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Exclusive Articles written by Ajay Setia

बीजेपी की गुटबाजी में अब उमा भारती का दांव

Publsihed: 18.Mar.2009, 07:53

बीजेपी को नवीन पटनायक ने झटका दिया। तो कांग्रेस को लालू-पासवान ने। मुलायम पहले ही झटका दे चुके। वैसे अपने लिए गङ्ढा खुद खोदा था कांग्रेस ने। याद है 29 जनवरी की कांग्रेस वर्किंग कमेटी। जब कांग्रेस ने यूपीए को ठोकर मारने की रणनीति बनाई थी। वर्किंग कमेटी के बाद जनार्दन द्विवेदी ने कहा था- 'यूपीए के नाते चुनाव नहीं लड़ेगी कांग्रेस। यूपीए तो शासन के लिए था।' अब जब लालू-पासवान ने कांग्रेस के लिए तीन सीटें छोड़ी। तो दस जनपथ के होश फाख्ता हो गए। वैसे कांग्रेस मांग भी ज्यादा नहीं रही थी। सिर्फ छह मांग रही थी। चार 2004 वाली। पांचवीं नालंदा की। नालंदा से जेडीयू के टिकट पर जीते थे रामस्वरूप प्रसाद। कांफिडेंस वोट में सरकार बचाने आए थे। सो कांग्रेस ने टिकट का वादा किया था।

'थर्ड फ्रंट' ने उड़ाए कांग्रेस के होश

Publsihed: 16.Mar.2009, 20:39

अपने चंद्रबाबू नायडू पहले 'थर्ड फ्रंट' के कनवीनर थे। अब नए 'थर्ड फ्रंट' का अभी तो कोई कनवीनर नहीं। लगता है- चुनाव से पहले बनेगा भी नहीं। अभी तो 'थर्ड फ्रंट' का कोई नाम भी नहीं। लोग थर्ड फ्रंट को 'थर्ड क्लास' बताने लगे। तो अब 'थर्ड फ्रंट' कहलाने पर शर्मसार। देवगौड़ा बता रहे थे- 'प्रकाश करात ने मुझे बुलाकर कहा- लोगों को थर्ड फ्रंट नाम पर एतराज।' करात ने कहा ही होगा। तभी तो घोषणा पत्र की प्रेस कांफ्रेंस में कह रहे थे- 'मीडिया कह रहा है थर्ड फ्रंट। हम तो नहीं कह रहे।' सीपीएम ने घोषणा पत्र का खाता सबसे पहले खोला।  उम्मीद के मुताबिक ही कांग्रेस-बीजेपी दोनों पर बरसे। सो सोमवार को कांग्रेस-बीजेपी भी लेफ्ट पर जमकर बरसे। पर बात हो रही थी 'थर्ड फ्रंट' की। ना नाम पर सहमति। ना पीएम पद के उम्मीदवार पर। मायावती ने अपने सिर पर खुद रखी टोपी अपने आप उतार ली।

हर दल में दलदल, हर गठबंधन में दरार

Publsihed: 13.Mar.2009, 21:09

बेनजीर भुट्टो की हत्या न होती। तो जरदारी को कोई पूछता भी नहीं। बेनजीर जब पीएम थीं। तो मिस्टर टेन परसैंट के तौर पर बदनाम थे जरदारी। बीवी मरी, तो बीवी की मौत को भुनाकर राष्ट्रपति बन बैठे। जरदारी और मुशर्रफ में कोई खास फर्क नहीं। दोनों पाकिस्तान के नेचुरल लीडर नहीं। दुश्मनी का आलम देखिए। मुशर्रफ ने नवाज शरीफ को जेल में डाला था। तो शरीफ ने जरदारी को। सब एक दूसरे से खुन्नस निकाल रहे। पर बात हो रही थी नेचुरल लीडरशिप की। मनमोहन कहां यूपीए-कांग्रेस के नेचुरल लीडर। लगता है विदेशी मूल के मुद्दे पर बाहर निकले शरद पवार को अब पछतावा। बाहर न निकलते। तो शायद मनमोहन की जगह नंबर लग जाता। दिल में दबी बात जुबां पर आ ही गई।

