तो आखिर युसूफ रजा गिलानी पाक के पीएम हो गए। अपन ने 22 फरवरी को ही लिखा था- 'मकदूम अमीन फाहिम का पलड़ा भारी। पर जरदारी का रुख साफ नहीं।' अपन को पहले दिन ही जरदारी पर शक था। सो अपन ने उसी दिन फाहिम के साथ गिलानी और कुरैशी का नाम भी लिखा। पर पाक में असली जंग तो अब शुरू होगी। मुशर्रफ को पहला झटका तो सोमवार को ही लग गया। जब नई सरकार ने जस्टिस इफ्तिखार चौधरी को रिहा कर दिया। चौधरी अब सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे। तो हालात क्या मोड़ लेंगे। अपनी निगाह उसी पर। पाक के हालात कोई अच्छे नहीं। आए दिन आतंकवाद की वारदात होने लगी। अपन ने अपने एक पाकिस्तानी दोस्त को होली की मुबारक भेजी। तो जवाब चौंकाने वाला आया- 'हम एक देश के तौर पर मुस्कुराना भूल गए। कैसे जश्न मनाएं। जिंदगी के रंग फीके पड़ गए। हम आतंकवाद के बादलों से घिर गए।
पर मैं आपको होली की शुभकामना देता हूं।' अमेरिका आतंकवाद का रोग पूरी मुस्लिम दुनिया में फैल गया। कोई दिन नहीं जाता। जब पाक, इराक, अफगानिस्तान में बम न फटें। अपन ने अपने दोस्त को जवाब नहीं भेजा। जख्मों पर नमक छिड़कना अपनी फितरत नहीं। वरना जिस आतंकवाद को अपन तीन दशक से झेल रहे थे। वह पाक का दिया हुआ था। पर बात अमेरिका की चल पड़ी। तो बताते जाएं। सोमवार को वाशिंगटन में अपने प्रणव दा की कोंडालीसा राइस से मुलाकात हुई। प्रणव दा के दौरे का मुद्दा सिर्फ और सिर्फ एटमी करार। प्रणव दा ने एनएसजी में बुश से मदद मांगी। यानी करार के ऑपरेशनालाइजेशन की पूरी तैयारी। बुश आस्ट्रेलिया को मनाएंगे। तभी बात आगे बढ़ेगी। पर अपनी निगाह आस्ट्रेलिया पर नहीं। अलबत्ता लेफ्टी नेताओं पर। सरकार गिराएंगे, या सिर्फ गुर्राएंगे। जैसाकि उस दिन जसवंत सिंह ने कहा। लेफ्टी समर्थन वापस भी ले लें। तब भी सरकार नहीं गिरेगी। लेफ्टी लोक दिखावे को समर्थन वापस लेंगे। सरकार नहीं गिरने देंगे। माइनोट्री सरकार ही चलाएंगे। अपने मीडिया को उस दिन कम समझ आई। यों भले ही सोनिया से लेकर प्रणव दा तक। राहुल से लेकर मनमोहन तक। चुनावों से इनकार करते रहें। पर चुनावी तैयारियां एकदम पूरी। अपन को उस दिन हंसराज भारद्वाज बता रहे थे- 'बजट ने माहौल ठीक कर दिया। दो-तीन महीनों में दो-चार और बढ़िया काम हो जाएं। बस फिर क्या।' फिर उनने एक सवाल के जवाब में राज्यसभा को बताया- 'आयोग ने चुनाव के लिए छह-आठ महीने का वक्त मांगा है।' आप जोड़कर देख लें। नवंबर में पूरे होंगे आठ महीने। बात दो-चार और बढ़िया कामों की। तो एक काम सोमवार को और हो गया। छठे वेतन आयोग की सिफारिश आ गई। केंद्र सरकार के चालीस लाख कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले। चालीस फीसदी तनख्वाहें बढ़ेंगी। राज्य सरकारों के डेढ़ करोड़ कर्मचारियों की भी बारी। अपन बताते जाएं। पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों पर क्या हुआ। रातोंरात केंद्र का 21,885 करोड़ का बोझ बढ़कर 43,568 करोड़ हो गया था। राज्यों का बोझ भी 51,548 करोड़ से बढ़कर 89,813 करोड़ हो गया था। तेरह राज्य आर्थिक तंगी का शिकार हो गए थे। यों अब सर्विस टेक्स ने राज्यों की हालत सुधार दी। पर केंद्र पर अब भी 18,060 करोड़ का बोझ पड़ेगा। जो अपने चिदंबरम ने बजट में नहीं रखा। चिदंबरम ने तो साठ हजार करोड़ कर्जमाफी वाला भी नहीं रखा। हवाई किला टूटे। इससे पहले चुनाव हो, तो हैरानी नहीं। इस सरकार की करनी अगली सरकार भरेगी। पर एक बात नोट कर लीजिए। नए वेतन आयोग से महंगाई अब और सिर उठाएगी। अपन सोमवार की हालत बता दें। तोरई दिल्ली में साठ रुपए किलो बिकी। आम आदमी का सबसे सस्ता फल केला। वह भी अट्ठाईस रुपए दर्जन हो गया। बाकी सब्जियों के भाव क्या लिखने। आम आदमी को पता ही है, चिदंबरम-मनमोहन कभी सब्जी लेने नहीं जाते। सोनिया-राहुल भी नहीं।
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