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Exclusive Articles written by Ajay Setia

अब पाकिस्तान के गले में कूटनीतिक फंदा

Publsihed: 05.Jan.2009, 20:50

चीन के उप विदेशमंत्री हे फेई बिचौलिया बनने आए थे। सोमवार को अपने विदेश सचिव से मिले। तो शिवशंकर मेनन ने सबूतों का पुलिंदा थमा दिया। मेनन ने दिन की शुरूआत शाहिद मलिक को तलब करके की। पाकिस्तान के हाई कमिशनर हैं जनाब। मेनन ने मलिक को छह सबूत सौंपे। पहला- अजमल कसाब का कबूलनामा। दूसरा- आतंकियों के रूट मोबाइल का जीपीएस रिकार्ड। तीसरा- आतंकियों की ओर से इस्तेमाल सेटलाईट फोन का कच्चा चिट्ठा। चौथा- सेटलाईट फोन से जरार शाह से हुई बातचीत का ट्रांसक्रिप्ट। पांचवा- आतंकियों से बरामद हथियारों का ब्योरा। छटा- कराची से मुंबई लाए जहाज की लॉग बुक का रिकार्ड। अब पाकिस्तान का बचकर निकलना मुश्किल। हाई कमिशनर ने सबूत इस्लामाबाद भेजे। तो पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय में सन्नाटा पसर गया। शाह महमूद कुरैशी जहां खड़े थे, खड़े रह गए।

कहीं पाक-बांग्लादेश में आतंकी मुकाबला तो नहीं

Publsihed: 03.Jan.2009, 05:32

कुछ तो आतंकवाद का असर। कुछ मंदी की मार। सो नए साल का स्वागत शानदार नहीं हुआ। शिमला, मसूरी, नैनीताल में टूरिस्ट नहीं गए। तो कश्मीर के बारे में सोचना ही क्यों। अपन ने शिमला में मंदी और आतंक का साया रू-ब-रू देखा। अपन को वे दिन भी याद। जब 31 दिसंबर को मॉल पर तिल धरने को जगह नहीं होती थी। पिछले साल की बात ही लो। अपने प्रेम कुमार धूमल ने 30 दिसंबर 2007 को शपथ ली। सो अगली रात एक पंथ, दो काज हुआ। मॉल पर घूम टूरिस्टों को नए साल की बधाई। साथ में लोकल वोटरों को जिताने का आभार। अपने सुरेश भारद्वाज भी साथ थे। जिनने शिमला में कांग्रेस का किला ढहाया। धूमल मॉल पर पैदल निकले। तो पुलिस को रास्ता बनाना पड़ा। पर इस साल काफिले के साथ आसानी से निकल गए। एक दिन पहले ही धूमल सरकार की सालगिरह थी। सो 30 को आडवाणी की रैली भी मॉल पर हुई। अपन मॉल का इतिहास बताते जाएं। मॉल पर पीएम-सीएम के अलावा रैली नहीं हो सकती। पर राजनारायण जब मोरारजी सरकार में हेल्थ मिनिस्टर थे। तो उनने रैली करके शांता कुमार को ललकारा। शांता ने राजनारायण पर कानूनी कार्रवाई की। राजनारायण की चेली थी- श्यामा शर्मा। श्यामा ने हिमाचल में बगावत कर दी।