माया-जयललिता ने थर्ड फ्रंट में भेजे भाजपाई दूत

Publsihed: 12.Mar.2009, 20:39

तो अब तीसरे मोर्चे का पत्थर तुमकर में रखा गया। तो सबसे पहले कांग्रेस घबराई। ममता की शर्त मान ली। बंगाल की अठाईस सीटें ममता की, चौदह कांग्रेस की। कांग्रेस ममता के आगे झुकी। तो शरद पवार भी शेर हो गए। बोले- 'थर्ड फ्रंट का भी चांस। कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर समझौता न करे। तो पीएम के चुनाव में सहयोगी दलों का भी दखल होगा।' पर बात गुरुवार को फिर से जन्में थर्ड फ्रंट की। अपने हरदन हल्ली डोडेगोडा देवगौडा फिर फुदकने लगे। फिर पीएम बनने का ख्वाब देखने लगे। प्रकाश करात ने भी खूब ख्वाब दिखाए। थर्ड फ्रंट की रैली में बोले- '1996 में देश को पहली बार पता चला। कांग्रेस-भाजपा देश का भला नहीं कर सकते।' बाद में इन्हीं लैफ्टियों ने 2004 में कांग्रेस सरकार बनवाई। और देवगौड़ा ने भी खूब भला किया था देश का। सारी अर्थव्यवस्था चौपट करके गए थे।

कामराज योजना तो मोदी का ही मादा

Publsihed: 10.Mar.2009, 06:11

अपन को आशंका तो थी। पर भरोसा नहीं था। आशंका सही निकली। भरोसा टूट गया। नवीन पटनायक बीजेपी का साथ छोड़ गए। पर नवीन बाबू की हालत भी ममता जैसी। ममता ने एनडीए कभी नहीं छोड़ा। पर कांग्रेस से गठजोड़ का ऐलान कर दिया। नवीन बाबू ने शनिवार को बीजेपी से गठबंधन तोड़ा। सोमवार को बोले- 'हमने एनडीए नहीं छोड़ा।' सो यह मानकर चलिए। तीसरे मोर्चे की सरकार न बनी। तो बीजेडी एनडीए में लौटेगा। और यह भी तय मानिए। तीसरे मोर्चे की सरकार बनती दिखी। तो ममता एनडीए में लौटेगी। वैसे ममता की बात चली। तो बताते जाएं- कांग्रेस को ममता की समझ नहीं आ रही। ममता भी मुलायम के रास्ते पर चल पड़ी। सीटें तय नहीं हुई। पर उम्मीदवारों का एकतरफा एलान शुरू कर दिया। प्रणव दा की सीटी-पीटी गुल। ममता वही सीटें छोड़ रही। जिन पर कांग्रेस दो-दो लाख से हावी थी।'

अभी अस्थियां और खून का सैंपल नीलाम होगा

Publsihed: 06.Mar.2009, 20:37

सुनते हैं कांग्रेस ने 'जय हो' का पेटेंट एक करोड़ में खरीदा। पर 'गांधी' के पेटेंट पर धेला खर्च नहीं किया। गांधी के चश्मे, चप्पल, प्लेट-कटौरी, घड़ी की नीलामी पर अपन ने देखा ही। गांधी की नामलेवा कांग्रेस बोली लगाने नहीं गई। न कांग्रेस की यूपीए सरकार गई। वाजपेयी की सरकार होती। तो सोनिया-मनमोहन भूख हड़ताल पर बैठे होते। विजय माल्या ने सवा नौ करोड़ की बोली लगाकर नीलामी छुड़ाई। तो अंबिका-अभिषेक अपनी सरकार की पीठ थपथपा रहे थे। अभिषेक सिंघवी के नाम पर याद आया। 'स्लमडॉग मिलेनियर' को आस्कर मिला। तब भी उनने अपनी सरकार की पीठ थपथपाई थी। वैसे 'स्लमडाग मिलेनियर' पर कांग्रेस का पीठ ठोकना सौ फीसदी सही। आखिर देशभर में कांग्रेस ने ही तो बनवाई हैं झुग्गी-झोपड़ियां। कनाट प्लेस के चारों ओर भी झुग्गियां बसा दी थी। पिछली बार जगमोहन जीते। तो उनने सारी झुग्गियां हटवा दीं। झुग्गियों की जगह हरे-भरे पार्क बन गए। पर 2004 में जगमोहन हार गए। पता है क्यों- अजय माकन वोट डलवाने के लिए झुग्गी वालों को ढो-ढो कर लाए। सो स्लमडॉग मिलेनियर के आस्कर पर सचमुच कांग्रेस का पहला हक।

