कहीं पाक-बांग्लादेश में आतंकी मुकाबला तो नहीं

Publsihed: 03.Jan.2009, 05:32

कुछ तो आतंकवाद का असर। कुछ मंदी की मार। सो नए साल का स्वागत शानदार नहीं हुआ। शिमला, मसूरी, नैनीताल में टूरिस्ट नहीं गए। तो कश्मीर के बारे में सोचना ही क्यों। अपन ने शिमला में मंदी और आतंक का साया रू-ब-रू देखा। अपन को वे दिन भी याद। जब 31 दिसंबर को मॉल पर तिल धरने को जगह नहीं होती थी। पिछले साल की बात ही लो। अपने प्रेम कुमार धूमल ने 30 दिसंबर 2007 को शपथ ली। सो अगली रात एक पंथ, दो काज हुआ। मॉल पर घूम टूरिस्टों को नए साल की बधाई। साथ में लोकल वोटरों को जिताने का आभार। अपने सुरेश भारद्वाज भी साथ थे। जिनने शिमला में कांग्रेस का किला ढहाया। धूमल मॉल पर पैदल निकले। तो पुलिस को रास्ता बनाना पड़ा। पर इस साल काफिले के साथ आसानी से निकल गए। एक दिन पहले ही धूमल सरकार की सालगिरह थी। सो 30 को आडवाणी की रैली भी मॉल पर हुई। अपन मॉल का इतिहास बताते जाएं। मॉल पर पीएम-सीएम के अलावा रैली नहीं हो सकती। पर राजनारायण जब मोरारजी सरकार में हेल्थ मिनिस्टर थे। तो उनने रैली करके शांता कुमार को ललकारा। शांता ने राजनारायण पर कानूनी कार्रवाई की। राजनारायण की चेली थी- श्यामा शर्मा। श्यामा ने हिमाचल में बगावत कर दी।

संघी-गैर संघी का फच्चर वहीं से शुरू हुआ। आखिर में मोरारजी सरकार गिर गई। पर बात इस नए साल के आगाज की। शिमला की बात हो। तो पीटर हॉफ की बात होगी। फाईव स्टार 'सिसिल' के बाद 'पीटर हॉफ' का 'न्यू ईयर' जश्न ही दमदार। अपन 2003 में वहीं थे। तो सब टेबल भरे थे। अब के आधे खाली थे। एक बात काबिल-ए-तारीफ हुई। जश्न की शुरूआत मुंबई की याद से हुई। पहले मरने वालों को श्रध्दांजलि। फिर नए साल के आगाज का जश्न। धूम-धमाका, म्यूजिक-डांस। सती प्रथा की बात छोड़ दें। तो बाकी मरने वालों के साथ कोई मर नहीं जाता। मैनेजर विजय शर्मा ने अपन से बेस्ट डांसर विदेशी जोड़े को ईनाम दिलाया। विदेशी जोड़ा साठ के पार था। जिनने जवान जोड़ों को पानी पिला दिया। इस हंसी-मस्ती की रात सोए थे। तो डर भी था। देश के किसी कोने में कहीं आतंकी फिर कोई कांड न कर दें। पहली जनवरी के अखबार ने सकून दिया। पर अपन लौट रहे थे। रास्ते में ही असम से मनहूस खबर आ गई। अल्फा के आतंकियों ने अपना खेल कर दिया। कहीं पाक और बांग्लादेश में मुकाबला तो नहीं। एक बार अपन पर हमला पाक से दूसरी बार बांग्लादेश से। अल्फा-बोडोलैंड को हवा दे रहा है बांग्लादेश। तीस अक्टूबर को गुवाहाटी में बोडोलैंड आतंकियों ने हमला बोला। तो छब्बीस नवंबर को लश्कर-ए-तोयबा मुंबई में। लश्कर-ए-तोयबा का निशाना सारा देश। पर कश्मीर ने इस बार लश्कर को करारा जवाब दिया। साठ फीसदी वोट डाल देश की मुख्यधारा में मिल गया। नतीजा अपनी उम्मीद के मुताबिक ही निकला। वही हुआ, जो होना था। उमर अब्दुल्ला-गुलाम नबी की गिटपिट पहले ही हो गई थी। शुक्रवार को गुलाम नबी बता रहे थे- 'इस बार तीन-तीन वाला खेल नहीं। उमर पूरे छह साल के सीएम।' यानी गुलाम नबी अब दिल्ली आएंगे। अपने अशोक गहलोत की जगह जनरल सेक्रेट्री होंगे। पर अपन बात कर रहे थे असम की। स्टेट होम मिनिस्टर शकील अख्तर बता रहे थे- 'गुवाहाटी में आतंकी वारदात की भनक थी। तभी तो आतंकी रेलवे स्टेशनों-बस स्टैंडों को निशाना नहीं बना सके।' पर शकील भाई मीडिया से खफा दिखे। बोले- 'अपने पाटिल का पटिया उलाल कर दिया। विलास राव देशमुख की बलि भी ले ली। अब तरुण गोगोई को बख्शो। पालिटिशियन कोई बंदूक लेकर तो खड़े नहीं होते।' हां, शकील भाई आपकी बात तो सही। पर अल्फा की मदद से ही तरुण गोगोई सीएम हुए। सांपों को दूध पिलाने का नतीजा है रोज-रोज के धमाके।

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