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Exclusive Articles written by Ajay Setia

क्या सरकार के डेथ वारंट जारी कर चुके मनमोहन

Publsihed: 05.Jun.2008, 20:39

अपन कार्टूनिस्ट होते। तो राजीव प्रताप रूढ़ी का मसाला काम आता। रूढ़ी ने काफी मेहनत की होगी। तब यह जुमला दिमाग में उभरा होगा। रूढ़ी राजनीति में नहीं आते। तो अच्छे कार्टूनिस्ट हो सकते थे। वैसे बाल ठाकरे पहले कार्टूनिस्ट थे। फिर पॉलिटिशियन बने। पॉलिटिशियन भी ऐसे बने। गैर मराठियों का मुस्कुराना बंद कर दिया। हंसाना तो दूर की बात। खैर बात रूढ़ी के जुमले की। उनने अपने मनमोहन सिंह का नया नामकरण किया। कहा- 'मनमोहन सिंह नहीं, महंगाई सिंह कहना चाहिए।' अपन ने कल ही तो लिखा था- 'मनमोहन महंगाई का अपना रिकार्ड तोड़ेंगे।' गुरुवार को जब मनमोहन की मंत्रियों को चिट्ठी पढ़ी। तो अपन को आने वाले बुरे दिनों का आभास होने लगा। यानी देश की आर्थिक हालत उतनी बुरी नहीं। जितनी अपन सोचते थे। अलबत्ता उससे भी ज्यादा बुरी।

मनमोहन महंगाई का अपना रिकार्ड तोड़ेंगे

Publsihed: 05.Jun.2008, 06:05

मनमोहन सिंह को बधाई। सोनिया गांधी को भी बधाई। जो कसर रह गई थी। वह भी पूरी हो गई। आम आदमी का जमकर बाजा बजाया। बाजा बजाने का रेडियो-टीवी से संदेश भी दिया। अपनी बधाई इसी बात के लिए। पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस की कीमतें बढ़ाकर संबोधित तो ऐसे कर रहे थे। जैसे उनकी रहनुमाई में देश ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की हो। राजीव प्रताप रूढ़ी ने इसे आर्थिक आतंकवाद कहा। यों जेटली या नकवी सामने आते। तो ज्यादा संवेदनशील प्रतिक्रिया आती। बीजेपी को भी सही वक्त पर सही आदमी पेश करना नहीं आता। पर कांग्रेस ने संकट की इस घड़ी में सही आदमी पेश किया। मनीष तिवारी ने महंगाई की मजबूरी भी तर्को से समझाई। एनडीए राज की कीमतों के परखचे भी उड़ाए।

नरसिंह राव की संजीवनी बूटी तरुण गोगोई के हाथ

Publsihed: 03.Jun.2008, 20:35

बीजेपी की वर्किंग कमेटी निपट गई। आडवाणी को वर्किंग कमेटी से नया जोश मिला। सो मंगलवार को वह कांग्रेस पर और हमलावर हुए। बोले- 'एनडीए का राज आया। तो पीएम कमजोर नहीं होगा।' यानी उनने कहा- 'मैं मनमोहन सिंह की तरह लाचार और कमजोर नहीं होऊंगा।' मनमोहन को कमजोर कहो। तो अपने अभिषेक मनु सिंघवी के नथुने फूल जाते हैं। वे आपे में नहीं रहते। पर आडवाणी बाज नहीं आते। मंगलवार को उनने और भी ज्यादा चुभने वाला जुमला कसा। बोले- 'कांग्रेस पहले मुख्यमंत्रियों को घुटने टेक बनाती थी। ताकि आलाकमान का दबदबा बना रहे। अब पीएम को भी लाचार बना दिया। ताकि परिवार का दबदबा बना रहे।' आडवाणी ने कहा- 'मैं मजबूत पीएम, मजबूत सीएम का हिमायती।'