एक-दूसरे से डरकर ही हो रही जंग की तैयारी

Publsihed: 27.Dec.2008, 07:08

भारत-पाक तनाव कुछ और बढ़ा। दोनों ने जंग रोकने की कोशिश भी शुरू की। पर दोनों तरफ फौजियों की छुट्टियां भी रद्द। एक कदम आगे, तो दो कदम पीछे की रणनीति। मनमोहन सिंह ने कहा था- 'मुद्दा जंग नहीं। जंग कोई नहीं चाहता।' तो यूसुफ रजा गिलानी ने भी कहा- 'हम जंग नहीं चाहते।' पर अविश्वास की गहरी खाई पैदा हो गई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कह दिया- 'भारतीय नागरिक पाकिस्तान न जाएं।' यह सतीश आनंद शुक्ल की गिरफ्तारी के बाद एहतियात। यों शुक्ल की बात चली। तो बता दें- इस पाकिस्तानी शिगूफे की हवा अंसार-वा-मुहाजिर ने निकाल दी। किसी तूफान वजीर ने कहा- 'लाहौर कार बम विस्फोट हमने किया। वजीरीस्तान में अमेरिकी हमले का जवाब। अभी तो और फिदायिन हमले होंगे।'

जुबान की जंग में अपन सेर, तो पाक सवा सेर

Publsihed: 26.Dec.2008, 06:01

अपन को प्रणव दा की रणनीति विफल होती दिखने लगी। दादा की रणनीति हू-ब-हू वाजपेयी जैसी। संसद पर हमले के बाद वाजपेयी ने भी जंग का माहौल बना दिया था। फौज बार्डर पर कूच कर गई थी। महीनों बार्डर पर जमी रही। जमी हुई बर्फ पिघल गई। तो फौज भी लौट आई। तब वाजपेयी ने 'आर या पार' का जुमला कसा था। अब प्रणव दा ने सभी विकल्प खुले होने का जुमला कसा। अच्छा-भला अपने एंटनी ने कह दिया था- 'जंग नहीं होगी।' प्रणव दा ने अगले ही दिन जंग का माहौल बना दिया। चुनाव जीतने के लिए जंग का इरादा हो। तो अलग बात। पर आप डराने के लिए माहौल बनाओगे। तो पाकिस्तान कोई बच्चा नहीं। जो चुप बैठेगा। माहौल बनाने में अपन सेर। तो वह सवा सेर। अपने प्रणव दा ने सिर्फ जुबान के बम चलाए। जरदारी ने लड़ाकू विमानों की रिहर्सल करवा दी। जरदारी उसी जुल्फिकार अली भुट्टो के दामाद। जिनने एक हजार साल तक लड़ने की कसम खाई थी।

आतंक-जंग के माहौल में जन्मदिन पर चुनावी वसूली

Publsihed: 25.Dec.2008, 06:15

अपन ने तेईस दिसंबर को जब लिखा- 'तेवर भी, तैयारियां भी, चुनावी फायदा भी।' तो अपन ने उसमें साफ लिखा था- 'शिवशंकर मेनन अखबारनवीसों से मुखातिब हुए। न तेवर दिखे, न तैयारियां।' अपन ने सही भांपा था। मंगलवार को ही मनमोहन सिंह ने कह दिया- 'जंग मुद्दा नहीं। मुद्दा आतंकवाद। जंग कोई नहीं चाहता।' पर राष्ट्रपति जरदारी-पीएम गिलानी का रवैया हाय तौबा मचाने का। बुधवार को उसका असर भी दिखा। जब नवाज शरीफ अपने कहे से पलट गए। पांच दिन पहले उनने कहा था- 'कसाब पाकिस्तानी ही है। मैंने खुद पता लगवा लिया।' पर जरदारी-गिलानी की मुहिम का असर हुआ। नवाज शरीफ ने बुधवार को यू टर्न ले लिया। बोले- 'भारत सबूत दे। तो मैं खुद जरदारी से कहूंगा- कार्रवाई की जाए।' अपन को जैसा शक था। हू-ब-हू वही हुआ। नवाज ने अपने भाई की सरकार बचाने के लिए पलटी मारी होगी।

