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Exclusive Articles written by Ajay Setia

सेक्युलरिज्म दिखाने के दांत, खाने के नहीं

Publsihed: 30.Apr.2009, 20:36

वेंकैया नायडू गलतफहमी में रहें। तो अपन टोकने वाले नहीं। नायडू का दावा सुन अपन हंसे। उनने कहा- 'सीबीआई ने बीजेपी के दबाव में आकर क्वात्रोची पर कार्रवाई का वक्त मांगा।' वेंकैया सीबीआई की ताजा अर्जी पर बोल रहे थे। सीबीआई ने कोर्ट से दो महीने की मोहलत मांगी। वेंकैया ने सीबीआई की अर्जी तो देखी। पर हंसराज भारद्वाज का बयान नहीं देखा। उनने कहा- 'बोफोर्स केस में कोई दम-खम नहीं।' अपन नहीं जानते वेंकैया क्यों गलतफहमी में। आडवाणी और जेटली को कोई गलतफहमी नहीं। दोनों की राय- 'कांग्रेस ने अपना काम कर दिया।' वेंकैया के तो उस दावे में भी अपन को दम नहीं लगा। उनने कहा- 'एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिलेगा।' अपन को आडवाणी-जेटली असलियत के करीब दिखे।

सबसे बड़ा जूता

Publsihed: 29.Apr.2009, 20:36

आपने वह इश्तिहार तो देखा होगा। वोटर का नेता से उसकी डिग्री पूछने वाला। मेरा इंटरव्यू ले रहे हो। कौन सी जॉब? देश चलाने की जॉब। अपन हैरान, इस इश्तिहार ने गजब का काम किया। जो इस बार वोटर नेताओं से सवाल पूछ रहे हैं। कहीं कहीं तो जूते भी मार रहे हैं। अपन ने 1977 के बाद दर्जनों चुनाव देख लिए। दसवां चुनाव तो लोकसभा का ही देख रहे। विधानसभाओं के चुनाव अलग से। पर वोटर अपने उम्मीदवारों पर इतने हमलावर कभी नहीं देखे। अलबत्ता इस बार मीडिया की धार कमजोर पड़ी। अरुण जेटली ने मीडिया को कटघरे में खड़ा किया। बोले- 'बोफोर्स मामले में इतनी बड़ी बात हो गई। किसी ने सोनिया से सवाल नहीं पूछा। भ्रष्टाचार शायद मीडिया के लिए मुद्दा नहीं रहा।'

बोफोर्स जिन्न से नजदीकी बढ़ी बीजेपी-माया की

Publsihed: 28.Apr.2009, 20:36

बोफोर्स का जिन्न भी निकल आया। मनमोहन सरकार जाते-जाते क्वात्रोची का रेड कार्नर वारंट भी रद्द करवा गई। टाईटलर-सान के बाद सीबीआई पर नया दाग। अपन नहीं जानते भ्रष्टाचार का चुनाव पर कितना असर। बोफोर्स का 1989 में तो खूब असर हुआ। वोटर 1989 के मूड में आए। तो कांग्रेस मुश्किल में होगी। बताते जाएं- 1989 के बाद कांग्रेस कभी स्पष्ट बहुमत में नहीं आई। चुनावी डुगडुगी बजे एक महीना हो चुका। महीनेभर में अपन ने कई रंग देखे। शुरूआत तो जरनैल सिंह के जूते से हुई। अब आए दिन जूतेबाजी की खबर। जरनैल के जूते से चौरासी का भूत निकला। तो अपने टाईटलर-सान का टिकट कटा। कांग्रेस अक्लमंद निकली। जो टिकट काट कर डैमेज कंट्रोल कर लिया। अब न दिल्ली में नुकसान का डर, न पंजाब में। जब चौरासी का भूत निकल आया। तो गोधरा का जिन्न क्यों दबा रहता। गोधरा का जिन्न भी निकल आया। नरेंद्र मोदी को कपिल सिब्बल की धमकी पहले आई। गोधरा का जिन्न बाद में निकला।

