अपन जयपुर के धमाकों पर फौरी कयास तो नहीं लगाते। पर धमाकों का रिश्ता पाक की सियासत से जुड़े। तो अपन को कतई हैरानी नहीं होनी। पाकिस्तान के चुनावों से जमहूरियत लौटी। तो अपन को जहां खुशी हुई। वहां मन में एक आशंका भी थी। आशंका थी- फौज इस जमहूरियत को कितना बर्दाश्त करेगी। करेगी भी या नहीं। फौज ने पाक की जमहूरियत बर्दाश्त नहीं की। तो ठीकरा अपने ही सिर फूटेगा। अपन अभी यह तो नहीं कह सकते- जमहूरियत पटरी से उतरने लगी। पर जमहूरियत फेल करने की साजिशें तो शुरू हो चुकी। पाकिस्तान के अंदर भी। पाकिस्तान से बाहर भी। इक्कतीस मार्च को सय्यद युसूफ रजा गिलानी की सरकार बनी। तो फैसला हुआ था- 'तीस अप्रेल तक सभी बर्खास्त जज बहाल होंगे।'
अपन को पहले से आसिफ अली जरदारी पर शक था। वही हुआ, जब तीस अप्रेल बीत गई। पर जज बहाल नहीं हुए। फिर बारह मई की हद तय हुई। अब बारह मई भी बीत गई। तो नवाज शरीफ के सब्र का प्याला भर गया। आखिर नवाज शरीफ ने ही जजों की बहाली पर कसम खाई थी। जजों की बहाली नवाज शरीफ की पहली शर्त थी। अपन भले ही शक जाहिर न करें। पर पाकिस्तान में हर किसी को अमेरिका पर शक। शक है- 'अमेरिका ने जरदारी पर दबाव बनाया। जरदारी-मुशर्रफ में जजों की बहाली रोकने पर कोई सहमति बनी होगी।' अपन भले ही शक न करें। पर अपन पाकिस्तानी आवाम को शक करने से नहीं रोक सकते। मुशर्रफ को बर्खास्त जज बहाल होना कतई कबूल नहीं। यों भी मुशर्रफ पर अमेरिका ज्यादा ही मेहरबान। वैसे अमेरिका भरोसे लायक कतई नहीं। राष्ट्रपति बिल क्लिंटन हों। या जार्ज बुश। ओबामा बनें, या हिलेरी क्लिंटन। या फिर जान मैककेन। कथनी और करनी एक सी नहीं होती। मंगलवार की बात ही लें। विदेश मंत्रालय प्रवक्ता सीन मैककार्मेक बोले- 'हम पाक के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देंगे। मुझे लगता है पाकिस्तानी सरकार चलती रहेगी। यह वहां के सियासी दलों को तय करना है- वहां की सरकार नवाज शरीफ की मदद से क्या कर सकती है। क्या नहीं कर सकती।' चार लाइनों के बयान में कितना फर्क। पहली दो लाइनें अलग। दूसरी दो लाइनों में साफ धमकी- नवाज शरीफ के इशारों से सरकार नहीं चलनी। पर नवाज शरीफ जुबान के इतने कच्चे भी नहीं। सो उनने मंगलवार को अपने सभी नौ मंत्रियों के इस्तीफे करा दिए। जरदारी की नींद हराम नहीं हुई। तो अपन को हैरानी नहीं हुई। जरदारी बोले- 'बिना हमारे समर्थन के पंजाब में पीएमएल की सरकार नहीं चल सकती।' यों उनने अभी सारे रास्ते बंद नहीं किए। मंत्रियों के इस्तीफे कबूल नहीं हुए। पंजाब में पीएमएल को समर्थन जारी रखने का ऐलान हुआ। पर धमकी भी साथ-साथ दे दी। सियासत कोई अपने सियासतदानों से सीखे। वाजपेयी ने कैसे फारुख अब्दुल्ला से गठबंधन चलाया। मनमोहन सिंह ने कैसे लेफ्ट से गठबंधन चलाया। पर बात जजों की बहाली की। बहाली के रास्ते में कानूनी अड़चन। कानून के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के सत्रह जज होंगे। पर बर्खास्त जज बहाल हुए। तो जजों की तादाद छब्बीस हो जाएगी। सो पहले कानून बदलना होगा। पर अपन बात कर रहे थे- कहीं पाक की जमहूरियत का ठीकरा अपने सिर ही न फूटे। पाक की फौज को ऐसी जमहूरियत कतई पसंद नहीं आनी। जिसमें फौज की अहमियत घटे। यों भी फौज पर अभी भी मुशर्रफ की नकेल। मुशर्रफ ने भले ही पीएमएल-पीपीपी सरकार बनाई। पर सरकार मुशर्रफ की आंख की किरकिरी। अपना माथा तो तभी ठनका था। जब लश्कर आतंकियों ने जम्मू के सांभा बार्डर से घुसपैठ की। घुसपैठ का तरीका वही था। जो मुशर्रफ ने 1999 में अपनाया था। आतंकियों के भेष में फौजी। तीन दिन की चुप्पी के बाद मंगलवार को आखिर अपने एके एंटनी बोले- 'घुसपैठ में पाकिस्तान का हाथ।' यानी पाक की सियासत का असर बार्डर पर दिखने लगा।
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