न अंतुले को अफसोस, न सरकार शर्मसार

Publsihed: 24.Dec.2008, 06:05

मनमोहन के अपने ही मंत्री ने छह दिन सरकार की फजीहत करवाई। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर किया। पाकिस्तान को कहने का मौका मिला- 'मुंबई के आतंकी मुसलिम लिबास में नहीं थे। वे क्लीन शेव थे। वे आर.एस.एस. काडर जैसे दिखते थे। जिसे कसाब कह कर पाकिस्तानी बताया गया। उस की दाईं कलाई पर पीला धागा बंधा है। जैसा हिंदू पहनते हैं।' जी हां, यह सब पाकिस्तानी प्रैस में छपा है। अपन को वहां के पत्रकार अब्दुल कयूम ने लिखकर भेजा। कसाब की वह फोटू भी ई मेल में भेजी। ताकि अपन दाईं कलाई पर बंधा वह धागा देख लें। जिसे अपन पूर्जा-अर्चना के वक्त बांधते हैं। पाक में अंतुले के सवाल भी उठाए गए- 'आतंकी ने पहले पंद्रह मिनट में करकरे को कैसे मार दिया। करकरे ने बुलेट प्रूफ जैकट पहनी थी। यह आतंकी को भी पता था। इसलिए गोली उसकी गर्दन पर मारी। आतंकी ने भीड़ में करकरे को कैसे पहचान लिया।'

तेवर भी, तैयारियां भी चुनावी फायदा भी

Publsihed: 23.Dec.2008, 12:29

बीजेपी पांच दिन बाद नींद से जागी। तो सोमवार को अंतुले पर संसद ठप्प हुई। सत्रह दिसंबर को संसद ठप्प होती। तो सोनिया तुरुत-फुरुत फैसले को मजबूर होती। सोनिया चाहती तो अंतुले अब तक नप चुके होते। मनमोहन पर फैसला छोड़ सोनिया ने डबल क्रास किया। पता था- मनमोहन मन बनाकर भी कुछ नहीं करेंगे। इधर सिंघवी-मनीष से पल्ला झाड़ने वाला बयान दिलाया। उधर शकील- दिग्विजय से समर्थन करवाया। वोट देखो, वोट की धार देखो वाली नीति। सोनिया के रवैये से अंतुले खुश। अंतुले को साफ लगने लगा- अब उनका कुछ बिगाड़ना आसान नहीं। सो सोमवार को उनने बीजेपी सांसदों को ललकारा। तो प्रणव दा पहली बैंच पर हैरान-परेशान-लाचार बैठे रहे। आतंकवाद के खिलाफ बनी एकता हफ्तेभर में तार-तार हो गई। वृंदा कारत बोली- 'अंतुले का बयान अफसोसनाक। पाक को फायदा पहुंचाने वाला। हम तो सिर्फ यही चाहते हैं- मालेगांव की जांच ठप्प न हो।' बात मालेगांव की चली। तो बता दें- सोमवार को जांच आगे बढ़ी। एटीएस ने लेफ्टिनेंट जनरल पुरोहित के फौजी साथियों से पूछताछ की। पर बात मालेगांव की नहीं। बात मुंबई पर हुए आतंकी हमले की। जिस पर भारत-पाक तनाव शिखर पर।

आखिर पीएम ने बनाया अंतुले की छुट्टी का मन

Publsihed: 20.Dec.2008, 09:27

अंतुले से बयान पलटने को कहा गया। पर वह अचानक कट्टरवादी चौगा पहनने लगे। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी वाले शहाबुद्दीन नए दोस्त बन गए। शकील अहमद भी अंतुले को चने के झाड़ पर चढ़ाने लगे। अंतुले कभी कट्टरवादी नहीं रहे। कहा करते थे- 'मैं अब्दुल रहमान बाद में हूं। पहले अंतुले हूं।' अंतुले यानी चित्तपावन ब्राह्मण। पूर्वजों ने कभी इस्लाम कबूल किया होगा। यह वह फख्र से कहते रहे। शकील अहमद कह रहे थे- 'मुसलमानों ने अंतुले को कभी अपना नेता नहीं माना। पर मीडिया ने तीन दिन में बना दिया।' इन तीन दिनों में भले संसद में कांग्रेस की किरकिरी हुई। किसी ने अंतुले की उम्र पर फब्ती कसी। किसी ने दिमागी चैकअप की मांग उठाई। पर अंतुले की सेहत पर असर नहीं। अंतुले का रिकार्ड पल-पल बयान बदलने का। फिर ऐसा क्या हुआ। जो अंतुले अड़ गए। शुक्रवार को उनने फिर कहा- 'कांग्रेस और सरकार को तो मुझ पर फख्र करना चाहिए। परेशानी किस बात की।' अपन इसकी वजह बता दें। अंतुले के फोन की घंटी कभी दिनभर नहीं बजती थी। केबिनेट मंत्री जरूर थे। पर बैठने को दफ्तर तक के लाले थे।

