'जूते' के निशाने पर मौजूदा भ्रष्ट व्यवस्था

Publsihed: 07.Apr.2009, 20:39

जरनैल सिंह ने अपन को चौंका दिया। उनने देश के होम मिनिस्टर चिदम्बरम पर जूता दे मारा। अपन को जरनैल से ऐसी उम्मीद तो नहीं थी। जरनैल सीधे-सादे धार्मिक इंसान। हर रोज गुरुद्वारे जाने वाले। गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करने वाले। गुरुबाणी तो जरनैल को जुबानी याद। दैनिक जागरण में कोई दस साल से होंगे। जागरण को भी हैरानी हुई। जागरण ने अपने बयान में कहा- 'जागरण घोर निंदा करता है। जागरण का इस घटना से लेना-देना नहीं। संस्थान अनुशासनात्मक कार्रवाई भी करेगा।' यों भी यह जर्नलिज्म नैतिकता के खिलाफ। जरनैल की पहुंच वहां पत्रकार के नाते हुई। वह आम आदमी होते। तो उस कमरे तक पहुंच ही न पाते। जहां पी. चिदम्बरम मौजूद होते। पर जो पी. चिदम्बरम ने कहा। जरा उस पर गौर करें। उनने कहा- 'जरनैल सिंह ने भावनाओं में बहकर यह काम किया।' जी हां, सवाल भावनाओं का ही। कांग्रेस ने सिखों की भावनाएं ही तो नहीं समझीं। यह जो इक्का-दुक्का, कभी-कभार गुब्बार का लीकेज है। किसी दिन सुनामी लेकर आएगा। पता नहीं कितने जूते खाने पर नेताओं को अक्ल आएगी।

नवंबर 1984 के अपन चश्मदीद गवाह। दिल्ली में जगह-जगह सिख जिंदा जलाए गए। गले में टायर डालकर आग लगा दी जाती थी। तीन हजार सिख जिंदा जलाए गए। भीड़ की रहनुमाई कांग्रेसी कर रहे थे। टाइटलर, भगत, सज्जन को लोगों ने भीड़ को उकसाते देखा। अपने 'नए नेता' को खुश करने की होड़ लगी थी। नए नेता राजीव गांधी से सिखों के नर संहार पर पूछा। तो वह बोले थे- 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है। तो धरती हिलती ही है।' अपन यह तो नहीं कहते- बदले की भावना कांग्रेसी खून में। पर एक घटना और याद कराना जरूरी। जिस जज ने 1975 में इंदिरा का चुनाव अवैध घोषित किया था। बाद में उसकी लाश गांव के कुएं में मिली थी। पर बात राजीव गांधी की। सचमुच भारतीय राजनीति का बड़ा पेड़ थी इंदिरा। केहर, सतवंत और बेअंत भी भावना में बह गए थे। स्वर्ण मंदिर में सेना देख बौखला गए थे। जहां भिंडरावाले को जिंदा या मुर्दा पकड़ने गई थी सेना। एक हजार सिख मारे गए थे। स्वर्ण मंदिर भी छलनी-छलनी हुआ। बौखलाए केहर-सतवंत-बेअंत ने इंदिरा गांधी को गोली मार दी। अब टाइटलर को बरी होते देखा। तो बौखलाए जरनैल सिंह ने जूता दे मारा। पर जरनैल ने सिर्फ विरोध जताया। उनने कहा भी- 'मैं अपना विरोध जता रहा हूं।' वह चिदम्बरम के ज्यादा दूर नहीं थे। चाहते तो निशाना लगाते। इराकी पत्रकार जैदी ने जब राष्ट्रपति बुश पर जूता फेंका। तो इरादा मुंह पर दे मारना था। पहला निशाना छूटा। तो उनने दूसरी कोशिश की। पर जरनैल ने ऐसा नहीं किया। चीन के पीएम वैन जिआबाओ पर जब जूता फेंका गया। तो इरादा विरोध जताना ही था। तीन हजार सिख मारे गए। किसी को सजा नहीं मिली। जैदी का जूता इराक की बर्बादी पर भड़ास था। जरनैल का जूता अपने समाज की बर्बादी पर भड़ास। जनमानस की भड़ास है यह जूता। व्यवस्था के खिलाफ हथियार है यह जूता। एक क्रांति बंदूक की गोली से निकली थी। एक क्रांति गांधी के सत्याग्रह से हुई। अब जूता बना है क्रांतिकारी हथियार। अपन हैरान तब हुए। क्रांतिकारी हथियार टाइटलर- सान का टिकट तो कटवा ही देगा। भले ही जरनैल सिंह का काम जर्नलिज्म के खिलाफ। शायद अब वह जर्नलिस्ट न भी रहें। पर वह राजनीति में आएंगे। अपन को ऐसी उम्मीद नहीं। अकाली दल ने टिकट थाली में रखकर पेश किया। दमदमी टकसाल ने सम्मान का ऐलान किया। जैदी के जूते पर लाखों डालर लगे थे। तो जरनैल के जूते पर भी सवा पांच लाख लग गए। जरनैल के जूते ने एक बात तो साबित की- 'सिखों के जख्म अभी भरे नहीं।' पुलिस स्टेशन से निकलते जरनैल ने कहा- 'मेरा एक्शन गलत होगा। पर मुद्दा नहीं।' सवाल व्यवस्था पर। आखिर तीन हजार हत्याएं किसी ने तो की होंगी।

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