क्या सरकार के डेथ वारंट जारी कर चुके मनमोहन
अपन कार्टूनिस्ट होते। तो राजीव प्रताप रूढ़ी का मसाला काम आता। रूढ़ी ने काफी मेहनत की होगी। तब यह जुमला दिमाग में उभरा होगा। रूढ़ी राजनीति में नहीं आते। तो अच्छे कार्टूनिस्ट हो सकते थे। वैसे बाल ठाकरे पहले कार्टूनिस्ट थे। फिर पॉलिटिशियन बने। पॉलिटिशियन भी ऐसे बने। गैर मराठियों का मुस्कुराना बंद कर दिया। हंसाना तो दूर की बात। खैर बात रूढ़ी के जुमले की। उनने अपने मनमोहन सिंह का नया नामकरण किया। कहा- 'मनमोहन सिंह नहीं, महंगाई सिंह कहना चाहिए।' अपन ने कल ही तो लिखा था- 'मनमोहन महंगाई का अपना रिकार्ड तोड़ेंगे।' गुरुवार को जब मनमोहन की मंत्रियों को चिट्ठी पढ़ी। तो अपन को आने वाले बुरे दिनों का आभास होने लगा। यानी देश की आर्थिक हालत उतनी बुरी नहीं। जितनी अपन सोचते थे। अलबत्ता उससे भी ज्यादा बुरी।