तो इस बीच सुप्रीम कोर्ट को भी वरुण पर रासुका नहीं जंचा। अब आज यूपी सरकार कोर्ट में क्या कहेगी। अपन को उसी का इंतजार। यों माया सरकार कुछ भी कहे। वरुण की रिहाई दूर नहीं। वरुण का राजनीतिक मकसद पूरा हो चुका। वह क्यों तनाव फैलाने वाली भाषा बोलेंगे। तुजुर्बे से ही सीखता है इंसान। वैसे रविशंकर प्रसाद से पूछो। तो कहेंगे- कई लोग तुजुर्बे से भी नहीं सीखते। वैसे उनने बुधवार को सोनिया के बारे में कहा। पर पहले सोनिया की बात। वह बोली- 'आडवाणी संघ के गुलाम।' यों अपन समझते थे। सोनिया पर्सनल हमले नहीं करेगी। पर सोनिया की घबराहट समझना मुश्किल नहीं। घबराहट की बात बाद में। पहले बात रविशंकर के जवाब की। बोले- 'सोनिया को राजनीतिक समझ नहीं। जो कोई लिखकर दे दे, पढ़ देती हैं।' वैसे रविशंकर ने कोई नई बात तो कही नहीं। यों सोनिया ने भी नई बात नहीं कही। अपन तो 1978 से ही देख रहे।
जब संघ के मुद्दे पर मोरारजी सरकार गिरी। यही दोहरी सदस्यता का ही तो सवाल था। तब वाजपेयी ने कहा था- 'कुर्सी जानी है, तो जाए। सरकार गिरती है, तो गिरे। संघ नहीं छोड़ेंगे।' वही वाजपेयी बाद में पीएम बने। अपन कोई आडवाणी के बारे में भविष्यवाणी नहीं कर रहे। जब-जब बीजेपी का सितारा बुलंद होता दिखा। तब-तब संघ का जिन्न निकल आया। अपन नहीं जानते, आडवाणी क्या जवाब देंगे। पर संघ कोई राष्ट्र विरोधी संगठन तो नहीं। ऐसा होता, तो नेहरू स्वतंत्रता दिवस की परेड पर संघ को न बुलाते। राष्ट्र विरोधी पर अपन को याद आया। जयप्रकाश नारायण को जब संघ के बारे में उल्टा-सीधा बताया गया। तो उनने कहा था- 'संघ अगर राष्ट्र विरोधी है, तो मैं भी राष्ट्र विरोधी।' पर बात संघ की नहीं। बात संघ के हौव्वे की। जो जब तब खड़ा होता ही रहा। बात सिर्फ सोनिया की नहीं। बात मनमोहन सिंह की भी। उनने भी आडवाणी पर हमले तेज किए। बुधवार को एडिटर्स गिल्ड से बात करते जो कहा वह सुना आपने। बोले- 'विमान अपहरण हुआ। तो लौह पुरुष पिघल गए थे। बाबरी मस्जिद टूट रही थी। तो आडवाणी कोने में बैठे सिसकियां भर रहे थे।' मनमोहन की दोनों बातें सोलह आने सही। जब दो सौ भारतीयों के परिवार तड़प रहे थे। पीएम के घर के बाहर प्रदर्शन हो रहे थे। सारे चैनल विमान के अपहृत यात्रियों को छुड़ाने का वातावरण बना रहे थे। तो लौह पुरुष भी पिघल गए थे। न चाहते हुए भी उनने विमान छुड़ाने पर सहमति दी। पर मनमोहन यह भी बताएं। उनने उस आल पार्टी मीटिंग में क्या कहा था। जो वाजपेयी ने कंधार संकट पर बुलाई थी। पर वह अपनी बात नहीं बताएंगे। संपादकों ने मनमोहन से पूछा- 'आपने आडवाणी पर इतने तेज हमले क्यों किए। इतने देर तक चुप क्यों थे?' तो जवाब सुन अपन को हैरानी हुई। मनमोहन बोले- 'पहले मुझे पता नहीं था, मैं पीएम पद का उम्मीदवार होऊंगा या नहीं। जब सोनिया ने मुझे पीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया। तो मेरी जिम्मेदारी बन गई।' तो असल में अब मनमोहन पीएम पद की दौड़ में। जब तक सोनिया ने कहा नहीं था। तब तक तो वह दौड़ में थे ही नहीं। तो अब जब वह दौड़ में आ गए। तो पीएम पद के उम्मीदवार पर हमले करना जैसे मनमोहन का धर्म हो गया। यों अपन नहीं कहते। पर यह राजनीति का उसूल। घबराहट में ही हमलावर होता है इंसान। घबराहट पूरी कांग्रेस में। आखिर पासवान, लालू, पवार, मुलायम भी आंख दिखाने लगे। सोमनाथ चटर्जी की फेअरवैल पार्टी में कैसे अकेले दिखे मनमोहन। जयंती नटराजन बाकियों पर तो नहीं बरसी। बरसी सिर्फ आडवाणी पर। सही बात- जिससे खतरा हो। आखिर उसी पर तो बरसेगी कांग्रेस।
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