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Exclusive Articles written by Ajay Setia

पाक की सियासत से जुड़े घुसपैठ-धमाकों के तार

Publsihed: 13.May.2008, 20:40

अपन जयपुर के धमाकों पर फौरी कयास तो नहीं लगाते। पर धमाकों का रिश्ता पाक की सियासतNawaz Sharif and Asif Ali Zardari से जुड़े। तो अपन को कतई हैरानी नहीं होनी। पाकिस्तान के चुनावों से जमहूरियत लौटी। तो अपन को जहां खुशी हुई। वहां मन में एक आशंका भी थी। आशंका थी- फौज इस जमहूरियत को कितना बर्दाश्त करेगी। करेगी भी या नहीं। फौज ने पाक की जमहूरियत बर्दाश्त नहीं की। तो ठीकरा अपने ही सिर फूटेगा। अपन अभी यह तो नहीं कह सकते- जमहूरियत पटरी से उतरने लगी। पर जमहूरियत फेल करने की साजिशें तो शुरू हो चुकी। पाकिस्तान के अंदर भी। पाकिस्तान से बाहर भी। इक्कतीस मार्च को सय्यद युसूफ रजा गिलानी की सरकार बनी। तो फैसला हुआ था- 'तीस अप्रेल तक सभी बर्खास्त जज बहाल होंगे।'

आडवाणी भूले, या जसवंत या भूली कांग्रेस

Publsihed: 13.May.2008, 04:52

अपन आपकी याददाश्त फिर ताजा कर दें। कंधार अपहरण कांड हुआ। तो देश में क्या हालात थे। वाजपेयी पीएम थे। जसवंत सिंह विदेश मंत्री। वही जसवंत जिनने तब अमेरिकापरस्ती की कोई कसर नहीं छोड़ी। हालांकि विमान अपहरण के वक्त अपन ने मदद मांगी। तो अमेरिका ने मुंह फेर लिया था। अब अपहरण कांड फिर सुर्खियों में। जबसे आडवाणी पीएम पद के उम्मीदवार हुए। कईयों की छाती पर सांप लौट गया। आडवाणी को कटघरे में खड़ा करना कांग्रेस का तो काम। पर जसवंत-यशवंत को क्या हुआ। अपन को दोनों कांग्रेस की कठपुतली तो नहीं लगते। अपन को वह दिन नहीं भूले। जब वाजपेयी राज के वक्त एक संपादक ने लेख लिखा था- 'जसवंत सिंह हो सकते हैं वाजपेयी के उत्तराधिकारी।'

अर्जुन सिंह का जहर बुझा तीर फिर फुस्स

Publsihed: 09.May.2008, 21:05

घी हर किसी को हजम नहीं होता। पर कई होते हैं, जो इंसान को भी कच्चा चबा जाएं। डकार भी न लें। अपन आज राजनीति के दो महारथियों की बात करेंगे। पी. चिदंबरम। जिनने ताजा बढ़ी महंगाई पर कहा- 'इतनी भी नहीं बढ़ी। चीखने-चिल्लाने की जरूरत नहीं।' दूसरे- अर्जुन सिंह। जिनका सितारा गर्दिश में। हताश अर्जुन को पिछले महीने बताया गया था- सोनिया-राहुल की चापलूसी से बाज आएं। तो अबके अर्जुन ने अपनी कमान से नया तीर निकाला। उनने सीधा सोनिया पर निशाना साध दिया। बोले- 'हाईकमान सलाह मशविरे से फैसले नहीं ले रहा। इसलिए कांग्रेस में मुश्किल-दर-मुश्किल।' अपन अर्जुन के जहर बुझे राजनीतिक तीरों से वाकिफ।