जैसे भ्रष्टाचार नेताओं का जन्मसिध्द अधिकार हो

Publsihed: 02.Jun.2008, 20:39

बीजेपी आलाकमान ने खाट खड़ी की। तो इतवार की रात एमपी भवन में मीटिंग हुई। रात बारह बजे तक चली मीटिंग। सीएम शिवराज चौहान के साथ मौजूद थे नरेंद्र तोमर और माखन सिंह। हेल्थ मिनिस्टर अजय विशनोई भी तलब किए गए। रास्ता नहीं बचा था। सो अजय विशनोई से इस्तीफा मांगा गया। भले ही इस्तीफे के बाद सीएम ने ना-नुक्कर की। ना-नुक्कर का मतलब अपने मंत्री को दूध का धुला बताना। पर इस्तीफे का फरमान खुद दिल्ली से लेकर गए थे। अजय विशनोई शुक्रवार को सुर्खियों में आए। जब विशनोई के भाई पर इनकम टेक्स के छापे पड़े। मंत्री बनने से पहले विशनोई का धंधा भी हेल्थ से जुड़ा था। मंत्री भी हेल्थ के बना दिए गए। वैसे राजनीतिक मर्यादा इसकी इजाजत नहीं देती। पर कहां रही मर्यादा?

पर चार जेटली कहां से लाएंगे राजनाथ सिंह

Publsihed: 02.Jun.2008, 06:11

अर्जुन के तीरों को समझना आसान नहीं। जैसे चिदंबरम का बजट पहली नजर में समझ नहीं आता। वैसे ही अर्जुन के तीर फोरन समझ नहीं आते। सो अर्जुन ने जो तीर शनिवार को वर्किंग कमेटी में चलाएं। कांग्रेसी इतवार को उसका चीर-फार कर रहे थे। तभी एक और ठाकुर ने तीर चला दिए। अर्जुन ने कर्नाटक की हार का ठिकरा मंहगाई के सिर फोड़ा। तो निशाना मनमोहन पर था। सोनिया ने अर्जुन को चापलुसी से रोका था। तीर चलाने से नहीं। यानि हार का ठिकरा सोनिया की रहनुमाई पर नहीं। अलबत्ता मनमोहन की मनेजमेन्ट पर। बीजेपी के ठाकुर राजनाथ सिंह ने भी मनमोहन पर तीर चलाई।

भूली-बिसरी वर्किंग कमेटी की याद आई सोनिया को

Publsihed: 30.May.2008, 20:39

अपने अभिषेक मनु सिंघवी का जवाब नहीं। गुर्जर आंदोलन पर बोले। तो वसुंधरा राजे को रानी-महारानी कह गए। पता नहीं सिंघवी का जमहूरियत से भरोसा क्यों उठा। वसुंधरा तो बाकायदा चुनी हुई सीएम। चुनाव में रहनुमाई भी वसुंधरा की थी। मनमोहन सिंह की तरह कतई नहीं। न पहले चुनाव में रहनुमाई की। न अब करेंगे। न जनता ने चुना, न चुने हुए सांसदों ने। सिंघवी की तरह वसु कभी राज्यसभा में भी नहीं रही। फिर सिंघवी का सीएम को रानी-महारानी कहना। अपन को खुन्नस के सिवा कुछ नहीं लगा। गुर्जर आरक्षण पर कांग्रेस का स्टेंड पूछा। तो बंदे के जुबान लड़खड़ाने लगी।

दिया जब रंज बूतों ने तो माया को खुदा याद आया

Publsihed: 29.May.2008, 20:35

राजस्थान की आग अब दूर-दूर तक फैल गई। रेल मार्गों के बाद गुरुवार को सड़कें भी जाम हुई। पड़ोसी राज्यों यूपी, हरियाणा में तो असर हुआ ही। जम्मू कश्मीर तक असर हुआ। जहां गुर्जरों को पहले से एसटी का दर्जा। जम्मू कश्मीर के गुर्जरों ने सवाल उठाया- 'सारे देश में गुर्जरों को एसटी का दर्जा क्यों नहीं।' सो तीन हजार गुर्जर सड़कों पर उतर आए। वसुंधरा राजे जम्मू कश्मीर में भी मशहूर हो गई। वहां भी वसुंधरा के पुतले जले। बदनाम होंगे, तो क्या नाम न होगा। राजनीतिक हमला करने वाले भी बिलों से निकल आए। दिल्ली से कांग्रेस वसुंधरा पर बरस रही थी। लखनऊ से मायावती।

