पांच राज्यों के चुनावों का बिगुल बज गया। महीनेभर से हो रहा था इंतजार। जिससे बात करो। यही पूछता था- 'कब होगा ऐलान।' यों 45 दिन की आचार संहिता पर आम सहमति। वैसे कोई हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं। चार-पांच राज्यों में इकट्ठे चुनाव होंगे। तो किसी में चालीस और किसी में पचास-पचपन दिन भी होगी। इस बार छत्तीसगढ़ में सिर्फ 30-36 दिन की आचार संहिता। मध्यप्रदेश में 40 दिन की। दिल्ली में 44 दिन की। तो राजस्थान में 50 दिन की। सो चुनाव वक्त पर ही घोषित हुए।
अपन को याद है- एक बार साठ दिन की आचार संहिता लगी। तो राजनीतिक दलों ने घमासान किया था। आचार संहिता तो सरकार पर लगती है। पर उम्मीदवारों का खर्चा उसी दिन से शुरू। इतने दिन पहले चुनाव प्रचार का खर्चा उठाना भी मुश्किल। यों भी चुनाव बहुत महंगे हो गए। भले ही उम्मीदवार चुनाव आयोग में झूठा खर्चा दाखिल करें। पर एक करोड़ से कम खर्चा नहीं होगा। जितने दिन ज्यादा होंगे। उतना ज्यादा खर्चा। पर बात छत्तीसगढ़ की। जहां सिर्फ 30 से 36 दिन की आचार संहिता लगी। छत्तीसगढ़ में 14 और 20 नवंबर को होंगे चुनाव। नक्सल प्रभावित राज्य होने के कारण दो चरण। बाकी सब जगह तो एक ही दिन निपट जाएंगे चुनाव। दिल्ली-मिजोरम 29 नवंबर को निपट जाएंगे। मध्यप्रदेश 25 नवंबर को। तो राजस्थान पांच दिसम्बर को। जेब तो अच्छी तरह ढीली होगी राजस्थान के उम्मीदवारों की। यों चुनाव भी सबसे ज्यादा राजस्थान का मजेदार। पर बात जम्मू कश्मीर की। जहां फिलहाल चुनाव का ऐलान नहीं हुआ। ऐसा आभास तो अपन को पांच दिन पहले से था। अपन ने 11 अक्टूबर को लिखा ही था- 'कश्मीर में चुनाव टलवाने की कुटिल चालें, पर...।' आखिर वे कुटिल चालें कामयाब रही। जैसा अपन ने लिखा था। हू-ब-हू वैसा ही हुआ। कुरैशी-चावला एक तरफ हो गए। तो गोपालस्वामी अकेले पड़ गए। कांग्रेस ऐलान कर रही थी- 'हम फौरी चुनाव के हक में।' पर कोशिश कर रही थी- चुनाव टल जाएं। नेशनल कांफ्रेंस के खिलाफ नहीं जाना चाहती कांग्रेस। ऊपर से भले ही पीडीपी को अभी भी यूपीए में बताए। पर गुलामनबी - उमर अब्दुल्ला में खिचड़ी पक चुकी। चुनाव से पहले गठबंधन नहीं होगा। चुनाव के बाद नेशनल कांफ्रेंस की सरकार बनवाएगी कांग्रेस। चुनावी गोटियां अपन बाद में बताएंगे। फिलहाल बताते जाएं- सैफुद्दीन सोज, फारुख अब्दुल्ला, मोहम्मद असलम, टीएस बाजवा की राज्यसभा मेंबरी इसी महीने खत्म। अब इस महीने एसेंबली बननी नहीं। सो जम्मू कश्मीर की चारों सीटें खाली रहेंगी। सैफुद्दीन सोज तो केंद्र में मंत्री। यों छह महीने बिना सांसद रहे मंत्री रहने का हक। पर नया विवाद शुरू हो गया। क्या सैफुद्दीन को मेंबरी खत्म होते ही फौरन इस्तीफा देना चाहिए? पर एसेंबली चुनाव लोकसभा चुनाव तक टले। तो सैफुद्दीन को मंत्री पद छोड़ना ही पड़ेगा। यों पंद्रह दिसंबर तक चुनाव न हुए। तो पंद्रह मार्च के बाद ही होंगे। सो गवर्नर राज का वक्त छह महीने बढ़ाना पड़ेगा। जो फिलहाल दस जनवरी तक। पर अपन को अभी भी चुनाव वक्त पर होने की उम्मीद। आप छत्तीसगढ़ का उदाहरण लो। जहां नक्सलवाद के कारण चुनाव प्रचार का कम वक्त। तो जम्मू कश्मीर में पच्चीस दिन ही काफी। वैसे भी पिछली बार को याद करिए। वाजपेयी ने जब एसेंबली चुनाव करवाए। तो चुनाव की सारी प्रक्रिया पच्चीस दिन में निपटा ली थी। तीस दिन का जरूरी पीरियड भी घटाकर बीस दिन हुआ था। सो अपन को अब भी दिल्ली-मिजोरम-छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के बाद चुनाव की उम्मीद। पंद्रह दिसंबर तक चुनाव करवाने हों। तो बीस नवंबर को ऐलान ही काफी। सो अपन को लगता है एक बार फिर होगा विचार।
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