टिकटों की खींचतान में हुई शेखावत-आडवाणी गुफ्तगू

Publsihed: 06.Mar.2009, 06:39

यूपी में कांग्रेस-एसपी गठजोड़ में दरार आई। तो दोनों दलों के उम्मीदवारों को पसीना आने लगा। अकेले लड़ने की धौंस दिखाना अलग बात। मैदान में कूद कर मैदान मारना एकदम अलग। सो ऊपर से भले ही कितना अकड़ रहे हों। अंदर से मुलायम ही नहीं, दिग्गी राजा भी मुलायम। मुलायम सिंह की भी अकेले लड़ने की हिम्मत नहीं। बुधवार को तो भड़के हुए थे। पर गुरुवार को खुद रीता बहुगुणा को फोन किया। तो दिग्गी राजा बता रहे थे- 'मुलायम फ्रैंडली चुनाव को तैयार हों। तो अभी भी गठजोड़ की गुंजाइश बरकरार।' अपन ने पूछा- 'क्या कुछ उम्मीदवार मैदान से हट भी सकते हैं?' उनने कहा- 'हां  इस पर भी हो सकता है विचार।' जब से गठबंधन की राजनीति शुरू हुई। अपन तभी से ऐसी लुक्का-छिपी देख रहे। पहले एकतरफा उम्मीदवारों का एलान। फिर ले देकर गठजोड़ की कोशिश। तो यह खेल सिर्फ कांग्रेस नहीं खेल रही। शरद पवार भी कम नहीं। पर पवार का खेल सिर्फ सीटों के बंटवारे तक नहीं। पवार ने क्रिकेट और राजनीति गढमढ कर दी।

चावला की तैनाती ने याद कराई इंदिरा की कार्यशैली

Publsihed: 04.Mar.2009, 20:39

अपन ने अभी ब्लागरों पर गौर करना शुरू नहीं किया। पर अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में ब्लागरों का अहम रोल रहा। सो एलकेआडवाणी डाटकाम का आइडिया आया। वेबसाइट के जरिए आडवाणी पूरे साउथ एशिया में हिट। अपन ने पाकिस्तान का 'डॉन' अखबार खोला। तो आडवाणी की वेबसाइट का 'लोगो' दिखा। अमेरिका का 'डेलीन्यूज' देखा। तो आडवाणी को 'लोगो' दिखा। यों तो यूपीए सरकार भी वेबसाइटों के मामले में कमजोर नहीं। कांग्रेस पार्टी भी फिसड्डी नहीं। पर ब्लागरों की राय कितने पढ़ते होंगे। नवीन चावला को चीफ इलेक्शन कमिश्नर बनाने का फरमान ही लो। अपन ने ब्लागरों के ब्लाग झांके। बड़े अखबारों की वेबसाइटें देखी। इधर चावला को अगला सीईसी बनाने का

पाक का 'डबल थ्री' आतंक भी होगा अपना चुनावी मुद्दा

Publsihed: 03.Mar.2009, 20:39

'नाईन-इलेवन' के बाद 'छब्बीस-ग्यारह'। और अब 'डबल थ्री'। सो अब अपन को आतंकवाद बड़ा चुनावी मुद्दा बनने का भरोसा। मुंबई के बाद राजस्थान दिल्ली में नहीं बना होगा। पर लोकसभा चुनावों में बनेगा। अपन को मनमोहन का स्टेटमेंट नहीं भूलता। जो उनने सोलह सितंबर 2006 को मुशर्रफ से मुलाकात के बाद दिया। मुलाकात हुई थी हवाना में। मौका था निर्गुट सम्मेलन। वहीं पर आतंकवाद के खिलाफ साझा मैकेनिज्म तय हुआ। मनमोहन ने कहा था- 'पाक भी आतंकवाद का शिकार।' मनमोहन ने यह कहकर पाकिस्तान के सारे पाप धो दिए। अपन तो दो दशक से पाकिस्तानी आतंकवाद के शिकार हैं। मनमोहन ने अमेरिकी दबाव में ऐसा काम किया। जो किसी भारतीय के पल्ले नहीं पड़ा।

चुनावी डुगडुगी के साथ ही सेंधमारी की तैयारी

Publsihed: 02.Mar.2009, 20:43

तो चुनावी डुगडुगी बज गई। गोपाल स्वामी जब डुगडुगी बजा रहे थे। तो नवीन चावला बाएं, कुरैशी दाएं बैठे थे। अपन ने तो शनिवार को ही लिख दिया था- 'सोमवार को होगा चुनाव का ऐलान।' पर चावला के छुट्टी पर जाने की खबर उड़ी। तो भाई लोगों को लगा- फिर झगड़ा शुरू। बात झगड़े की चल ही पड़ी। तो याद दिला दें- सीईसी गोपाल स्वामी की सिफारिश- ईसी चावला को हटाने की थी। दोनो अगल-बगल बैठे, तो सरकार की मेहनत साफ दिखी। सरकार अपनी तीन साल की मेहनत पर पानी क्यों फेरती। चुनाव में चावला सीईसी हों। इसीलिए तो तीन साल पहले ईसी बनाया था। सो, गोपाल स्वामी की सिफारिश कूड़ेदान में गई। अपन को सरकार से यही उम्मीद थी। इतवार को सिफारिश रद्द। सोमवार को चुनावों का ऐलान। यह कोई संयोग नहीं।