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Exclusive Articles written by Ajay Setia

सिमी पर गाज से खुलेंगे राजनीतिक संबंधों के राज

Publsihed: 02.Apr.2008, 20:40

मुलायम-सोनिया साथ-साथ होंगे। तो सिमी का संकट काफी हद तक कम होगा। मुलायम तो खुल्लमखुल्ला सिमी समर्थन करते रहे। अब जब इंदौर में सिमी आतंकियों पर गाज गिरी। तो कई कांग्रेसी दिग्गजों की पोल भी खुलेगी। मुलायम-सोनिया की जुगलबंदी का अपन अंदाज नहीं लगा रहे। अलबत्ता केंद्र ने सीबीआई को मुलायम के खिलाफ जांच की इजाजत नहीं दी। समझदारों को इशारा काफी। मायावती जब सोनिया के साथ थी। तो ताज कोरिडोर घोटाला दबाने की कोशिश हुई। अब मुलायम को भ्रष्टाचार से निजात दिलाने की कोशिश। अपने बुजुर्ग एक भी कहावत बेसिर-पैर की नहीं कह गए। चोर-चोर मौसेरे भाई वाली कहावत को ही लो। फिट बैठेगी। एक और कहावत याद करिए। दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। माया-मुलायम की दुश्मनी जगजाहिर।

कांग्रेस का हाथ आम आदमी की गर्दन पर

Publsihed: 01.Apr.2008, 20:40

पी. चिदंबरम ने सोनिया का सारा खेल बिगाड़ दिया। अभी तो किसानों के कर्ज माफ नहीं हुए। अभी तो छटे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं हुई। महंगाई का फन कांग्रेस को डसना शुरू हो चुका। दोनों कदमों से कांग्रेस को चुनावी उम्मीद थी। अब दोनों कदमों से महंगाई और बढ़ेगी। जब छटे वेतन आयोग की सिफारिश लागू हुई। तो अपन ने 25 मार्च को लिखा ही था- 'तनख्वाहें बढ़ेंगी तो जीना होगा और हराम।' कांग्रेस के दफ्तर में अब यही डर सताने लगा। पर सोनिया को अब कर्नाटक का डर। कर्नाटक के चुनावों का एलान बस आज-कल में। बारह-सत्रह नहीं तो सोलह-इक्कीस समझिए। चुनाव मई में ही होंगे। अब कांग्रेसी चिदंबरम के कुप्रबंधन को कोसने लगे। चिदंबरम का लोकलुभावन बजट आया। तो सोनिया बाग-ओ-बाग थी। राहुल को बजट पर बहस में उतारा गया। चिदंबरम ने राहुल की बातों पर गौर नहीं किया।

कांग्रेस बोली लेफ्ट से- 'चीन की महंगाई भी देख लो'

Publsihed: 31.Mar.2008, 20:40

यह जहाज डूबता देख चूहों के भागने वाली बात नहीं। पर सरकारी नाव कूटनीतिक और आर्थिक झंझावत में फंस तो गई। एक तरफ तिब्बत के मुद्दे पर चीन के सामने घुटने टेकना। माफ कीजिएगा- वाजपेयी सरकार ने भी घुटने टेके थे। दूसरी तरफ एटमी करार पर अमेरिका के सामने। यह तो रही कूटनीति के तूफान में फंसने की बात। आर्थिक मुद्दे पर भी मनमोहन-चिदंबरम दोनों फेल। सरकार जब बनी थी। तो अपन ने तभी लिखा था- 'आर्थिक और कूटनीतिक मुद्दों पर लेफ्ट से होगा टकराव।' अब देख लो- महंगाई और एटमी करार पर इसी महीने का अल्टीमेटम। एटमी करार सरका। तो सरकार गिरेगी। महंगाई पर भी पंद्रह अप्रेल तक का नोटिस। ऐसे में मनमोहन के प्रेस सलाहकार संजय बारू का यह फैसला। जी हां, बारू ने इस्तीफा दे दिया। इसे कहते हैं बुरे वक्त में साथ छोड़ जाना। यों जुलाई तक रहेंगे। पर जहाज डूबने के बाद कौन पूछेगा। सो अभी सिंगापुर की एक युनिवर्सिटी में नौकरी का जुगाड़ कर लिया।

महंगाई मुद्दा बना, तो कांग्रेस सस्ते में निपटेगी

Publsihed: 28.Mar.2008, 20:38

अपन दो दिन दिल्ली छोड़ जमीन पर रहे। राजस्थान में पाकिस्तान के बार्डर तक गए। जहां गुजरात से नर्मदा राजस्थान में आई। वह सीलू गांव बार्डर से सिर्फ सोलह किलोमीटर। सो अपन आखिरी इलाके के आदमियों से पूछ आए। अपन को हर कोई महंगाई से दु:खी लगा। अपन ने भीलों के वे इलाके भी देखे। जहां न बंदा न बंदे की जात। आती-जाती गाड़ी दिख जाए। तो लूटपाट होना तय। अपन ऐसी गरीबी को देखकर दिल्ली लौटे। जगमग दिल्ली, जहां बैठकर ऐसे भारत की कल्पना नहीं होती। जब अपन को ऐसे भारत की कल्पना नहीं होती। तो पी. चिदंबरम को कहां से होगी। चिदंबरम तो यों भी सड़क पर सफर नहीं करते। लालगढ़ वह जगह थी। जहां वसुंधरा ने बटन दबाकर सीलू हैड का फाटक खोला। तो नर्मदा का पानी छल-छल करता बहने लगा। वहीं पर आई अनपढ़ औरतों से अपन ने पूछा- 'नर्मदा से आपकी जिंदगी में क्या फर्क पड़ेगा?' तो वह बोली- 'पानी मिलेगा, तो फसलें अच्छी होंगी। गरीबी से निजात मिलेगी।'

