स्विस बैंकों के खातों पर सिब्बल हुए बेचैन

Publsihed: 06.Apr.2009, 20:39

अपने कपिल सिब्बल का भी जवाब नहीं। खुद चांदनी चौक में बुरी तरह फंस गए। पर निकले हैं मनमोहन सिंह का बचाव करने। वैसे मनमोहन के मामले में सारी कांग्रेस बचाव में। मनमोहन पर आडवाणी के हमले कम नहीं हो रहे। चुनाव घोषणापत्र जारी करते वक्त मनमोहन भड़क उठे थे। आडवाणी पर जवाबी हमला बोला। अपने कमजोर होने का जवाब तो नहीं सूझा। सोनिया के सामने कैसे कहते- 'मैंने सोनिया के इशारों पर सरकार नहीं चलाई।' सो उनने आडवाणी को भी कमजोर कह डाला। मनमोहन ने स्कूल में पढ़ा होगा- 'लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच दो। तो पहले वाली लकीर छोटी हो जाएगी।' सो उनने स्कूल में पढ़ा आडवाणी पर आजमाया। गिनाने लगे- आडवाणी एनडीए राज में कितने कमजोर थे। आतंकवादी को कंधार भेजा। तो आडवाणी चुप रहे। संसद पर हमला हुआ। तो आडवाणी चुप रहे। वगैरह-वगैरह। यानी- 'अगर मैं कमजोर हूं, तो आप भी कम नहीं।'

सोचा होगा आडवाणी डर जाएंगे। पर आडवाणी ने हमले और तेज किए। तो सोनिया खुद बचाव में उतरी। बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्लाह। कपिल सिब्बल ने तीन पेज का बयान जारी किया। यों बयान में सिर्फ एक मुद्दा नया। बाकी सब वही जो उस दिन मनमोहन बोले थे। वैसे 'कमजोर' का लेबल तो मनमोहन पर चिपका ही था। अब बहस से बिदकने का लेबल भी लगने लगा। नरेंद्र मोदी ने तो सोनिया को भी चुनौती दे डाली। बोले- 'सोनिया ही देश के मुद्दों पर बहस कर लें।' सब जानते हैं- ऐसा नहीं हो सकता। मनमोहन का तो अपन एक बार सोच भी लें। सोनिया कहां उतरेंगी। वैसे ऐसी बहस सब उम्मीदवारों की आमने-सामने हो। तो जम्हूरियत मजबूत ही होगी। जैसे पटना में शत्रुघ्न सिन्हा से शेखर सुमन की बहस हो जाए। अपन राजनीति के गिरते स्तर का यह भी रूप देख रहे। जहां राजनीतिज्ञों की हवा सरके। वहां फिल्मी हस्तियों को उतार दो। हीरो-हीरोइनों-खिलाड़ियों का राजनीति में आना बुरा नहीं। पर राजनीतिक दल सीट जीतने के लिए इस्तेमाल करने लगे। 'धर्मेन्द्र ने बीकानेर का क्या भला किया। गोविन्दा ने अपने हल्के में क्या काम किया। दोनों लोकसभा से भी नदारद रहे।' यों अपने धर्मेन्द्र पा जी ने खुद ही तौबा कर ली। पर कांग्रेस को गोविन्दा से जान छुड़ानी पड़ी। अब अपने राम नाईक की जीत आसान। बात जब मुंबई की चल ही पड़ी। तो शरद पवार का नया पैंतरा बताते जाएं। अब फिर उनका इरादा नवीन नटनायक के साथ प्रेस कांफ्रेंस का। याद है- उस दिन आखिरी वक्त पर अटक गए थे। हवाई जहाज में टेक्नीकल स्नैग था। यों उनने मोबाईल पर भाषण दिया। पर पवार अपनी साख गिरा चुके। सो कौन भरोसा करता। सबने पवार का 'यू टर्न' ही समझा। इसीलिए तो कांग्रेस को अब भी भरोसा नहीं। कपिल सिब्बल से पूछा। तो वह बोले- 'जब तक पवार-नवीन की प्रेस कांफ्रेंस हो न जाए। तब तक नहीं बोलेंगे।' पर बात कपिल सिब्बल के आडवाणी पर हमलों की। उनने आडवाणी पर नया हमला बोला- 'होम मिनिस्टर रहते स्विस बैंक के खातों की बात क्यों नहीं की। विपक्ष के नेता थे, तब भी नहीं की। अब क्यों?' स्विस बैंक के खातों पर कांग्रेसी इतने बेचैन क्यों। वरना सिब्बल तो जानते हैं- 'स्विस बैंक में भारतीयों के 1500 अरब डालर जमा। पहले कहां हुआ था यह खुलासा। ताजा ही खुलासा।' यह तो वही बात हुई। कोई अपने मां-बाप से पूछे- 'मुझे अपनी शादी में क्यों नहीं बुलाया था।' आडवाणी ने यह तो नहीं पूछा- सोनिया के पास सवा करोड़ रुपए कहां से आए। या राहुल के पास ढाई करोड़ रुपए कहां से आए। न यह पूछा- कांग्रेस 44 करोड़ से 215 करोड़ की कैसे हुई। वह भी पिछले पांच साल में। आडवाणी ने सिर्फ स्विस बैंक में जमा खातों का हिसाब मांगा।

आपकी प्रतिक्रिया