आम आदमी के नाम पर करोड़पतियों का राज

Publsihed: 08.Apr.2009, 20:39

सोनिया सवा करोड़ की। राहुल ढाई करोड़ के। तो आडवाणी भी साढ़े तीन करोड़ के। आडवाणी ने बुधवार को परचा भरा। तो अपन को पता चला। पर आडवाणी और राहुल, सोनिया में एक फर्क। आडवाणी ने अपने परिवार के दो फ्लैट बताए। दोनों गुड़गांव में। दोनों की कीमत 92-92 लाख। ये दोनों फ्लैट 2004 में भी थे। तब उनने कीमत 30-30 लाख भरी थी। अपन जानते हैं- यूपीए राज में कीमतें कैसे तीन गुणी हुई। आडवाणी ने फ्लैटों की ताजा कीमत भरी। एनडीए राज में मिडिल क्लास सोच भी सकता था। खरीद भी रहा था। पर अब एनसीआर में खरीदना मिडिल क्लास के बूते में नहीं। पर उधर राहुल-सोनिया की जायदाद देखिए। अपन जानते हैं महरौली में नौ लाख की सौ गज जमीन भी नहीं मिलती। पर राहुल बाबा का फार्महाऊस नौ लाख का। अपन जानते हैं इटली में 18 लाख का वन बैड रूम फ्लैट भी नहीं मिलता। पर सोनिया के घर की कीमत सिर्फ 18 लाख। असलियत से कितने दूर हैं हल्फिया बयान। हर उम्मीदवार की यही हालत। चुनाव आयोग नेताओं की प्रापर्टी दुगनी कीमत में खरीद ले। तो भी आयोग को तीन गुणा फायदा होगा।

बात उम्मीदवारों की प्रापर्टी पर चल ही पड़ी। तो शरद पवार की प्रोपर्टी भी सुन लें। मराठा लीडर 'सिर्फ' पौने नौ करोड़ का। यों महाराष्ट्र में कोई मानने को तैयार नहीं। अपन ने मराठी जर्नलिस्टों से पूछा। तो सबका कहना था- पवार सौ करोड़ से ज्यादा के मालिक। अपन दो दशक में कई गुणा प्रापर्टी बनाने वाले लीडरों को गिनें। तो मायावती अव्वल रहेंगी। गरीब परिवार में पैदा हुई थी मायावती। स्कूल टीचर की नौकरी की। काशीराम से मुलाकात हुई। तो पहले कखपति से लखपति। फिर लखपति से करोड़पति। अब करोड़पति से अरबपति। बुलंदशहर, अलीगढ़, नोएडा, गाजियाबाद, मसूरी, दिल्ली। हर जगह में मायावती की प्रापर्टी। कहीं होटल, तो कहीं पूरी की पूरी मार्केट। कम से कम सौ प्रोपर्टियों की तो रजिस्ट्री मायावती के नाम। मायावती ने भ्रष्टाचार को कानूनीजामा पहना दिया। उनने काली कमाई को सफेद बनाने का नुस्खा निकाल लिया। ऊंची जाति वाले खुद को कितना तीस मारखां समझते फिरें। पर ऐसा तरीका किसी के दिमाग में नहीं आया। उनने चंदे के छोटे-छोटे ड्राफ्ट बनवाने शुरू किए। चंदा बसपा के नाम नहीं। चंदा मायावती के नाम। बाकायदा गिफ्ट टैक्स भरा। इनकम टैक्स भी भरा। आप दांतों तले ऊंगली दबा लेंगे। मायावती ने 150 करोड़ का गिफ्ट टैक्स भरा है। सारा काला धन सफेद हो गया। आमदनी से ज्यादा संपत्ति का मुकदमा चला। तो जांच पड़ताल हुई। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने पाया- 'मायावती को 50 हजार का चैक तो एक रिक्शा चालक ने दिया था।' रिक्शा चालक ने इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से कहा- 'मैंने कोई दान नहीं दिया। मैं कहां से दान दूंगा।' और मायावती ताल ठोककर अपनी माननीय मुख्यमंत्री। लीडरों की दाल में काला नहीं। लीडरों की सारी दाल ही काली। मुलायम सिंह का किस्सा भी बताते जाएं। नेता जी जब सीएम थे। तो अपन को एक दिन अचानक पता चला- 'नेताजी जर्मनी गए हैं। साथ में अमरसिंह भी।' सरकारी तौर पर बाकायदा बयान जारी हुआ। बताया गया- 'मुख्यमंत्री उस लाईब्रेरी में गए। जहां बैठ राममनोहर लोहिया पढ़ा करते थे।' जर्मनी से मुलायम सिंह स्विटजरलैंड गए। अपन नहीं जानते। स्विस बैंक में खाता खोला या नहीं। पर स्विस बैंक का रूल है- 'खातेदार को एक बार खुद आकर दस्तखत करने पढ़ते हैँ।' किस लीडर के भीतर झांकें। फिलहाल तो उम्मीदवारों के हल्फिया बयानों की ही बात। तो अब तक के टाप टेन उम्मीदवारों की पडताल। तो उनमें तीन कांग्रेसी- विजयवाड़ा से राजगोपाल-तीन सौ करोड़। वाईएसजे रेड्डी 88 करोड़। तेजपुर से एमके सुब्बा- 60 करोड़। वही, जिसे सीबीआई ने कोर्ट में विदेशी कहा। एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल-74 करोड़। पांचवां- बीएसपी का करण सिंह तंवर-150 करोड़। छटा- मुलायमवादी अब्बू आजमी- सवा सौ करोड़। सातवां- चिरंजीवी-88 करोड़। आठवां- एयरडेकन वाले गोपीनाथ- 73 करोड़। नौवें-चंद्रबाबू नायडू-69 करोड़। दसवें- पासवानवादी प्रकाश झा- 55 करोड़।

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