ऐसा नहीं जो समझ नहीं आती होगी बुश की भाषा

Publsihed: 10.Oct.2008, 07:09

मनीष तिवारी पता नहीं सो रहे थे या जाग रहे थे। पर अपन ने सीएनएन पर बुश को दस्तखत करते लाईव देखा। यों अपन आधी रात से दिन नहीं बदलते। हिंदू संस्कृति में दिन की शुरूआत सूरज की पहली किरण से ही। पर सेक्युलर दिन की शुरूआत रात के अंधेरे में बारह बजे से ही। पर बारह भी बजे नहीं थे। जब बुश ने दस्तखत किए। दशहरे का दिन शुरू नहीं हुआ था। पर मनीष तिवारी को जुमला कसना था। सो उनने जुमला कसा- 'बुश के दस्तखत करते ही बुराई पर अच्छाई की जीत हुई।'

सो कांग्रेस के 'राम' तो अब बुश। फेर अपनी-अपनी समझ का। अपन को तो बुश के हाथों अपनी स्वायत्तता स्वाहा होती दिखी। अपन को परमाणु बिजली पर कोई एतराज नहीं। रिएक्टर लाए जाएं, यूरेनियम लाया जाए। किसे ऐतराज होगा। पर अमेरिकी शर्तों पर क्यों? अपना एटमी करार फ्रांस के साथ हो चुका। रूस करार करने को तैयार। दो-चार देशों को छोड़ दो। बाकी एनएसजी देश तो यूरेनियम देने को तैयार ही। पर मनमोहन अमेरिका से ही करार को क्यों उतावले। यों अपने विरोध से अब कुछ नहीं होना। संसद में किए वादे नहीं निभाने की शर्म भी नहीं। प्रणव दा कल दस्तखत कर देंगे। अपन ने तीस सितंबर को लिखा था- 'कोंडालीसा राइस 19 अक्टूबर से पहले दस्तखत कर जाएंगी। विपक्ष चाहे तो लोकसभा से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ ले।'  मनमोहन का इरादा 19 से सत्र शुरूआत से पहले दस्तखत का। ताकि संसद लकीर पीटती रह जाए। कोंडालीसा राइस तो तीन अक्टूबर को ही आ पहुंची थी। वह तो उसी दिन दस्तखत को उतावली थी। अपनी स्वायत्तता को अग्नि देकर गांधी को श्रध्दांजलि देती। वह तो बुश के दस्तखत का फच्चर फंस गया। खैर दशहरे से ठीक पहले बुश ने दस्तखत किए। अब प्रणव दा दस्तखत को उतावले। यों तो जिस दिन एनएसजी ने हरी झंडी दी। अपना एटमी वनवास तो तभी खत्म हो गया था। फिर सरकोजी ने अपन से एटमी डील भी कर ली। पर कांग्रेस बुश के दस्तखत से गदगद। बुश की भाषा मनमोहन को समझ नहीं आती होगी। अपन ऐसा नहीं मानते। मनीष तिवारी को भी समझ तो आती होगी। कोंडालीसा राइस चार अक्टूबर को साफ-साफ कह गई थी- 'हाईड एक्ट की शर्तें लागू होंगी।' बुश ने भी दस्तखत करते समय साफ-साफ कहा- 'जैसा मैंने अमेरिकी कांग्रेस को बताया- करार एटमी एनर्जी लॉ और बाकी कानूनों के अनुरूप।' यानी एटमी एनर्जी लॉ भी लागू होगा, हाईड एक्ट भी। दोनों कानूनों में करार वाले देश को न्यूक टेस्ट का हक नहीं। अपन शुरू से कह रहे थे- 'फायदा अमेरिका का।' वह बात बुश की जुबान पर आ ही गई। उनने कहा- 'अमेरिकी कंपनियों के लिए व्यापार के नए दरवाजे खुलेंगे।' मंदी के दौर में बुश का अपने देश को इससे बड़ा तोहफा और क्या होता। अब रिपब्लिकन उम्मीदवार मैककेन का चांस भी बढ़ेगा। अपन को पता है, अब कुछ नहीं हो सकता। पर देश को याद कराना अपना फर्ज। मनमोहन ने सत्रह अगस्त 2007 को संसद में वादा किया था- 'हाईड एक्ट करार पर लागू नहीं होगा।' मनमोहन-प्रणव को बुश का कहा समझ नहीं आता। या जानबूझकर समझना नहीं चाहते। न्यूक टेस्ट पर बुश की चुप्पी का मतलब यह नहीं। जो न्यूक टेस्ट करने पर चुप रहेगा अमेरिका। हाईड एक्ट को पढ़ लें मनमोहन। अमेरिका के एटमी एनर्जी एक्ट को भी पढ़ लें। संसद से ऐसा विश्वासघात पहले कभी किसी ने नहीं किया। ताकि सनद रहे, सो राजीव प्रताप रूढ़ी बोले- 'यह देश की हार है। बुराई पर अच्छाई की नहीं। बदकिस्मती से सत्य पर असत्य की जीत है।'

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