नर्मदा के किनारे 'फील गुड' के बाद बजी चुनावी डुगडुगी

Publsihed: 27.Mar.2008, 20:40

मां नर्मदा मरुभूमि आ पहुंची। वसुंधरा ने आगवानी की। पर नरेंद्र मोदी राजस्थान में नहीं घुसे। वह नारोली से ही पानी छोड़ने की रश्म अदायगी कर गए। Entry point of Narmda at Seelu village of Rajasthanसीलू में वसुंधरा ने मंत्रोच्चारण से आगवानी की। नरेंद्र भाई क्यों नहीं आए। वसुंधरा के पास कोई जवाब नहीं था। पूछा, तो बोली- 'दोनों सरकारों ने अपना-अपना प्रोग्राम किया। उनका कोई प्रोग्राम होगा।' पर ओम माथुर को माजरा समझ नहीं आया। नरेंद्र भाई का आना आखिर तक तय था। गुजरात का अमला भी पहुंचा हुआ दिखा। पत्थर पर नरेंद्र भाई चीफ गेस्ट के तौर पर खुदे थे। अपन ने वसु से पहले ही घूंघट उठाकर देख लिया था। पर मोदी नहीं आए। तो अच्छा ही हुआ। मोदी आते, तो सारा शो वही उड़ा ले जाते। जिस महफिल में मोदी हों। उस महफिल में कोई और नहीं जमता। अपन असली माजरा तो नहीं जानते। पर वसु ने नर्मदा की अगवानी में बहुत तैयारी की थी। सो उनने चुनावी बिगुल वहीं पर बजा दिया।

रेगिस्तान को इतिहास बना देगी नर्मदा

Publsihed: 26.Mar.2008, 20:40

मां नर्मदा का राजस्थान पहुंचना कोई छोटी घटना नहीं। सो अपन भी इस मौके पर पहुंचेंगे। दिल्ली से सीलू का सफर आसान नहीं। मोदी अहमदाबाद से आएंगे। तो वसुंधरा जयपुर से उड़न खटोले पर। अपन को पहले उदयपुर पहुंचना पड़ा। फिर माउंटआबू। बुधवार की रात माउंटआबू में बीती। अपन भी आज सीलू पहुंचेंगे। यों तो उदयपुर से माउंटआबू सिर्फ पौने दो सौ किलोमीटर। पर सड़क चौड़ी करने का सिलसिला जारी। सो चार घंटे का सफर छह घंटे में पूरा हुआ। वाजपेयी सड़कों का काम शुरू कर गए थे। मनमोहन सरकार साढ़े तीन साल लंबी तानकर सोई रही। अब जब जाने का वक्त आया। तो सड़कों की याद आई। देशभर में एम्स जैसे अस्पतालों की सुध भी अब आई। आईआईटी-आईआईएम की याद भी अब आई। साढ़े तीन साल तो शेयर मार्केट की सगी बनी रही।

