अपन को प्रणव दा की रणनीति विफल होती दिखने लगी। दादा की रणनीति हू-ब-हू वाजपेयी जैसी। संसद पर हमले के बाद वाजपेयी ने भी जंग का माहौल बना दिया था। फौज बार्डर पर कूच कर गई थी। महीनों बार्डर पर जमी रही। जमी हुई बर्फ पिघल गई। तो फौज भी लौट आई। तब वाजपेयी ने 'आर या पार' का जुमला कसा था। अब प्रणव दा ने सभी विकल्प खुले होने का जुमला कसा। अच्छा-भला अपने एंटनी ने कह दिया था- 'जंग नहीं होगी।' प्रणव दा ने अगले ही दिन जंग का माहौल बना दिया। चुनाव जीतने के लिए जंग का इरादा हो। तो अलग बात। पर आप डराने के लिए माहौल बनाओगे। तो पाकिस्तान कोई बच्चा नहीं। जो चुप बैठेगा। माहौल बनाने में अपन सेर। तो वह सवा सेर। अपने प्रणव दा ने सिर्फ जुबान के बम चलाए। जरदारी ने लड़ाकू विमानों की रिहर्सल करवा दी। जरदारी उसी जुल्फिकार अली भुट्टो के दामाद। जिनने एक हजार साल तक लड़ने की कसम खाई थी।
जरदारी ने कहा- 'खून की आखिरी बूंद तक लड़ेंगे।' प्रणव दा तो इशारों में ही जंग की धमकी दे रहे थे। पाक ने लड़ाकू विमान उड़ाए। तो अपन को भी वायु सेना, नौसेना अलर्ट करनी पड़ी। थल सेना अलर्ट करने की भी सुगबुगाहट हुई। प्रणव दा की रणनीति से माहौल गरमाया। तो अपने मनमोहन सिंह बुदबुदाए- 'जंग मुद्दा नहीं। जंग कौन चाहता है। मुद्दा आतंकवाद।' मनमोहन ढीले पड़े। तो पाकिस्तान के पीएम गिलानी ने भी कह दिया- 'जंग नहीं होगी। पर हुई, तो देश के स्वाभिमान की रक्षा करेंगे।' वैसे अमेरिका जंग होने नहीं देगा। लब्बोलुबाब यह- प्रणव दा जुबान की जंग लड़ रहे थे। तो जरदारी ने भी उसी भाषा में जवाब दिया। सिर्फ जंग पर प्रणव दा की रणनीति नहीं अपनाई। पाकिस्तानी आतंकी कसाब के मामले में भी वैसा ही जवाब। अपन जानते हैं- मुंबई में पकड़ा गया कसाब पाकिस्तानी। अपन सिर्फ कसाब के कहे को सबूत नहीं मानते। बीबीसी और जीईओ टीवी ने सबूत दिए। पर अपन ने कसाब की चिट्ठी से पहले कोई सबूत नहीं दिया। अपन सबूत देते। तो इंटरपोल का चीफ पाक के हक में न बोलता। खाली आरोपबाजी सबूत नहीं होते। सो जैसे अपन ने संसद में एकजुटता दिखाई। वैसे ही बुधवार को पाक की नेशनल एसेंबली में भी एकजुटता दिखी। एक सांसद चौधरी अनवर भिंडर बोले- 'भारतीय नेता आरोपबाजी बंद न करें। तो पाक को भी उसी भाषा में जवाब देना चाहिए।' चौबीस घंटे नहीं बीते। अनवर भिंडर के आइडिए पर अमल हो गया। पाक ने भी उसी भाषा में जवाब दे दिया। लाहौर में आतंकी वारदात हुई। भले ही एक ही आदमी मरा। पर उनने फौरन एक बंदा पकड़कर उसे भारतीय सतीश आनंद शुक्ल बता दिया। अपन ने कसाब को पाक के फरीदकोट गांव का बताया। तो उनने शुक्ल को भारत के कोलकाता का बता दिया। साथ में दावा- 'शुक्ल तीन साल तक लंदन के इंडियन हाईकमिशन में तैनात था।' बात कसाब की चली। तो वह भी सुन लो। पाकिस्तान की होम मिनिस्ट्री के सलाहकार रहमान मलिक बोले- 'नेशनल डेटाबेस एंड रजिस्ट्रेशन अथारिटी ने छानबीन कर ली। अजमल अमीर इमान उर्फ अजमल कसाब नाम का कोई शख्स नहीं।' यह अलग बात। जो हालत पाक में भी भारत जैसी। पाक की आबादी सोलह करोड़। पर डेटाबेस में रजिस्ट्रेशन सिर्फ छह करोड़ की। इसीलिए अपन कहते हैं- नेशनल आईडंटिटी कार्ड बनाए जाएं। पर बात सतीश आनंद शुक्ल की। अपन नहीं जानते- ऐसा कोई शख्स पकड़ा भी गया या नहीं। पर अपन को सोलह सितंबर 2006 की याद आ गई। जब अपने मनमोहन सिंह ने क्यूबा में कहा था- 'पाकिस्तान भी आतंकवाद का शिकार।' अपन को लगता है पाक को सर्टिफिकेट देकर मनमोहन ने जो गलती की थी। उस गलती का नतीजा अपने सामने।
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