अटल-आडवाणी की जगह आडवाणी-मोदी

Publsihed: 28.Apr.2009, 05:25

मनमोहन सिंह ने गुजरात में फिर गोधरा उठा दिया। दिल्ली में चौरासी कांग्रेस की आफत बना। तो गुजरात में गोधरा बीजेपी की आफत बनाने की कोशिश। यों अपन इसे जोड़कर नहीं देखते। पर सुप्रीम कोर्ट का ताजा आदेश कांग्रेस के भागों छींका फूटने जैसा। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया- 'गोधरा दंगों में नरेन्द्र मोदी की भूमिका भी जांची जाए।' कोर्ट के आदेश पर अरुण जेटली कुछ ऐसे भड़के- 'चुनाव के दौरान अदालत के बाहर और अदालत के जरिए विवाद खड़ा करना कांग्रेसी परंपरा।' अपन बताते जाएं- अदालत का ताजा फैसला दिवंगत कांग्रेसी सांसद अहसास जाफरी के मामले में। अदालत में अर्जी थी जाफरी की बेवा जकिया नसीन अहसान की। पर बात पीएम के बयान की। मोदी ने पीएम के बयान पर फौरन चुनौती दी- 'मैं कसूरवार निकलूं, तो फांसी पर चढ़ा दो।

बीजेपी से परमानेंट किनारे के मूड में नवीन

Publsihed: 24.Apr.2009, 05:54

कांग्रेस के हमले सोची-समझी रणनीति। लालू-पासवान को फूके कारतूस मानने लगी कांग्रेस। गुरुवार को शीला दीक्षित भी हमलावर हुई। वाईएसआर के बाद शीला ही दमदार। अपन भले ही वाईएसआर को 29 से 15 पर समझें। कांग्रेसी नहीं मानते। तेलंगाना में भले ही झटका लगा। पर गुरुवार को रायलसीमा-आंध्र में दबदबा रहा। अब जब सारा आंध्र निपट गया। तो कांग्रेस का अपना दावा 19-20 सीट का। यानी दस का नुकसान तो पक्का। बात एसेंबली की। तो वाईएसआर को बहुमत भले न मिले। यों वाईएसआर का दावा स्पष्ट बहुमत का। पर बहुमत न भी मिला। तो भी सरकार उन्हीं की बनेगी। दिल्ली में ऐसा कहने वालों की कमी नहीं। कहते हैं- थोड़ी बहुत कसर हुई भी। तो औवेसी जैसे जुटेंगे। वाईएसआर फिर से सीएम बने। तो चंद्रबाबू को जोरदार झटका लगेगा। वह तो दिल्ली की गद्दी में अहम रोल की फिराक में। टीडीपी-टीआरएस-लेफ्ट गठजोड़ तो दमदार। पर बाबू की मजबूती 1999 जैसी नहीं।

आधा चुनाव बीता तो दावेदारी का दौर

Publsihed: 23.Apr.2009, 20:36

''पहले नारा लगा करता था- 'अबके बारी अटल बिहारी।' कई चुनावों में नारा लगा। अब बीजेपी का नारा- 'अबकी बारी लालकृष्ण आडवाणी।' अपने अरुण शौरी भविष्यकाल में चले गए। अहमदाबाद में थे। सो मोदीमयी हो गए। यों भी शौरी मोदी के मुरीद। सो उनने कहा- 'इस बार भी गुजरात से पीएम चुनो। अगली बारी भी गुजरात की।' यानी आडवाणी पीएम बने भी। तो एक ही बारी मिलेगी। वाजपेयी की तरह तीन बार शपथ नहीं। यों अपन कह सकते हैं- शौरी ने जब गुजरात से पीएम की बात कही। तो दोनों ही बार आडवाणी दिमाग में होंगे। पर नहीं, उनके दिमाग में मोदी ही होंगे। बीजेपी वाले ही नहीं मानते- शौरी के दिमाग में अगली बार भी आडवाणी होंगे। इस बार भी आधे भाजपाई मोदी के गुण गाते दिखेंगे।

तो प्रकाश करात भी पीएम पद के दावेदार

Publsihed: 22.Apr.2009, 21:04

तो चुनाव का दूसरा फेज आज निपटेगा। पहले फेज का रुझान तो कांग्रेस को करंट लगा गया। खासकर आंध्र प्रदेश में। तेलंगाना में टीडीपी-टीआरएस हावी रही। अपन ने मशीनों में झांककर तो नहीं देखा। पर कांग्रेस की बेचैनी ने सब कह दिया। आज 140 सीटों पर वोट पड़ेंगे। तो उनमें 20 सीटें बाकी बची आंध्र प्रदेश की। यह बताने का मकसद भी बताते चलें। पिछली बार इनमें से 19 जीती थी कांग्रेस ने। आंध्र की 29 सीटों की बदौलत ही यूपीए सरकार बनी। अब अपना अनुमान कांग्रेस के पंद्रह पर खिसकने का। चौदह का घाटा न तो राजस्थान में पूरा होगा, न मध्यप्रदेश में। अभिषेक मनु सिंघवी ही अशोक गहलोत के टारगेट-25 की हवा निकाल चुके। जहां तक बात मध्य प्रदेश की। ज्योतिरादित्य सिंधिया तक संकट में।

