उड़ीसा की राजनीतिक जंग तेज हो गई। शकील अहमद ने राष्ट्रपति राज की धमकी दी। शिवराज पाटिल ने भी 356 का इशारा किया। तो अपन को लगा अब राष्ट्रपति राज लगा समझो। पर सोमवार को कांग्रेस लाचार दिखी। अब खुद केंद्र सरकार पर सवालिया निशान। राजनीतिक गलियारों में सवाल उठने लगा- 'नवीन पटनायक ने तो कोई कसर नहीं छोड़ी।
फोरन केंद्रीय सुरक्षा बल मंगवा लिए। थोड़े-बहुत नहीं, अलबत्ता थोक में बुला लिए। अब कंधमाल में पुलिस दिखती भी नहीं। फिर भी हालात नहीं सुधरे। तो नवीन सरकार क्या करे।' खुफिया विभाग की रपट तो और चौंकाने वाली। खुफिया रपट ने कांग्रेस की सिटी-पिटी गुल कर दी। रपट है- 'उड़ीसा में 356 लगाई। तो बाकी राज्यों में हिंदुओं का गुस्सा फूटेगा।' असम की गलतियों के नतीजे सामने आने लगे। जहां बांग्लादेशी घुसपैठिए पहले काबिज हुए। अब लोकल लोगों पर हमलावर हो गए। देश की सीमाओं के भीतर घुसकर हमले का यह अनोखा तरीका। जैसे कश्मीरी पंडितों के निर्वासन का ठीकरा कांग्रेस पर। अब वैसे ही असम के हालात का ठीकरा भी कांग्रेस के सिर। सोमवार को दिल्ली में विजय कुमार मल्होत्रा की 'विजय संकल्प रैली' हुई। तो आडवाणी बोले- 'बांग्लादेशी बोडो एरिये में घुसे। तो तरुण गोगोई सरकार ने आंखें क्यों मूंदी? यूपीए सरकार ने आंखें बंद क्यों की? कांग्रेस ने घुसपैठियों को पाला-पोसा। घुसपैठिए कांग्रेस का वोट बैंक। अब वही घुसपैठिए देश की सुरक्षा को खतरा।' असम के हालात पर देश का गुस्सा अभी दिखा नहीं। पर बांग्लादेशियों के हमले जारी रहे। तो कंधमाल जैसा गुस्सा देशभर में बांग्लादेशियों पर फूटेगा। बात कंधमाल की। तो जैसे असम में बांग्लादेशी मुस्लिम कांग्रेस का वोट बैंक। हू-ब-हू वैसे ही उड़ीसा के इसाई कांग्रेस का वोट बैंक। सो कंधमाल की लड़ाई भी असम जैसी। लड़ाई स्वदेशी और विदेशी की। लड़ाई आरक्षण और जमीन की। पर कंधमाल में नन के रेप ने बीजेपी के होश उड़ा दिए। सो आडवाणी ने वैंकैया को उड़ीसा भेजा। हालात का जायजा लेकर दिल्ली लौटे। तो खुद वैंकैया के होश उड़े हुए थे। बजरंगदली कदम पीछे हटाने को राजी नहीं। अब बीजेपी की धुकधुकी तेज हो चुकी। उड़ीसा के हालात कर्नाटक जैसे नहीं। जहां बजरंगदलियों के लिए मोदी बन गए यदुरप्पा। उड़ीसा में लक्ष्मणानंद की हत्या पर वर्षों का दबा गुस्सा फूटा। सो केंद्र की पैरा मिलिट्री फोर्स भी नाकाम। पर असल सवाल 356 की धमकी का। क्या नवीन सरकार भंग होगी? यों सोमवार को जयंती नटराजन भी नवीन सरकार पर गुर्राई। बोली- 'संविधान के मुताबिक काम करने में नाकाम।' पर दिग्गी राजा ज्यादा समझदार लगे। वह जानते हैं- राष्ट्रपति राज लगाना आसान नहीं। पहली बात तो बीजेपी का आरोप सही साबित होगा। कांग्रेस के हिंदू विरोधी होने का आरोप। जो कश्मीर-असम में पहले ही साबित हो चुका। दूसरी बात संसद में बहुमत की। लोकसभा में तो खरीद-फरोख्त से सरकार बच गई। राज्यसभा में बहुमत नहीं। जो राष्ट्रपति राज लगाने के लिए बेहद जरूरी। जब तक लेफ्ट ने पत्ते न खोले। तब तक कांग्रेस लाचार। अब बात लेफ्ट की। लेफ्ट ने उड़ीसा पर बयान तो जरूर जारी किया। पर 356 की मांग नहीं की। सिर्फ सीबीआई जांच की मांग की। लेफ्ट यों भी 356 के खिलाफ। सो लालू के कहने पर 356 लगाई। तो यूपीए का कहीं बिहार वाला हाल न हो। जहां लालू के कहने पर राष्ट्रपति राज लगा था। सुप्रीम कोर्ट की फटकार भी पड़ी। बिहार में लुटिया भी डूबी। दिग्गी राजा ने दबी जुबान से ही सही। पर लालू को संदेश दे दिया। बोले- 'उड़ीसा में राजनीतिक तौर पर लड़ना पड़ेगा। एडमिनिस्ट्रेटिव तौर पर नहीं।' उनने राजनीतिक लड़ाई के तेवर भी दिखाए। बोले- 'अब नवीन और नीतीश तय करें, बीजेपी के साथ कब तक रहेंगे।' यों भले ही आडवाणी बजरंगदलियों की हरकतों से खफा। पर कांग्रेस को तो साफ चेतावनी दी। बोले राष्ट्रपतिराज की हिमाकत की। तो गंभीर नतीजे भुगतने को तैयार रहे। यानि कांग्रेस की चेतावनी के जवाब में बीजेपी की चुनौती।
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