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Exclusive Articles written by Ajay Setia

पत्थर पर लकीर नहीं कश्मीर में चुनाव टालना

Publsihed: 15.Oct.2008, 05:57

पांच राज्यों के चुनावों का बिगुल बज गया। महीनेभर से हो रहा था इंतजार। जिससे बात करो। यही पूछता था- 'कब होगा ऐलान।' यों 45 दिन की आचार संहिता पर आम सहमति। वैसे कोई हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं। चार-पांच राज्यों में इकट्ठे चुनाव होंगे। तो किसी में चालीस और किसी में पचास-पचपन दिन भी होगी। इस बार छत्तीसगढ़ में सिर्फ 30-36 दिन की आचार संहिता। मध्यप्रदेश में 40 दिन की। दिल्ली में 44 दिन की। तो राजस्थान में 50 दिन की। सो चुनाव वक्त पर ही घोषित हुए।

घिर गईं सोनिया, चले थे येदुरप्पा-नवीन को घेरने

Publsihed: 14.Oct.2008, 06:12

अपन ने ऐसी सरकारी मीटिंग कभी नहीं सुनी- देखी। जैसे सोमवार को राष्ट्रीय एकता परिषद की हुई। मुख्यमंत्री लिखकर स्पीच लाए थे। उनके एक हाथ में माइक थमा दिया। दूसरे में अपनी कापी लेकर खड़े थे। क्या जरूरत थी, संसद की लाइब्रेरी में मीटिंग की। विज्ञान भवन किसलिए बनाया था। येदुरप्पा बोले- 'मीटिंग हड़बड़ी में हुई दिखी। न प्लानिंग, न एजेंडा।' यों भी एक दिन की मीटिंग में 164 मेंबर कैसे बोलते। साजिश तो खूब रची।

कश्मीर में चुनाव टलवाने की कुटिल चालें, पर....

Publsihed: 11.Oct.2008, 06:15

शुक्रवार को दिनभर कश्मीर का हल्ला मचा। चुनाव आयोग में मधुकर गुप्ता को बुलाकर सुरक्षा बंदोबस्त का जायजा लिया। तो चुनावों के ऐलान का इंतजार होने लगा। होम सेक्रेट्री मधुकर कुछ दिन पहले भी बुलाए गए थे। तब उनने चुनाव टालने की पैरवी की थी। बहाना बनाया था कश्मीर के हालात का। तब सीईसी गोपालस्वामी ने पूछा- 'आप बताओ 2002 में कैसे हालात थे। तब भी तो चुनाव हुए थे।' होम सेक्रेट्री की सीटी-पीटी गुल। बताते जाएं- 2002 में जब वाजपेयी ने एसेंबली चुनाव करवाए। तो खुद गोपालस्वामी होम सेक्रेट्री थे।

ऐसा नहीं जो समझ नहीं आती होगी बुश की भाषा

Publsihed: 10.Oct.2008, 07:09

मनीष तिवारी पता नहीं सो रहे थे या जाग रहे थे। पर अपन ने सीएनएन पर बुश को दस्तखत करते लाईव देखा। यों अपन आधी रात से दिन नहीं बदलते। हिंदू संस्कृति में दिन की शुरूआत सूरज की पहली किरण से ही। पर सेक्युलर दिन की शुरूआत रात के अंधेरे में बारह बजे से ही। पर बारह भी बजे नहीं थे। जब बुश ने दस्तखत किए। दशहरे का दिन शुरू नहीं हुआ था। पर मनीष तिवारी को जुमला कसना था। सो उनने जुमला कसा- 'बुश के दस्तखत करते ही बुराई पर अच्छाई की जीत हुई।'

आजकल के नेता- एक चिरकुट, तो दूसरा पागल

Publsihed: 08.Oct.2008, 20:39

मनमोहन की एक मुश्किल हो तो बताएं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक। मुसीबतों का पहाड़ खड़ा होने लगा। खुद इक्नामिस्ट, पर मार्किट नहीं सुधर रही। पहले महंगाई बढ़ी। तो दुनियाभर में महंगाई की दुहाई दी। अब मार्किट डांवाडोल। तो दुहाई फिर अमेरिकी-यूरोपीय मार्किट की। मार्किट गिरी, तो चिदंबरम बोले- 'घबराने की बात नहीं। आर्थिक हालत मजबूत।' पता नहीं देश की आर्थिक हालत की बात कर रहे थे या अपनी।