बूटा सिंह गए, तो अंबूमणि क्यों रहें

Publsihed: 08.May.2008, 20:37

अपन को पहले से पता था- 'डा. वेणुगोपाल कोर्ट में जीत जाएंगे।' हेल्थ मिनिस्टर अंबूमणि रामदौस दो साल से हाथ धोकर पीछे पड़े थे। अंबूमणि जैसे ही नई साजिश रचते। अरुण जेटली अदालत से वेणुगोपाल को राहत दिला लाते। अंबूमणि जब अदालतों से थक-हार गए। तो नवंबर में एम्स डायरेक्टर की उम्र पर नया कानून बनवा दिया। कानून था- पैंसठ साल की उम्र तक ही कोई डायरेक्टर हो सकेगा। वेणुगोपाल हो गए थे पैंसठ के। एनडीए राज में हेल्थ मिनिस्टर रही सुषमा स्वराज ने संसद में कहा था- 'यह बिल सिर्फ वेणुगोपाल के खिलाफ व्यक्तिगत दुर्भावना से लाया गया।' अब सुप्रीम कोर्ट ने सुषमा की कही बात सच साबित की। अदालत ने कानून को रद्द कर दिया। वेणुगोपाल बहाल हो गए। रामगोपाल वर्मा की एक फिल्म आई थी- 'अब तक छप्पन।' तो अब वेणुगोपाल के एम्स में 'अब सिर्फ छप्पन।'

चावला के खिलाफ बीजेपी का केस और पुख्ता हुआ

Publsihed: 07.May.2008, 20:41

चुनाव आयुक्त नवीन चावला के खिलाफ बीजेपी का केस अब और मजबूत। बीजेपी ने पिछले साल सात अगस्तElection Commissioner Navin B Chawla को चावला को हटाने की अर्जी लगाई थी। बीजेपी का आरोप था- 'नवीन चावला कांग्रेस के हाथों की कठपुतली। वह सोनिया गांधी के करीबी। सो निष्पक्ष होकर काम नहीं कर सकते।' यों नवीन चावला की इंदिरा परिवार से नजदीकी बहुत पुरानी। इमरजेंसी में चावला काफी विवादों में रहे। इमरजेंसी के अत्याचारों की जांच हुई। तो शाह कमिशन ने चावला का काफी जिक्र किया। नजदीकी का ताजा सबूत सत्रह फरवरी 2006 को सामने आया। जब खुलासा हुआ- 'कांग्रेस के पांच सांसदों ने चावला की बीवी रूपिका के ट्रस्ट को सांसद निधि से फंड दिया।'

अब फिर कभी महिला बिल लाने की जरूरत नहीं

Publsihed: 06.May.2008, 20:48

सोचो, राज्यसभा न होती। लोकसभा होती। तो सोमनाथ चटर्जी क्या करते। राज्यसभा में मंगलवार को जो हुआ। लोकसभा में तो 24 और 28 अप्रेल को कुछ भी नहीं था। दादा ने फिर भी 32 सांसदों पर फंदा लगा दिया था। तो बात राज्यसभा की। हंगामे, नारेबाजी, धक्का-मुक्की के बीच महिला आरक्षण बिल पेश हो गया। यूपीए का काम खत्म। चार दिन पहले जिक्र तक नहीं था। आखिर इसकी अचानक जरूरत क्यों पड़ी? कहीं मिड टर्म पोल की घंटी तो नहीं बजने वाली। अपन ने दो मार्च को लिखा था- 'जून में भंग तो नहीं हो जाएगी लोकसभा।' यों एटमी करार पर यूपीए-लेफ्ट मीटिंग एक बार फिर बेनतीजा रही। अपन को इस पहेली की समझ नहीं आई।

तो स्पीकर ने टकराव टाल किया सत्रावसान

Publsihed: 05.May.2008, 20:41

एटमी करार पर यूपीए-लेफ्ट मीटिंग से पहले सत्रावसान हो जाए। कांग्रेस तो यह पहले से चाहती थी। तीस अप्रेल को लोकसभा निपटाने की तैयारी थी। दो मई नहीं, तो पांच मई को राज्यसभा। पर कम्युनिस्ट नहीं माने। तो नौ तक सत्र चलाने का फैसला हुआ। अपन ने तीस अप्रेल को लिखा था- 'लोकसभा का काम तो निपट गया। राज्यसभा का एक-आध दिन का बाकी। कांग्रेस ने नौ तक सत्र की मुसीबत बिना वजह मोल ली।' पर कांग्रेस की मुसीबत उस समय टल गई। जब सोमनाथ चटर्जी ने एनडीए से टकराव मोल ले लिया। स्पीकर को अपना फैसला तो वापस लेना ही पड़ा।

