आया मौसम चुनावी रेवड़ियों का

Publsihed: 03.Oct.2008, 20:41

एटमी करार चुनावी मुद्दा नहीं होगा। मनमोहन-प्रणव कितना भी ढोल पीटें। सोनिया कितनी भी बधाईयां दें। करार चुनावी मुद्दा बनना होता। तो केबिनेट चुनावी रेवड़ियां बांटना शुरू नहीं करती। पर पहले बात एटमी करार की। सोचो, एटमी करार सोनिया ने किया होता। तो दस जनपथ पर हफ्तों ढोल-नगाड़े बजते। मनमोहन ने सब कुछ दांव पर लगाकर बुश को खुश किया। पर  सिर्फ सोनिया की बधाई से सब्र करना पड़ा। अपन ने कल लिखा था- 'बुश के हाथों में लड्डू, मनमोहन खाली हाथ।' यह बात शुक्रवार को सही साबित हुई।

जब अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री रिचर्ड वाउचर बोले- 'करार अमेरिकी कारोबार के लिए खास उपलब्धि।' बुश को बिगड़ रही माली हालत की फिक्र न होती। तो वह अपन को एटमी ईंधन देने को इतनी भागदौड़ क्यों करते।  कोंडालीसा राइस दस्तखत करने भारत क्यों आती। मनमोहन-प्रणव कितना ढोल पीटें। पर झूठ के पांव नहीं होते। आवाम में करार पर शक-शुबा कायम। कांग्रेस को बचाव मुद्रा में आने का अंदेशा। सो सोनिया-राहुल एटमी करार को गांव से जोड़ने की फिराक में। पीआर कंपनी क्रियोंस प्रचार का एजेंडा तैयार करने में जुट गई। शुक्रवार को खुद राहुल ने क्रियोंस को ठेका दिलाया। हो-ना-हो सोनिया 'हर खेत को टयूबवैल' की बात कहेंगी। राहुल 'हर हाथ को काम' का पोस्टर बारां में बनवा ही आए। जहां उनने रोजगार गारंटी योजना के तहत 'बारां' में मिट्टी की तगारियां ढोई। यों राहुल बेरोजगार नहीं। पर अब मिट्टी उठाने वाला फोटू चुनावी पोस्टर बनेगा। भीड़ तो सोनिया और राहुल ही जुटाएंगे। मनमोहन-प्रणव दा भीड़ जुटाऊ नेता नहीं। वह तो अपन पंजाब के चुनाव में भी देख चुके। जब मनमोहन पंजाब में कांग्रेस के काम नहीं आए। तो पूरे देश में क्या आएंगे। एटमी करार न कांग्रेस को वोट दिलाएगा। न एटमी करार का विरोध बीजेपी को। इसलिए बीजेपी ने वक्त रहते विरोध का झंडा झुका लिया। अमेरिकी कांग्रेस-सीनेट से हरी झंडी मिली। तो करार विरोधी एक्सपर्ट सिन्हा-शौरी-जसवंत सामने नहीं आए। अलबत्ता हल्के-फुल्के प्रवक्ता राजीव प्रताप रूढ़ी को आगे किया। वक्त की नजाकत को बुश ने भी पहचाना। सो दस्तखत करने आई कोंडालीसा आडवाणी से भी मिलेंगी। बीजेपी के एजेंडे में अब सबसे ऊपर आतंकवाद। उससे जुड़ी है राष्ट्रीय सुरक्षा। दूसरा मुद्दा महंगाई का। तीसरा मुद्दा- यूपीए सरकार की तुष्टिकरण नीति। तुष्टिकरण में तो कांग्रेस बुरी तरह उलझ गई। दिल्ली की जामिया मुठभेड़ पर भी तुष्टिकरण अपनाने लगी। अपने दिग्गी राजा ने मुठभेड़ पर सवाल उठा दिया। मुठभेड़ में मारे गए इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा को भी भूल गए। जिनकी शव यात्रा में कांग्रेसी श्रेय लेने उमड़ पड़े थे। अल्पसंख्यकवाद का नजारा शुक्रवार की केबिनेट में भी दिखा। जब लालू यादव ने कर्नाटक-उड़ीसा की हिंसा का सवाल उठाया। तो मनमोहन ने सोनिया के पाटिल से जवाब तलब किया। सहमे पाटिल ने मीटिंग खत्म होते ही उड़ीसा को फटकार भरी चिट्ठी भिजवाई। कर्नाटक-उड़ीसा बीजेपी के गले की फांस। पर लालू कहीं यह फांस कांग्रेस के गले में न अटका दें। पहले लालू की ऐसी ही हरकत से कांग्रेस गुजरात हार चुकी। यों हार-जीत का फैसला मुद्दों-सिध्दांतों पर कम होगा। गठबंधनों की शक्ल-सूरत देखकर ज्यादा होगा। जिसका चुनाव से पहले गठबंधन ज्यादा अच्छा होगा। उसका पलड़ा भारी होगा। यूपीए खुद को एकजुट रखने की जद्दोजहद में। तो एनडीए अपना कुनबा बढ़ाने की फिराक में। तब तक मनमोहन सरकार चुनावी रेवड़ियां बांटने में मशगूल। शुक्रवार को रेवड़ियां बंटनी शुरू हो गई। बारह नई नेशनल यूनिवर्सिटियों का ऐलान। रेलवे कर्मचारियों को सत्तर की बजाए तिहत्तर दिन का बोनस। ओबीसी की क्रीमीलेयर ढाई लाख से बढ़कर चार लाख। पहले तो क्रीमीलेयर के ही खिलाफ था यूपीए। अदालत ने क्रीमीलेयर को आरक्षण से हटाया। तो अब मलाईदारों को मलाई बांटने का नया रास्ता।

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