जूतेबाजी तो अब चल ही निकली। नया शिकार बने नवीन जिंदल। कांग्रेस की रैली में एक जूता नवीन पर भी चला। पर कोई जूता किसी नेता को लग नहीं रहा। जूतों को भी पसंद नहीं आ रहे नेता। बुश से लेकर जिंदल तक। एक भी नेता को जूता नहीं लगा। पर अपन को डर फ्यूचर का। अब पार्लियामेंट और एसेंबलियों में भी जूते चलेंगे। स्पीकरों को मुश्किल होगी। जूते उतार कर हाल में घुसने का नियम बनाना पडेग़ा। जूतम-पैजार पहले तो सिर्फ कहावत थी। अब उसका प्रेक्टिकल रूप सामने आ गया। जरनैल के जूते ने टाईटलर-सजन का टिकट क्या कटवाया। कांग्रेस में जूतम-पैजार शुरू हो गई। टाईटलर की सज्जनता सामने आ गई। लगे शीला दीक्षित पर भड़ास निकालने। कहा- 'मेरी पार्टी के लोगों ने मौके का फायदा उठाया।' यों सब जानते हैं- टाईटलर का इशारा शीला दीक्षित की तरफ। पर नाम पूछो। तो बोलती बंद। दुश्मनी क्यों मोल लें।
अभी तो दस जनपथ में शीला का सितारा बुलंद। सो जब पूछा- 'क्या शीला दीक्षित खुश हुई होंगी?' तो वह बोले- 'आप उन्हीं से पूछिए।' यों शीला दीक्षित भी खुशी छुपा नहीं पा रही। पूछा, तो बोली- 'अब पंजाब और दिल्ली में नेगेटिव इम्पैक्ट नहीं होगा।' सो सीधा सवाल हुआ- 'क्या इसे आपकी नैतिक जीत माना जाए?' वह बोली- 'नहीं, नहीं यह मेरी पर्सनल जीत नहीं। सबकी जीत है।' यानी सिर्फ शीला नहीं, कई कांग्रेसी जुटे थे टिकट कटवाने में। सो सामने चलते जूते ही न देखिए। पीठ पीछे भी खूब चलते हैं जूते। पीठ पीछे की बात चली। तो सुनिए शरद पवार की बात। पवार का हाल तो उस कहावत जैसा- गंगा गए तो गंगा राम, यमुना गए तो यमुना राम। बुधवार को भुवनेश्वर में नवीन पटनायक के साथ खड़े थे। तो शुक्रवार को महाराष्ट्र में सोनिया के साथ। पवार को नवीन के साथ खड़ा देखा। तो प्रकाश करात की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। बोले- 'चुनाव बाद पवार तीसरे मोर्चे में आएंगे।' पर अपन जानते हैं- पवार की निगाह पीएम पद की कुर्सी पर। सो किसी ने प्रकाश करात से पूछा- 'क्या तीसरा मोर्चा पवार को पीएम बनाएगा।' करात बोले- 'यह तो आम सहमति से ही तय होगा।' इसी आम सहमति के अंदेशे से मनमोहन परेशान। मुसलमानों के लिए उर्दू का घोषणापत्र जुमे के दिन जारी किया। अपन तो इसे सांप्रदायिकता नहीं कहते। आप क्या सोचते हो, आप जानो। पर मनमोहन को अंदेशा- चुनाव बाद लालू-मुलायम-पासवान तीसरे मोर्चे में जाकर आमसहमति का पीएम बनवाएंगे। सो मनमोहन मुसलमानों के सामने मुलायम पर भी बरसे। पर बात आम सहमति की। तो पवार की निगाह भी उसी पर। तभी तो एक दिन तीसरे मोर्चे की रैली में। दूसरे दिन यूपीए की रैली में। दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहते हैं पवार। पर पवार को सबसे बड़ा झटका उध्दव ठाकरे ने दिया। पवार की निगाह सेक्युलर दलों पर तो है ही। मराठी मानुस वाली शिवसेना पर भी। पर उध्दव ठाकरे ने शुक्रवार को साफ किया- 'मराठी मानुस का मतलब सिर्फ पवार नहीं। पवार के कृषि मंत्री रहते। तो सबसे ज्यादा मराठी किसानों ने आत्महत्या की।' ठाकरे ने एक बात और भी कही। जो सौ सुनार की एक लुहार की जैसी। बोले- 'क्या वह हमारा हिंदुत्व का एजेंडा अपनाएंगे?' पर पवार की रणनीति साफ हो गई। जब शुक्रवार को उनने कहा- 'इम्तिहान में थ्योरी के साठ। तो प्रेक्टिकल के चालीस नंबर। मेरी उम्मीद हमेशा प्रेक्टिकल नंबरों पर। चुनावों बाद वामदलों की भूमिका अहम होगी।' तो अपन याद दिला दें। अर्जुन और प्रणव दा को भी वामदलों से उम्मीद थी। दोनों को लगता था- वामदल उनके नाम की शर्त रखेंगे। पर वामदलों ने सोनिया का मनमोहन कबूल कर लिया था। अब पवार को लगता है- कांग्रेस को गैर कांग्रेसी पीएम बनाना पड़ेगा। तो तीसरे मोर्चे को साधकर रखें। सो पवार एक दिन तीसरे मोर्चे के साथ। तो दूसरे दिन सोनिया के साथ। लालू-मुलायम से भी तार जोड़े हुए हैं पवार। इसे कहते हैं- पीठ पीछे का जूतम-पैजार।
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