सिगरेट पर रोक से सच्चे गांधीवादी हुए मनमोहन

Publsihed: 01.Oct.2008, 20:39

दस फरवरी को अपन अस्पताल पहुंचे। तो डाक्टर का पहला सवाल था- 'सिगरेट पीते हो?' नब्बे के दशक में अपन जब चंडीगढ़ हुआ करते थे। तो 'कांग्रेस घास' से अलर्जी हो गई। कांग्रेस घास की बात बताते जाएं। अपने यहां जब गेहूं की कमी हुआ करती थी। तो अपन ने विदेशों से गेहूं का बीज मंगवाया। गेहूं की इसी विदेशी फसल के साथ जगह-जगह कांग्रेस घास उग आई। जितनी काटो, उतनी ज्यादा उगने लगी।

पंजाब, हरियाणा में तो कांग्रेस घास के खिलाफ आंदोलन चले। कितने ही लोग कांग्रेस घास से दमे के मरीज हो गए। सो अपन ठहरे सांस के मरीज। सिगरेटनोशी का क्या काम। यों अपन बचपन से सिगरेट नहीं पीते। पर दिल का कोई मरीज अस्पताल पहुंचे। तो डाक्टर का पहला सवाल यही होगा। सो मनमोहन सिंह ने एक फैसला तो सही किया। गुरु के सच्चे सिख का फर्ज निभाया। जो आज गांधी जयंती से स्मोकिंग पर रोक लगा दी। सिगरेटनोशियो सावधान। होटलों, रेस्टोरेंटों, दारू के अड्डों, दफ्तरों में अब सिगरेटनोशी नहीं चलेगी। बस अड्डों-हवाई अड्डों में भी स्मोकिंग पर रोक। कानून तो वाजपेयी ही बना गए थे। मनमोहन को लागू करने में चार साल लगे। यों लागू करने में अड़चनें कम नहीं थी। तीस मई को नोटिफिकेशन जारी हुआ। तो इंडियन टोबाको कंपनी और होटल एसोसिएशन हाईकोर्ट पहुंच गए। मनमोहन सरकार को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। शुकर है गांधी जयंती से दो दिन पहले कोर्ट का फैसला आ गया। कोर्ट ने नोटिफिकेशन पर स्टे से इंकार कर दिया। सिगरेटनोशी पर रोक समाज के सहयोग बिना नहीं लगेगी। सो एनजीओ की भागीदारी भी होगी। अपन बात कर रहे थे दिल के दौरे की। तो बताते जाएं। सिगरेटनोशी से सिर्फ दिल का दौरा ही नहीं पड़ता। अलबत्ता सिर से लेकर पांव तक बीमारियों का पैगाम है सिगरेटनोशी। लगातार सिगरेटनोशी से बालों में बदबू आने लगती है। बालों की बढ़ोत्तरी पर असर पड़ता है। बाल पतले, रूखे और सफेद होने लगते हैं। बालों के बाद बारी दिमाग की। दिमाग पर तो बहुत बुरा असर डालती है सिगरेट। कारोटिड नस में रुकावट आ जाए। तो दिमाग को खून की सप्लाई नहीं होती। सो ब्रेन हेमरेज का खतरा। खून मोटा हो जाए। तो थक्का जमने का खतरा। दिमाग के बाद बारी आंखों की। अंधेपन तक पहुंच सकती है नौबत। नाक तो सूंघना बंद कर सकता है। सिगरेट पीते हो। तो जरूर दांत पीले हो गए होंगे। सुबह उठकर ब्रश करते होंगे। तो मसूड़ों से खून निकलता होगा। मुंह के कैंसर तक का खतरा। बात वहां तक न पहुंचे। तो स्वाद की पहचान तो जाती ही रहेगी। गला रोज-रोज सूजा करेगा। सांस से गंध आया करेगी। खून का दबाव घटेगा, तो ऊंगलियां ठंडी हो जाएंगी। सांस लेने की बीमारी तो हर हालत में होगी। फेफड़ों का कैंसर होने का भी खतरा। गले से नीचे उतरो। तो बारी आई दिल की। खून में कोलोस्ट्रोल बढ़ेगा। तो दिल का दौरा पडना तय। दौरा न भी पड़े, तो दिल के मरीज तो होंगे ही। दिल से नीचे पाचन प्रणाली। अलसर, गालस्टोंस और अमाश्य के कैंसर का खतरा। जहां तक बात त्वचा की। तो झुर्रियां जल्दी पड़ेंगी। वक्त से पहले बूढ़े लगोगे। पांवों में दर्द रहने लगेगा। ऐसा नहीं, जो इन बीमारियों की खोज वाजपेयी-मनमोहन राज में ही हुई हो। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने पिछले साल अपनी रपट में लिखा था- 'किसी भी बीमारी से ज्यादा लोग सिगरेटनोशी से मरते हैं।' यों अपन पब्लिक प्लेस पर रोक लगाकर कोई बड़ा तीर नहीं मार रहे। इंग्लैंड में पिछले साल जुलाई से ही हू-ब-हू ऐसी ही रोक लग चुकी। अलबत्ता अपन से एक दिन पहले पहली अक्टूबर से नई शुरूआत हुई। अब वहां सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी लिखी नहीं होगी। अलबत्ता डाक्टर दिल का ऑपरेशन करता दिखेगा। किसी मरीज का गला सूजा हुआ दिखेगा। ग्राफिक से सिगरेटनोशी के नुकसान दिखाने शुरू कर दिए।

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