मुंतधार अल जैदी का जूता नाइकी का था। तो जरनैल सिंह का जूता रिबोक का। पर अपन को हैरानी तो तब हुई। जब बिना ब्रांड का जूता भी चल निकला। वह भी बुध्दिजीवियों के बीच। घटना जरनैल के जूते से ठीक एक दिन बाद की। जगह थी- दिल्ली का आत्माराम सनातन धर्म कालेज। प्रिंसिपल और स्टाफ में चखचख तो पहले से थी। पर काउंसिल की मीटिंग में जूते चलेंगे। यह किसी ने नहीं सोचा होगा। वैसे जूतेबाजी का शिकार बुश और चिदम्बरम ही नहीं हुए। अरुंधती राय भी जूता खा चुकी। अरुंधती राय का कसूर था- कश्मीर पर पाकिस्तान की पैरवी। इसी तेरह फरवरी को दिल्ली यूनिवर्सिटी की आर्ट गैलरी में पहुंची। तो भाषण से पहले ही जूताबाजी हो गई। दिल्ली में एक जज पर भी जूता चल चुका। जरनैल सिंह के जूते का चुनावी कमाल अपन बाद में बताएंगे। पहले सेक्युलर मोर्चों में जूतमपैजार की बात। इस चुनाव में सेक्युलरिज्म के तीन ठेकेदार।
पहला ठेकेदार- यूपीए। दूसरा ठेकेदार- थर्ड फ्रंट। तीसरा यह नया ठेकेदार- लालू, मुलायम, पासवान का मोर्चा। तीनों सेक्युलर मोर्चों में भी जूतमपैजार। नए नए सेक्युलर बने नवीन पटनायक ने कहा- 'केंद्र में गैर कांग्रेस- गैर बीजेपी सरकार बनाना लक्ष्य।' वैसे अपन कह सकते हैं- सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली। पर अपन कहेंगे नहीं। अपन जानते हैं- नवीन पटनायक को बहुमत न मिला। तो बीजेपी से ही हाथ मिलाएंगे। पर मजेदार बात यह हुई- नवीन ने यह बात पवार की मौजूदगी में कही। जो पहले ही कांग्रेस के साथ। यानी पवार का भी अब यही इरादा। वैसे तो कोई पवार पर भरोसा नहीं करता। पर यह मानकर चलिए- चुनाव बाद तीसरा-चौथा मोर्चा जब गैर कांग्रेसी पीएम की बात करेगा। तो शरद पवार भी उनके साथ खड़े होंगे। यों भले आज आप भरोसा न करें। पर महाराष्ट्र में इस बार भीतरघात खूब होगा। कांग्रेस एनसीपी को निपटाएगी। एनसीपी कांग्रेस को। बिल्लियों की लड़ाई में बंदरों का फायदा कोई आज की कहावत नहीं। बीजेपी-शिवसेना मौके का फायदा न उठाएं। तो उन्हीं का कसूर। बात जमा-घटाओ की चल ही पड़ी। तो बताते जाएं- अब तक के सभी सर्वेक्षणों का लब्बोलुबाब- 'बीजेपी-कांग्रेस में से कोई इस बार भी डेढ़ सौ पार नहीं करेगा।' कोई सर्वेक्षण कांग्रेस को 133 पर निपटा रहा। तो कोई 144 पर। कोई सर्वेक्षण बीजेपी को 140 पर निपटा रहा। तो कोई 144 पर। एक वीकली के ताजा सर्वेक्षण में यूपीए को 187 सीटें मिलेंगी। तो एनडीए को 186 सीटें। तीसरे मोर्चे की 110 सीटें। तो चिरंजीवी समेत चौथे मोर्चे की 49 सीटें। यों तो सर्वेक्षण भरोसेमंद नहीं होते। पर हालत मिलती-जुलती ही बनेगी। मायावती, जयललिता, चंद्रबाबू, चंद्रशेखर राव, नवीन ने कांग्रेस को समर्थन न दिया। तो सेक्युलरिज्म के तीनों ठेकेदार-'यूपीए-तीसरा-चौथामोर्चा' मिलकर सवा दो सौ में निपट जाएंगे। यानी असली जूता तो सभी दलों पर जनता मारेगी। अपन ने बात तो जूते से ही शुरू की थी। तो बता दें- जरनैल सिंह का जूता तो चल निकला। टाइटलर-सज्जन का दिया-दिलाया टिकट कट गया। ऐसी बात नहीं- जो कांग्रेस ने दिल से टिकट काटा हो। कांग्रेस को सिखों के नरसंहार का मलाल होता। तो 1984, 89, 91, 96, 99, 2004 में भी टिकट न देती। सिर्फ 1998 में टिकट नहीं दिया। राजीव और नरसिंह राव ने तो टाइटलर को मंत्री भी बनाया। मंत्री तो मनमोहन सिंह ने भी बनाया था। पर नानावती रिपोर्ट पर हटाना पड़ा। यों जरनैल सिंह से अपन ने पूछा। तो वह टिकट कटने पर संतुष्ट दिखे। ताकि सनद रहे सो बता दें- टाइटलर एक बार मल्होत्रा से हार चुके। दो बार खुराना से। पर इस बार तो जरनैल सिंह ने चुनाव से पहले ही घर बिठा दिया। सज्जन कुमार ने तो बेटे के नाम पर मोल-भाव कर लिया। पर टाइटलर वह भी नहीं कर पाए। चलते-चलते अपन एक बात और बताते जाएं- जगदीश टाइटलर वास्तव में जगदीश कपूर। पैदा हुए थे गुजरांवाला में। जो अब पाकिस्तान में। दिल्ली के जाने-माने ईसाई शिक्षाविद जेम्स डगलस टाइटलर ने गोद लिया था- जगदीश को।
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