विकास पुरुष का तमगा ले उड़े मोदी

Publsihed: 07.Oct.2008, 21:08

लो, अपना कहा सच निकला। अपन ने चार सितंबर को लिखा था- 'मोदी ने विलासराव-शिवराज की तरह ढिंढोरा नहीं पीटा। चुपके से न्योता उनने भी दिया। अपन को लगता है- खंडूरी की आधी मलाई मोदी ही खाएंगे।' बात हो रही थी उत्तराखंड के पंतनगर प्लांट से नैनो आने की। पर आखिर वही हुआ। मोदी चुपके से नैनो प्लांट ले उड़े। शिवराज चौहान और विलासराव भी बाट जोहते रह गए।

लाचार कांग्रेस को आडवाणी की चुनौती

Publsihed: 07.Oct.2008, 04:08

उड़ीसा की राजनीतिक जंग तेज हो गई। शकील अहमद ने राष्ट्रपति राज की धमकी दी। शिवराज पाटिल ने भी 356 का इशारा किया। तो अपन को लगा अब राष्ट्रपति राज लगा समझो। पर सोमवार को कांग्रेस लाचार दिखी। अब खुद केंद्र सरकार पर सवालिया निशान। राजनीतिक गलियारों में सवाल उठने लगा- 'नवीन पटनायक ने तो कोई कसर नहीं छोड़ी।

आया मौसम चुनावी रेवड़ियों का

Publsihed: 03.Oct.2008, 20:41

एटमी करार चुनावी मुद्दा नहीं होगा। मनमोहन-प्रणव कितना भी ढोल पीटें। सोनिया कितनी भी बधाईयां दें। करार चुनावी मुद्दा बनना होता। तो केबिनेट चुनावी रेवड़ियां बांटना शुरू नहीं करती। पर पहले बात एटमी करार की। सोचो, एटमी करार सोनिया ने किया होता। तो दस जनपथ पर हफ्तों ढोल-नगाड़े बजते। मनमोहन ने सब कुछ दांव पर लगाकर बुश को खुश किया। पर  सिर्फ सोनिया की बधाई से सब्र करना पड़ा। अपन ने कल लिखा था- 'बुश के हाथों में लड्डू, मनमोहन खाली हाथ।' यह बात शुक्रवार को सही साबित हुई।

बुश के हाथों में लड्डू मनमोहन खाली हाथ

Publsihed: 02.Oct.2008, 20:39

अमेरिकी सीनेट ने एटमी करार को हरी झंडी क्या दी। यूपीए सरकार और कांग्रेस फूली नहीं समाई। खुशी के मारे झूठ के फव्वारे फूट गए। सिर्फ अभिषेक मनु सिंघवी झूठ बोलते। तो अपन को पच भी जाता। नेताओं का तो काम ही झूठ बोलना। पर अपने सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन भी झूठ बोले। ऐसा झूठ नहीं बोलना चाहिए, जो फौरन पकड़ा जाए। सिंघवी बोले- 'यह त्यौहार मनाने का मौका। एनपीटी-सीटीबीटी पर दस्तखत भी नहीं किए। न्यूक्लियर क्लब में शामिल भी हो गए।'

सिगरेट पर रोक से सच्चे गांधीवादी हुए मनमोहन

Publsihed: 01.Oct.2008, 20:39

दस फरवरी को अपन अस्पताल पहुंचे। तो डाक्टर का पहला सवाल था- 'सिगरेट पीते हो?' नब्बे के दशक में अपन जब चंडीगढ़ हुआ करते थे। तो 'कांग्रेस घास' से अलर्जी हो गई। कांग्रेस घास की बात बताते जाएं। अपने यहां जब गेहूं की कमी हुआ करती थी। तो अपन ने विदेशों से गेहूं का बीज मंगवाया। गेहूं की इसी विदेशी फसल के साथ जगह-जगह कांग्रेस घास उग आई। जितनी काटो, उतनी ज्यादा उगने लगी।