एटमी करार पर यूपीए-लेफ्ट मीटिंग से पहले सत्रावसान हो जाए। कांग्रेस तो यह पहले से चाहती थी। तीस अप्रेल को लोकसभा निपटाने की तैयारी थी। दो मई नहीं, तो पांच मई को राज्यसभा। पर कम्युनिस्ट नहीं माने। तो नौ तक सत्र चलाने का फैसला हुआ। अपन ने तीस अप्रेल को लिखा था- 'लोकसभा का काम तो निपट गया। राज्यसभा का एक-आध दिन का बाकी। कांग्रेस ने नौ तक सत्र की मुसीबत बिना वजह मोल ली।' पर कांग्रेस की मुसीबत उस समय टल गई। जब सोमनाथ चटर्जी ने एनडीए से टकराव मोल ले लिया। स्पीकर को अपना फैसला तो वापस लेना ही पड़ा।
साथ में हाथों-हाथ लोकसभा का सत्रावसान भी हो गया। आज राज्यसभा का सत्रावसान भी। पर उससे पहले महिला आरक्षण बिल लाने की तैयारी। सोमवार रात केबिनेट मीटिंग की खबर मिली। तो लालू भड़क गए। उनने महिला आरक्षण का खुलकर विरोध किया। देर रात तक कांग्रेसी मना रहे थे- 'पेश ही तो कर रहे हैं। पास थोड़ा करवा रहे हैं।' पर बात हो रही थी स्पीकर की। सांसदों पर कार्रवाई का कदम पीछे हटाने के सवालों से घिरते। सो पहली बार सत्रावसान पर प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। सत्रावसान इतनी हड़बड़ी में हुआ। सोनिया वंदेमातरम् तक नहीं पहुंच पाई। पर बात स्पीकर-एनडीए टकराव की। उनने 32 सांसदों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। तो अपन ने दो मई को लिखा था- 'अब स्पीकर-विपक्ष में टकराव का नया एजेंडा।' यह अच्छा हुआ। जो विपक्ष ने स्पीकर के खिलाफ गांधीगिरी अपनाई। सोमनाथ चटर्जी जब निर्मला देशपांडे को श्रध्दांजलि दे रहे थे। तो एनडीए के सांसद मुंह पर ऊंगली रखकर बैठे थे। स्पीकर उन्हें दस मिनट नहीं झेल पाए। जब हामिद अंसारी ने मैत्रेय को सदन से निकाल दिया। तो एनडीए ने यही रास्ता राज्यसभा चेयरमैन के खिलाफ भी अपनाया था। मैत्रेय का कसूर था- टीआर बालू की कुनुबाप्रस्ती का भंडा फोड़ना। विपक्ष की गांधीगिरी स्पीकर-चेयरमैन पर भारी पड़ी। सोमनाथ चटर्जी दो बजे तक कार्यवाही स्थगित कर चेंबर में गए। तो चेंबर में जो कुछ हुआ। अपन लिख दें, तो विशेषाधिकार समिति में अपना किस्सा भी जाएगा। स्पीकर के चेंबर की बात जब लोकसभा में नहीं होती। तो अपन अखबार में कैसे लिखें। देवेंद्र प्रसाद यादव ने कोशिश की। कहा- 'स्पीकर के चेंबर की बात सदन में रखी जाए।' पर वह तो ऐसी बात कह रहे थे, जो चेंबर में हुई ही नहीं। बोले- 'चेंबर में बीजेपी वालों ने जो माफी मांगी। वह रिकार्ड में लाई जाए।' स्पीकर के कानों में यह बात सुहाई होगी। सो उनने कहा- 'इसे रहने दीजिए।' पर इस जवाब से सदन के रिकार्ड में झूठ चला जाता। सो एनडीए ने हल्ला किया। प्रभुनाथ सिंह ने कहा- 'स्पीकर महोदय यह माफी की बात कहां से आई?' तब स्पीकर ने स्पष्ट किया- 'माफी मांगने वाली कोई बात हुई ही नहीं। पता नहीं यह बात कहां से आई।' आप इससे राजनीतिबाजों की हरकतों का अंदाज लगा लो। सदन में भी झूठ से बाज नहीं आते। पर चेंबर में जो कुछ हुआ। प्रभुनाथ सिंह कैसे गरजे। कैसे पानी पिलाया। अपन उस पर अपनी कलम नहीं चला सकते। यों स्पीकर-एनडीए टकराव कोई नया नहीं। दो बार तो अविश्वास प्रस्ताव की नौबत आ चुकी। सोम की एनडीए मीटिंग में भी तय हुआ- 'फिलहाल गांधीगिरी। धीरे-धीरे अविश्वास प्रस्ताव की ओर।' पर दादा गांधीगिरी से ही...। जब चेंबर में कार्रवाई का फैसला वापस लेना तय हो ही गया। तो सदन में प्रणव दा ने प्रस्ताव रखा। आडवाणी ने सहमति दी। दादा बोले- 'मैं वापस ले लूंगा।' स्पीकर को जैसे फैसला वापस लेना पड़ा। उस हालात में सदन आगे क्या चलता। तो चेंबर में ही आडवाणी के सामने प्रणव दा ने सत्रावसान का सुझाव रखा। जिसे आडवाणी भी मान गए, दादा भी। आखिर दोनों को कर्नाटक चुनाव की ज्यादा फिक्र। चेंबर में सहमति हुई।
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