किस-किस राज्य को संभालेंगी सोनिया

Publsihed: 28.May.2008, 20:33

गुर्जरों के आंदोलन की आंच दिल्ली पहुंची। तो दिल्ली की राजनीतिक हलचल तेज हो गई। अपनी वसुंधरा ने गेंद केंद्र के पाले में फेंकी। तो मनमोहन ने हंसराज भारद्वाज के पाले में। अब भारद्वाज के पाले से गेंद फिर वसुंधरा के पाले में। इससे साबित हुआ- 'धरती गोल है।' राजनीति का चक्र घूमना शुरू। कर्नाटक के बाद अब सोनिया बाकी राज्य बचाने में जुटी। सो मुकुल वासनिक, वीरेंद्रसिंह, पी सी जोशी, हेमाराम चौधरी दौरा करेंगे। टीम में अपने गहलोत का नाम नहीं। टीम आंदोलन के शहीदों के घर जाएगी। हमदर्दी के दो शब्द कहेगी। जरूरत पड़ी तो स्टेंड पर भी आधा-अधूरा ही सही। मुंह खोलेगी।

गुर्जरों को एसटी दर्जे पर ऐसे कन्नी काटी कांग्रेस

Publsihed: 27.May.2008, 21:23

सौ साल पहले गुर्जर चाहते थे- उन्हें क्षत्रीय माना जाए। आज कह रहे हैं- 'हमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले।' पर गुर्जर हैं क्या? अपन इतिहास के पन्ने पलटें। तो गुर्जरों की कई कहानियां मिलेंगी। पहली कहानी- हूण दो गुटों में बंट गए। रेड हूण और सफेद हूण। रेड हूण यूरोप चले गए। सफेद हूण ऑक्सेस घाटी पार कर काबुल में घुसे। काबुल में उनने किशन साम्राज्य पर कब्जा किया। फिर भारत में घुस आए। कहानी है- वे जॉर्जिया से आए। जो अंग्रेजी में 'जी' से शुरू होता है। जॉर्जिया का अपभ्रंश ही गुर्जर- गुज्जर हुआ। वे जॉर्जिया से मध्य एशिया, इराक, ईरान, अफगानिस्तान से खैबर दर्रा पार कर भारत में घुसे। दूसरी कहानी- गुर्जर असल में राजपूत थे। मुगलों ने भारत पर हमला किया। तो औरंगजेब से राजपूतों का एक समझौता हुआ। समझौता था- 'राजपूत युध्द में हार गए। तो उनका एक बड़ा हिस्सा मुस्लिम बन जाएगा।'

ओखली में सिर दिया तो अब भुगते यूपीए

Publsihed: 27.May.2008, 20:43

अपने मुरली देवड़ा मंगलवार को मनमोहन सिंह से मिले। तो उनने पेट्रोलियम कंपनियों को घाटे का ब्यौरा दिया। संसद का बजट सत्र खत्म हुआ। तब से पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने की अटकलें। पर अपन को पहले से पता था। कर्नाटक चुनाव तक कीमतें नहीं बढ़नी। सो नहीं बढ़ी। अपनी सरकार है, सो हर मामले में राजनीति से परहेज क्यों। अमेरिका होता, तो राष्ट्रपति देश को आर्थिक घाटे का जिम्मेदार ठहरा दिया जाता। पर मनमोहन ने चुनावी फायदे के लिए महीना भर कीमतें रोके रखी। अब कीमतें बढ़ेंगी, इससे मुरली देवड़ा ने कभी इनकार भी नहीं किया। अपने अभिषेक मनु सिंघवी भी दो टूक शब्दों में कह चुके- 'देश कीमतें बढ़ने के लिए तैयार रहे।' सो कीमतें तो बढ़ेंगी ही। आज नहीं तो कल। पर सरकार भी आम लोगों को हलाल करने पर आमादा।