जय मोदी, जय नर्मदा

Publsihed: 25.Mar.2008, 20:40

मेधा पाटकर ने लाख रुकावटें खड़ी की। पर नर्मदा का पानी राजस्थान आ ही गया। मोदी जबसे सीएम बने। कभी मेधा पाटकर रुकावट बनी। तो कभी तीस्ता सीतलवाड़। दोनों की जहनियत एक सी। पर बात फिलहाल मां नर्मदा की। मां नर्मदा का पानी तो पांच साल पहले ही राजस्थान आ जाता। पर दस साल अपने दिग्गी राजा मध्य प्रदेश के सीएम रहे। जिनने मेधा पाटकर की मदद में कसर नहीं छोड़ी। मध्य प्रदेश के अमर कंटक से शुरू होती है नर्मदा। सरदार सरोवर से मध्य प्रदेश के कई गांव उजाड़ने पड़े। यही मेधा पाटकर के आंदोलन का हथियार बना। अमेरिका और ब्रिटेन का हाथ आंदोलन में बार-बार दिखा। अपने यहां आंदोलन की खबरें कम। ब्रिटेन-अमेरिका में ज्यादा छपती रहीं। आंदोलन में गोरी चमड़ी वाले भी खूब दिखे। यों तो अपने आमिर खान लगान में ब्रिटिश क्रिकेट टीम से भिड़े थे। पर नर्मदा बचाओ आंदोलन में गोरी चमड़ी वालों के साथ दिखे। मेधा पाटकर ने लाख रुकावटें खड़ी की। पर नर्मदा का पानी राजस्थान आ ही गया। मोदी जबसे सीएम बने। कभी मेधा पाटकर रुकावट बनी। तो कभी तीस्ता सीतलवाड़। दोनों की जहनियत एक सी। पर बात फिलहाल मां नर्मदा की। मां नर्मदा का पानी तो पांच साल पहले ही राजस्थान आ जाता। पर दस साल अपने दिग्गी राजा मध्य प्रदेश के सीएम रहे। जिनने मेधा पाटकर की मदद में कसर नहीं छोड़ी। मध्य प्रदेश के अमर कंटक से शुरू होती है नर्मदा। सरदार सरोवर से मध्य प्रदेश के कई गांव उजाड़ने पड़े। यही मेधा पाटकर के आंदोलन का हथियार बना। अमेरिका और ब्रिटेन का हाथ आंदोलन में बार-बार दिखा। अपने यहां आंदोलन की खबरें कम। ब्रिटेन-अमेरिका में ज्यादा छपती रहीं। आंदोलन में गोरी चमड़ी वाले भी खूब दिखे। यों तो अपने आमिर खान लगान में ब्रिटिश क्रिकेट टीम से भिड़े थे। पर नर्मदा बचाओ आंदोलन में गोरी चमड़ी वालों के साथ दिखे।

तनख्वाहें बढ़ेंगी तो जीना होगा और हराम

Publsihed: 24.Mar.2008, 20:40

तो आखिर युसूफ रजा गिलानी पाक के पीएम हो गए। अपन ने 22 फरवरी को ही लिखा था- 'मकदूम अमीन फाहिम का पलड़ा भारी। पर जरदारी का रुख साफ नहीं।' अपन को पहले दिन ही जरदारी पर शक था। सो अपन ने उसी दिन फाहिम के साथ गिलानी और कुरैशी का नाम भी लिखा। पर पाक में असली जंग तो अब शुरू होगी। मुशर्रफ को पहला झटका तो सोमवार को ही लग गया। जब नई सरकार ने जस्टिस इफ्तिखार चौधरी को रिहा कर दिया। चौधरी अब सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे। तो हालात क्या मोड़ लेंगे। अपनी निगाह उसी पर। पाक के हालात कोई अच्छे नहीं। आए दिन आतंकवाद की वारदात होने लगी। अपन ने अपने एक पाकिस्तानी दोस्त को होली की मुबारक भेजी। तो जवाब चौंकाने वाला आया- 'हम एक देश के तौर पर मुस्कुराना भूल गए। कैसे जश्न मनाएं। जिंदगी के रंग फीके पड़ गए। हम आतंकवाद के बादलों से घिर गए।

लैटस प्ले होली

Publsihed: 20.Mar.2008, 20:40

अपन को कई बार लगता है- जर्नलिज्म का बंटाधार हो चुका। अब खबरें छपती कम, छुपती ज्यादा हैं। उथली-उथली रिपोर्टिंग का जमाना आ गया। एक वक्त था- जब होली पर ढूंढ-ढूंढकर खबरें लाते थे। सारे साल का अखबार एक तरफ। होली की खोज खबरें एक तरफ। अब तो कोई रिपोर्टर तह तक नहीं जाता। कोई किसी के बैडरूम में नहीं झांकता। अपन पिछले दिनों तह तक गए। तो देखो कितनी विस्फोटक खबरें पता चली। आपने अगर भांग न पी हो। तो पी लें। उसके बाद ही आगे पढ़ें। बिना भांग पिए पढ़ोगे। तो खबरों पर भरोसा नहीं होगा। भांग पीकर पढ़ोगे। तो कोई खबर चंडूखाने की नहीं लगेगी। भांग का नशा ही खबर की तह तक ले जाता है। भरोसा न हो। तो अपने अटल बिहारी वाजपेयी से पूछ लें।

तो क्या 'माई कंट्री, माई लाइफ' में जुड़ेंगा 'पीएम' का चैप्टर भी

Publsihed: 19.Mar.2008, 21:01

यों तो बुधवार को और भी बहुत घटनाएं हुई। सरबजीत की फांसी कम से कम एक महीना तो रुकी। मेघालय में कांग्रेसी सीएम लपांग को इस्तीफा देना पड़ा। इस्तीफा तो गवर्नर सिध्दू को भी देना चाहिए। जिनको पता था- लपांग के पास बहुमत नहीं। फिर भी उनने सीएम बनाकर खरीद-फरोख्त का मौका दिया। पर अपने संगमा आखिर सोनिया को मात दे गए। पर दिल्ली की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना थी- 'माई कंट्री, माई लाइफ' का विमोचन। जो सिरी फोर्ट ऑडिटोरियम में हुआ। विमोचन हुआ अब्दुल कलाम के हाथों। विमोचन की खास बात रही- दिल्ली में ट्रैफिक जाम होना। जब आधा दर्जन मुख्यमंत्री विमोचन में पहुंचे हों। तो साउथ दिल्ली की सड़कें जाम होनी ही थीं।