तो क्या अंतुले पर बढ़ती उम्र का असर

Publsihed: 18.Dec.2008, 21:00

अब्दुल रहमान अंतुले मुसीबत में नहीं। मुसीबत में मनमोहन सिंह। उनसे भी ज्यादा प्रणव मुखर्जी। सबसे ज्यादा मुसीबत कांग्रेस की। अपन ने कल अंतुले का करकरे पर बयान बताया ही था। उनकी मांग थी- 'करकरे की हत्या पर अलग से जांच होनी चाहिए। वह ऐसे केसों की जांच कर रहे थे। जिनमें गैर मुस्लिम शामिल थे।' वैसे महाराष्ट्र सरकार ने गुरुवार को यह मांग ठुकरा दी। अंतुले ने यह भी कहा था- 'बड़ी वारदात तो होटल में हुई। करकरे को कामा अस्पताल की तरफ किसने भेजा।' अब जब अंतुले का बयान मुसीबत बना। कांग्रेस ने पल्ला झाड़ा। तो अंतुले कह रहे हैं- 'मैंने तो सिर्फ गलत दिशा में जाने की बात उठाई थी।' बवाल गुरुवार को भी नहीं थमा। संसद के दोनों सदनों में हंगामा हुआ। हंगामा तो महाराष्ट्र विधानसभा में भी हुआ। पर अंतुले लोकसभा में बिना टस से मस हुए बैठे रहे। विपक्ष मंत्री पद से हटाने की मांग करता रहा। अंतुले का घमंड देखिए। बोले- 'मैं किसी को जवाबदेय नहीं। मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा। जो सरकार  को मुश्किल में डाले। मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। जिससे कांग्रेस मुसीबत में फंसे। अलबत्ता मैंने तो सरकार की मदद की।'

दस साल बाद नींद खुली कुंभकर्ण की

Publsihed: 18.Dec.2008, 10:22

अपने मित्र अब्दुल कयूम की ई मेल से अपन गुस्से में थे। इस्लामाबाद से अब्दुल ने कई बेतुके सवाल किए। जैसे- करकरे समेत एटीएस के तीन अफसर मौके पर कैसे पहुंचे? उन्हें किसने फोन किया था? अजमल की दांई कलाई पर लाल धागा। सो वह मुस्लिम नहीं, हिंदू। वगैरह-वगैरह। अपन ने इन बेतुकी बातों को एक कान से सुन दूसरे से निकाल दिया। अब अपना सिर शर्म से झुक गया। जब बुधवार को अब्दुल कयूम की जगह अब्दुल रहमान अंतुले बोले- 'कई बार जो दिखता है, वह होता नहीं। करकरे ऐसे केसों की जांच कर रहे थे। जिनमें गैर मुस्लिम शामिल थे। करकरे की हत्या पर अलग से जांच होनी चाहिए।' अपन नहीं जानते। मनमोहन अपने मंत्री के इस बयान पर क्या रुख अपनाएंगे। राजीव प्रताप रूढ़ी ने मनमोहन से पूछा तो है। अब बात कलाई पर लाल धागे की। अजमल से हैदराबाद के अरुणोदय डिग्रीकालेज का पहचान पत्र मिला। तो अपन को वह बात भी समझ आ गई।