कांग्रेस की लालू को छोड़ नीतिश पर निगाह

Publsihed: 21.Apr.2009, 20:36

कांग्रेसियों को तो खुश होना चाहिए। आडवाणी ने जब मनमोहन को कमजोर कहा। तो सोनिया को ताकतवर बताया। फिर तिलमिलाहट क्यों। क्या सोनिया को मनमोहन से ज्यादा ताकतवर नहीं मानते। सोनिया जवाब दें, तो समझ भी आए। लग्गुओं-भग्गुओं का जवाब देना नहीं बनता। अब सोनिया ने मनमोहन को पीएम का उम्मीदवार बताया। तो उनने कौन सा सीडब्ल्यूसी से पास करवाया। बात मनमोहन के उम्मीदवार होने की। अब लालू ने मनमोहन को उम्मीदवार मानने से भी इंकार कर दिया। सोनिया ने उम्मीदवार घोषित किया था। तो कांग्रेसी बचाव में कैसे न आते। सबसे पहले लालू के खास कपिल सिब्बल ही बोले- 'मनमोहन ही हमारे उम्मीदवार।' प्रणव मुखर्जी भी बचाव में आए। उनने कहा- 'मनमोहन की बराबरी का देश में नेता नहीं।'

तो यूपीए के सैध्दांतिक गठबंधन की खुली पोल

Publsihed: 20.Apr.2009, 21:07

अपने अभिषेक मनु सिंघवी इतवार को जयपुर में थे। तो उनने आडवाणी पर जमकर हमले किए। सिंघवी का पहला एतराज- स्विस बैंकों में जमा काले धन का सवाल उठाने पर। बोले- 'यह सवाल अब क्यों उठाया। जब सरकार थी, तब क्यों नहीं उठाया। जब विपक्ष के नेता थे, तब क्यों नहीं उठाया।' सिंघवी को मनमोहन ने मंत्री बनाया होता। तो  यह बात न कहते। आडवाणी ने मनमोहन को अप्रेल 2008 को चिट्ठी लिखी थी। तब जर्मनी को उन भारतीयों की लिस्ट मिली थी। जिनका पैसा स्विस बैंक में था। आडवाणी ने चिट्ठी लिखी। तो चिदंबरम के एक सेक्रेटरी ने जर्मन एम्बेस्डर को लिखा- 'लिस्ट लेने के लिए कोई भाग-दौड़ न की जाए।' अरुण शौरी ने सही कहा- 'जिस सरकार ने क्वात्रोची के सील खाते खुलवा दिए। वह काला धन क्यों लाएगी।' सिंघवी ने दूसरी बात कंधार पर कही। बोले- 'आडवाणी उस सरकारी प्रोसेस के हिस्सा थे। जिसमें आतंकियों को छोड़ने का फैसला हुआ। वह अपनी आत्मकथा में यह कैसे कहते हैं- 'उन्हें कुछ पता नहीं था।'

अमेरिकन बोले- 'खरीद फरोख्त से बनेगी सरकार'

Publsihed: 18.Apr.2009, 06:05

जून में अपना पीएम कौन होगा? अपन से ज्यादा अमेरिकन फिक्रमंद। अमेरिका कुछ ऐसे जुगाड़ में- जो सरकार मनमोहन की ही बने। वह भी बिना लेफ्ट की मदद के। सीताराम येचुरी ने तो शुक्रवार को ही कहा- 'थर्ड फ्रंट की सरकार बनी। तो एटमी करार रिव्यू होगा।' यह बात अब आडवाणी ने तो कहनी लगभग छोड़ दी। आडवाणी का नया मुद्दा स्विस बैंक के खातों का। स्विस बैंक के नाम पर कांग्रेसियों के होश फाख्ता। अपन ने सात अप्रेल को कपिल सिब्बल की बेचैनी बताई थी। कांग्रेस के चुनाव इंचार्ज जयराम रमेश की बेचैनी भी बताएं। जयराम मंत्री पद से इस्तीफा देकर इंचार्ज बने। तो अपने कान तभी खड़े हुए थे। जरूर फंड का लफड़ा होगा। अब जब जयराम ने स्विस बैंकों के मामले में आडवाणी को चिट्ठी लिखी। तो अपने कान फिर खड़े हुए।