क्या रोज-रोज महंगाई का घिसा-पिटा सवाल पूछते हो

Publsihed: 03.May.2008, 04:43

अपन बेटी को रेलवे स्टेशन छोड़ने गए। तो वहां पर जाकर पता चला। वह कंटेक्ट लैंस की डिब्बी भूल आई। अपन ने सोचा मार्केट से खरीदकर नई दे देंगे। सो अपन मार्केट में घुसे। तो पता चला दिल्ली में हड़ताल थी। महंगाई के खिलाफ शुक्रवार को पूरे देश में हड़ताल रही। दिल्ली पर तो महंगाई का सबसे ज्यादा असर। वैसे हर बंदे को अपनी थाली का लड्डू छोटा लगता है। सो अपन को दिल्ली की महंगाई सबसे ज्यादा लगती है। अपन यह नहीं कहते- देश की बाकी जगहों पर महंगाई कम। ऐसा होता- तो केरल, असम, मेघालय जैसे राज्यों में हड़ताल इतनी सफल नहीं होती। अपन ने इन जगहों का नाम जान-बूझकर लिखा। वरना राजस्थान, कर्नाटक, बिहार, यूपी, एमपी, एचपी, जेके में भी हड़ताल कम सफल नहीं हुई।

अब स्पीकर-विपक्ष में टकराव का नया एजेंडा

Publsihed: 01.May.2008, 20:51

टीआर बालू के मुद्दे पर टकराव अभी थमा नहीं। सोमवार को राज्यसभा में तो घमासान होगा ही। विपक्ष ने मुरली देवड़ा का बयान कबूल नहीं किया। यों भी मुरली देवड़ा विशेषाधिकार हनन के लफड़े में फंस चुके। सदन में बयान बाद में आया। अखबारों में पहले छप गया। सो अपने बिहार वाले दिग्विजय सिंह ने नोटिस दे दिया। यों देवड़ा सदन में तो बोल ही नहीं पाए। लिखा हुआ बयान टेबल करना पड़ा। अपन ने तो उस दिन लिखा ही था- 'मुरली देवड़ा का बयान अंत नहीं होगा। वहां से तो सिर्फ शुरूआत होगी।' विपक्ष मनमोहन से जवाब मांग रहा है। मनमोहन ने भी वही गलती की। वह बुधवार की रात अपने घर पर मीडिया से बोले। संसद में नहीं बोले। यह भी संसद की अवमानना। पर अवमानना का सबसे बड़ा सवाल तो लोकसभा में। जहां अपने स्पीकर दादा सोमनाथ चटर्जी ने नया मोर्चा खोल लिया। सवाल वहां भी बालू-मनमोहन के खिलाफ नारेबाजी का। याद होगा, जब 28 अप्रेल को दादा ने सदन की बिजली गुल कराई।

कर्नाटक में कांग्रेस को सिर मुड़ाते ही ओले पड़े

Publsihed: 30.Apr.2008, 20:40

अपन को अरुण जेटली बता रहे थे- नेहरू की क्षमता चार सौ सीटों की थी। इंदिरा की घटकर तीन सौ रह गई। राजीव गांधी का 1984 छोड़ दें। तो असली क्षमता ढाई सौ बची थी। सोनिया की क्षमता डेढ़ सौ रह गई। राहुल पचहत्तर-सौ पर टिकेंगे। जेटली कुछ भी कहें। राहुल कांग्रेस के युवराज। भले ही युवराज कहने पर राहुल खुद इनकार करें। पर कांग्रेसी युवराज से कम नहीं मानते। भले ही राहुल की राजनीतिक सूझ-बूझ गड़बड़ाने लगी हो। पर राहुल से पहले प्रियंका की बात। प्रियंका जेल में जाकर पिता की हत्यारिन नलिनी से मिली। तो प्रियंका की भावुकता का ढोल बजाया गया। पर जब मुलाकात का राज खुला। तो अपन ने सोलह अप्रेल को लिखा था- 'पहले सोनिया ने नलिनी को फांसी की सजा माफ कराई। अब प्रियंका की नलिनी से मुलाकात।' अपन ने कोई सवाल नहीं उठाया। पर शक की सुई तो घुमाई ही।