मेधा पाटकर ने लाख रुकावटें खड़ी की। पर नर्मदा का पानी राजस्थान आ ही गया। मोदी जबसे सीएम बने। कभी मेधा पाटकर रुकावट बनी। तो कभी तीस्ता सीतलवाड़। दोनों की जहनियत एक सी। पर बात फिलहाल मां नर्मदा की। मां नर्मदा का पानी तो पांच साल पहले ही राजस्थान आ जाता। पर दस साल अपने दिग्गी राजा मध्य प्रदेश के सीएम रहे। जिनने मेधा पाटकर की मदद में कसर नहीं छोड़ी। मध्य प्रदेश के अमर कंटक से शुरू होती है नर्मदा। सरदार सरोवर से मध्य प्रदेश के कई गांव उजाड़ने पड़े। यही मेधा पाटकर के आंदोलन का हथियार बना। अमेरिका और ब्रिटेन का हाथ आंदोलन में बार-बार दिखा। अपने यहां आंदोलन की खबरें कम। ब्रिटेन-अमेरिका में ज्यादा छपती रहीं। आंदोलन में गोरी चमड़ी वाले भी खूब दिखे। यों तो अपने आमिर खान लगान में ब्रिटिश क्रिकेट टीम से भिड़े थे। पर नर्मदा बचाओ आंदोलन में गोरी चमड़ी वालों के साथ दिखे। मेधा पाटकर ने लाख रुकावटें खड़ी की। पर नर्मदा का पानी राजस्थान आ ही गया। मोदी जबसे सीएम बने। कभी मेधा पाटकर रुकावट बनी। तो कभी तीस्ता सीतलवाड़। दोनों की जहनियत एक सी। पर बात फिलहाल मां नर्मदा की। मां नर्मदा का पानी तो पांच साल पहले ही राजस्थान आ जाता। पर दस साल अपने दिग्गी राजा मध्य प्रदेश के सीएम रहे। जिनने मेधा पाटकर की मदद में कसर नहीं छोड़ी। मध्य प्रदेश के अमर कंटक से शुरू होती है नर्मदा। सरदार सरोवर से मध्य प्रदेश के कई गांव उजाड़ने पड़े। यही मेधा पाटकर के आंदोलन का हथियार बना। अमेरिका और ब्रिटेन का हाथ आंदोलन में बार-बार दिखा। अपने यहां आंदोलन की खबरें कम। ब्रिटेन-अमेरिका में ज्यादा छपती रहीं। आंदोलन में गोरी चमड़ी वाले भी खूब दिखे। यों तो अपने आमिर खान लगान में ब्रिटिश क्रिकेट टीम से भिड़े थे। पर नर्मदा बचाओ आंदोलन में गोरी चमड़ी वालों के साथ दिखे।
सो नरेंद्र मोदी की आंख की किरकिरी बने। गुजरात में आमिर की फिल्मों का बायकाट जारी रहता। अगर वह आडवाणी के सामने हथियार न डालते। उनने आडवाणी को 'तारे जमीं पर' इसीलिए दिखाई। पर बात आंदोलन से फंसे फच्चर की। चार सौ अट्ठावन किलोमीटर की नहर और पहुंचने में लगे अड़तीस साल। ताकि सनद रहे सो बता दें। सरदार सरोवर प्रोजेक्ट का फैसला हुआ 1969 में। डेढ़ साल बाद 28 जनवरी 1971 को ट्रिब्यूनल बना। पानी-बिजली किसको कितना मिलेगा। इस पर भी बवंडर हो गया। तो मध्य प्रदेश- राजस्थान कोर्ट चले गए। केंद्र को दोनों की मान-मनोवल करनी पड़ी। आखिर 12 जुलाई 1974 को जाकर बंटवारा तय हुआ। तय हुआ- मध्य प्रदेश को मिलेगा- 27 एमएएफ पानी। गुजरात को 25 एमएएफ। राजस्थान को आधा एमएएफ। महाराष्ट्र को चौथाई एमएएफ। पर बवाल फिर खड़ा हुआ। इतना तो पानी था ही नहीं। सो नए सिरे से पड़ताल हुई। पानी निकला 28 एमएएफ। तो उसी के मुताबिक बंटवारा हुआ 12 सितंबर 1979 को। मध्य प्रदेश को सवा अट्ठारह एमएएफ। गुजरात को नौ एमएएफ। राजस्थान को आधा एमएएफ। यानी पांच लाख एकड़ फुट। महाराष्ट्र को चौथाई एमएएफ। यानी ढाई लाख एकड़ फुट। पानी घट-बढ़ हुआ। तो एमपी पर असर होगा 73 फीसदी। गुजरात पर 36 फीसदी। महाराष्ट्र पर एक फीसदी। राजस्थान पर दो फीसदी। यानी इसी अनुपात में घटत-बढ़त होगी। बंटवारे का यह फार्मूला 45 साल तक का। आगे का फैसला आगे होगा। नर्मदा का पानी कभी मरुभूमि की प्यास बुझाएगा। किसी भूगोलवेता ने कभी नहीं सोचा होगा। इतिहासकारों की तो सोचने की बात ही नहीं। अट्ठारह सौ साल पहले यूनानी भूगोलवेता पटोलेमी ने लिखा था- 'हिंदुस्तान और दक्षिण में सीमा बनाती है खम्भट घाटी से निकली नमदे नदी।' यूनानी भूगोलवेता ने तब इसे नमदे ही कहा। नर्मदा हमेशा से हिंदुओं के लिए पवित्र रही। गंगा के बाद नर्मदा का स्थान। अब उसी नर्मदा का पवित्र जल राजस्थान की धरती को छुएगा। गुरुवार को नर्मदा जब जालौर जिले के सीलू गांव पहुंचेगी। तो नरेंद्र मोदी खुद मां नर्मदा को राजस्थान तक छोड़ने आएंगे। अपन को मार्च 2004 याद आ गया। जब अपन लाल कृष्ण आडवाणी के साथ रथ यात्रा पर थे। तीन दिन गुजरात में गुजारे। तो नरेंद्र मोदी से रह-रहकर बात हुई। मोदी राजस्थान के बार्डर तक आडवाणी को छोड़ने आए। वही रूखा-सूखा जालौर जिला अब नर्मदा हरा-भरा करेगी। मोदी मां नर्मदा को छोड़ने आएंगे। तो वसुंधरा राजे, ओम माथुर मां नर्मदा की अगुवाई करेंगे। सिर्फ जालौर नहीं। बाड़मेर भी हरा-भरा होगा। करीब ढाई लाख हेक्टेयर जमीन को पानी मिलेगा। एक हजार एक सौ सात गांव। दो शहरों समेत 46 लाख आबादी का गला तर होगा। पर सिंचाई होगी ड्रिप-इरिगेशन से। साढ़े पच्चीस हजार हेक्टेयर जमीन पाइपों से घिरेगी। पंद्रह हजार हेक्टयर तक पाइपें बिछ भी चुकीं। पर सेहरा बंधेगा मोदी के सिर। जिनके सीएम बनने पर प्रोजेक्ट ने स्पीड पकड़ी। सो राजस्थान में जय नर्मदा के साथ, जय मोदी भी।
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