यह जहाज डूबता देख चूहों के भागने वाली बात नहीं। पर सरकारी नाव कूटनीतिक और आर्थिक झंझावत में फंस तो गई। एक तरफ तिब्बत के मुद्दे पर चीन के सामने घुटने टेकना। माफ कीजिएगा- वाजपेयी सरकार ने भी घुटने टेके थे। दूसरी तरफ एटमी करार पर अमेरिका के सामने। यह तो रही कूटनीति के तूफान में फंसने की बात। आर्थिक मुद्दे पर भी मनमोहन-चिदंबरम दोनों फेल। सरकार जब बनी थी। तो अपन ने तभी लिखा था- 'आर्थिक और कूटनीतिक मुद्दों पर लेफ्ट से होगा टकराव।' अब देख लो- महंगाई और एटमी करार पर इसी महीने का अल्टीमेटम। एटमी करार सरका। तो सरकार गिरेगी। महंगाई पर भी पंद्रह अप्रेल तक का नोटिस। ऐसे में मनमोहन के प्रेस सलाहकार संजय बारू का यह फैसला। जी हां, बारू ने इस्तीफा दे दिया। इसे कहते हैं बुरे वक्त में साथ छोड़ जाना। यों जुलाई तक रहेंगे। पर जहाज डूबने के बाद कौन पूछेगा। सो अभी सिंगापुर की एक युनिवर्सिटी में नौकरी का जुगाड़ कर लिया।
अपन को वाजपेयी सरकार के आखिरी दिनों की याद आ गई। तब कंचन गुप्ता पीएमओ छोड़ काहिरा चले गए। फिर मॉरीशस में कल्चर सेंटर के हेड हो गए। वह तो चुनाव में एनडीए हार गया। सो मॉरीशस नहीं गए। जाते, तो मनमोहन सिंह हटा देते। पर बारू ने सरकारी कृपा की नौकरी नहीं ली। लाख टके का सवाल दूसरा। क्या जहाज सचमुच डूब रहा है? बारू ठहरे आर्थिक मामलों के पुराने जर्नलिस्ट। सो हालात को उनसे ज्यादा कौन समझता होगा। सरकार अंदर से कितनी खोखली। खोखलेपन के सबूत देखिए। चिदंबरम ने बैंकों को हाउससिंग लोन की ब्याज दर घटाने की सलाह दी थी। एक-आध बैंक ने ही माना। चिदंबरम पता नहीं किस दुनिया में थे। समझ रहे थे- अप्रेल में ब्याज दर घटेगी। पर 6.68 फीसदी महंगाई का खुलासा हुआ। तो अब ब्याज दर का और बढ़ना तय। चिदंबरम कह रहे थे- 'महंगाई जल्द काबू होगी।' पर महंगाई आसमान छूने लगी। यानी चिदंबरम को कुछ अता-पता नहीं। सब्जियां अब मिडिल क्लास के बूते में नहीं रही। गरीबों की हालत क्या होगी। आप खुद अंदाजा लगा लें। कांग्रेस की गरीबी हटाओ का हाल देखिए। बकौल चिदंबरम ही- प्रति व्यक्ति आय 29642 रुपए। यानी 2470 रुपए महीना। पर दूसरा पहलू भी देख लो। अपन पर 794017 करोड़ का विदेशी कर्ज हो चुका। यानी प्रति व्यक्ति कर्ज हुआ 7218 रुपए। कर्ज निकालकर आमदनी देखें। तो प्रति व्यक्ति आय बनेगी 1868 रुपए महीना। इसमें नंगा क्या नहाएगा, क्या निचोड़ेगा। पर जरा और गहराई में जाएं। यह तो है औसत आय। जिसमें अपन ने मुकेश-अनिल अंबानी की आमदनी भी जोड़ ली। टाटा-बिड़ला की आमदनी भी जोड़ ली। सुनील-लक्ष्मी मित्तलों की आमदनी भी जोड़ ली। तब जाकर 1868 रुपए निकले। सोचो, गांव के मोची-नाई की आमदनी क्या होगी? नुक्कड़ पर चने-मुरमुरे भून रहे भड़भूंजे की आमदनी क्या होगी? भुखमरी के हालात पैदा हो गए चार साल में। और सोनिया कहती हैं- 'कांग्रेस को छोड़ बाकी सब दल सत्ता के भूखे।' महंगाई की बात पूछो। तो ठीकरा एनडीए के सिर। आखिर कब तक एनडीए को कोसेंगे। एक-दो साल तो चल गया। अब कौन ऐसी चंडूखाने की दलील सुनेगा। सो सोमवार को केबिनेट कमेटी ने महंगाई रोकने की कवायद की। पर कांग्रेस का जवाब वही 1972 वाला। तब इंदिरा गांधी ने कहा था- 'महंगाई तो पूरी दुनिया में बढ़ रही है।' अब मनमोहन-चिदंबरम कह रहे हैं- दुनियाभर में बढ़ रही है महंगाई। पर लेफ्ट ने पंद्रह दिन का अल्टीमेटम दिया। तो मनमोहन-चिदंबरम के पदचिन्हों पर चलते वीरप्पा मोइली बोले- 'आपके चीन में महंगाई ज्यादा। वहां तो महंगाई दर 8.7 फीसदी।' यानी तुम्हारी कमीज भी, मेरी कमीज से सफेद नहीं। कांग्रेस को महंगाई से ज्यादा सत्ता की फिक्र।
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