्तिनापुर का राजा था पांडु। पांडु की दो बीवियां थी मादरी और कुंती। पांडु को श्राप मिला- बच्चे पैदा करने  की कोशिश करेगा तो मर जाएगा। डरकर पांडु ने अपना राज-काज धृतराष्ट्र को सौंप दिया। धृतराष्ट्र अंधा था। पर था पांडु का बड़ा भाई। पर बाद में कुंती को युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन पैदा हुए। मादरी को नकुल और सहदेव। ये पांचों बच्चे कैसे पैदा हुए। अपन इस कहानी की गहराई में नहीं जाते। वह कहानी बताने का आज वक्त नहीं। पर पांडु श्राप के कारण ही मर गया। मादरी सती हो गई। पांडु की मौत का कारण मादरी ही थी। पर सवाल सिहासन की विरासत का। धृतराष्ट्र ने पांडु के पांडव बेटों को राज गद्दी नहीं सौंपी। जबकि राज गद्दी के वारिस पांडव थे। महाभारत इसीलिए हुआ। कहानी हू-ब-हू भले नहीं। पर कुछ कुछ मिलती-जुलती।