रेगिस्तान को इतिहास बना देगी नर्मदा

Publsihed: 26.Mar.2008, 20:40

मां नर्मदा का राजस्थान पहुंचना कोई छोटी घटना नहीं। सो अपन भी इस मौके पर पहुंचेंगे। दिल्ली से सीलू का सफर आसान नहीं। मोदी अहमदाबाद से आएंगे। तो वसुंधरा जयपुर से उड़न खटोले पर। अपन को पहले उदयपुर पहुंचना पड़ा। फिर माउंटआबू। बुधवार की रात माउंटआबू में बीती। अपन भी आज सीलू पहुंचेंगे। यों तो उदयपुर से माउंटआबू सिर्फ पौने दो सौ किलोमीटर। पर सड़क चौड़ी करने का सिलसिला जारी। सो चार घंटे का सफर छह घंटे में पूरा हुआ। वाजपेयी सड़कों का काम शुरू कर गए थे। मनमोहन सरकार साढ़े तीन साल लंबी तानकर सोई रही। अब जब जाने का वक्त आया। तो सड़कों की याद आई। देशभर में एम्स जैसे अस्पतालों की सुध भी अब आई। आईआईटी-आईआईएम की याद भी अब आई। साढ़े तीन साल तो शेयर मार्केट की सगी बनी रही।

देश की फिक्र अब हुई। आम आदमी की फिक्र भी अब खूब। फरवरी-मार्च में तो आम आदमी की ज्यादा ही फिक्र दिखी। यों सोनिया से लेकर मनमोहन तक। राहुल से लेकर प्रणव दा तक। चुनावों को नकारने में लगे हैं। पर अपन को अब भी नवंबर में 'मिड टर्म' का अंदेशा। बुधवार की बात ही लो। अपन मॉर्निंग वाक पर थे। तो एक आला अफसर से गपशप होने लगी। अफसर भी अपन से सौ फीसदी सहमत। अब आप प्रणव दा की बुश से मुलाकात को ही लो। लुंज-पुंज मनमोहन सरकार से बुश खुश नहीं। वरना कोंडालीसा राइस से मुलाकात के वक्त ही आ धमकते। अमेरिकी राष्ट्रपति की यही परंपरा। अपने आडवाणी जब अमेरिका गए थे। तो राष्ट्रपति तभी आ धमके थे। जब आडवाणी विदेश मंत्री से मिल रहे थे। पर बुश ने प्रणव दा को झटका दिया। प्रणव दा को अगले दिन बुश से मिलना पड़ा। बुश की नाराजगी का दूसरा सबूत देख लीजिए। प्रणव दा अभी लौटे भी नहीं थे। व्हाइट हाउस से बयान आ गया। साफ-साफ कहा- 'एटमी करार अभी या कभी नहीं।' भले ही अपन इसे गीदड़ भभकी समझें। पर मनमोहन सरकार की घिघ्घी बंध चुकी। बात आडवाणी की चली थी। तो अपन को माउंटआबू का एक किस्सा याद आया। आडवाणी ने 'माई कंट्री माई लाइफ' में लिखा है- 'बारह जून 1975 को दो बातें हुई। गुजरात में चुनाव नतीजे आए। तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हुआ। उसी दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला भी आया। जिसमें इंदिरा का चुनाव अवैध हुआ।' तब पंद्रह जून को माउंटआबू में जनसंघ की आपात बैठक हुई थी। जिसके दस दिन बाद इमरजेंसी लगी। बात गुजरात की चली। तो गुजरात ने तब भी कांग्रेस को झटका दिया। अब भी जब सोनिया सातवें आसमान में थी। तो गुजरात ने झटका दिया। गुजरात ने जोरदार झटका धीरे से दिया। जब सारी दुनिया मोदी के खिलाफ थी। तो मोदी ने अपनी लोकप्रियता का झंडा गाडा। वही मोदी आज नर्मदा का पानी राजस्थान लाएंगे। तो अपन इस ऐतिहासिक घटना के चश्मदीद गवाह होंगे। पश्चिमी राजस्थान का भूगोल बदलेगा। एक तो इंदिरा नहर परियोजना का पानी आ चुका। अब मां नर्मदा खुद साक्षात आ पहुंची। इंदिरा नहर ने गंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों में किसानों की किसमत बदल दी। बीकानेर-जैसलमेर-जोधपुर की काया भी पलटी। तो मां नर्मदा बाडमेर और जालौर की तस्वीर बदलेगी। बाड़मेर में पहले गैस और तेल के भंडार मिले। अब प्यासी भूमि को पानी मिलेगा। तो सोना उगलेगी। पर बात तेल और गैस की चली। तो याद करा दें। वाजपेयी बाड़मेर को रिफाइनरी दे गए थे। लग जाती, तो दुनिया का दूसरा कुवैत बन जाता। पर इंफ्रास्टक्चर के मामले में मनमोहन सरकार फिसड्डी ही रही। यों अपन मां नर्मदा के राजस्थान आने का सेहरा सिर्फ मोदी के सिर बांधें तो ठीक नहीं होगा। परियोजना का सपना तो 36 साल पहले लिया गया। पर सब सपने साकार नहीं होते। मोदी के सिर सेहरा इसलिए बंधेगा। उनने सपना साकार कर दिखाया। यह संयोग ही रहा। जो मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात में पांच साल से बीजेपी सरकारें थीं। मोदी जब वसुंधर की शपथ ग्रहण पर आए। तो उनने वचन दिया था- 'नर्मदा जल्द लाऊंगा।' देर भले लगी, पर वादा पूरा हुआ।

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