भारत-पाक तनाव कुछ और बढ़ा। दोनों ने जंग रोकने की कोशिश भी शुरू की। पर दोनों तरफ फौजियों की छुट्टियां भी रद्द। एक कदम आगे, तो दो कदम पीछे की रणनीति। मनमोहन सिंह ने कहा था- 'मुद्दा जंग नहीं। जंग कोई नहीं चाहता।' तो यूसुफ रजा गिलानी ने भी कहा- 'हम जंग नहीं चाहते।' पर अविश्वास की गहरी खाई पैदा हो गई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कह दिया- 'भारतीय नागरिक पाकिस्तान न जाएं।' यह सतीश आनंद शुक्ल की गिरफ्तारी के बाद एहतियात। यों शुक्ल की बात चली। तो बता दें- इस पाकिस्तानी शिगूफे की हवा अंसार-वा-मुहाजिर ने निकाल दी। किसी तूफान वजीर ने कहा- 'लाहौर कार बम विस्फोट हमने किया। वजीरीस्तान में अमेरिकी हमले का जवाब। अभी तो और फिदायिन हमले होंगे।'
बता दें- वजीरीस्तान के आतंकी शिविरों पर अमेरिकी सर्जीकल स्ट्राइक जारी। पिछले दिनों कोंडालीसा राइस दिल्ली आई। तो प्रणव मुखर्जी ने साफ कहा था- 'पाक ने आतंकवादियों पर कार्रवाई नहीं की। आतंकी शिविर नष्ट नहीं किए। तो भारत को आतंकी शिविरों पर सर्जीकल स्ट्राइक करना पड़ेगा।' बताते जाएं- वजीरीस्तान में आतंकी शिविर अफगानिस्तान के लिए। तो पाकिस्तानी पंजाब-कश्मीर में आतंकी शिविर भारत के लिए। कोंडालीसा राइस पाक को यह धमकी दे गई थी। तब से पाक में सर्जीकल स्ट्राइक का डर। सो विदेश मंत्री कुरैशी ने कहा- 'भारत यह गलती न करे।' प्रणव दा ने मुंबई पर हमले का महीना पूरा हुआ। तो कोंडालीसा राइस को याद कराकर कहा- 'पाक अभी भी हरकत में नहीं आ रहा।' प्रणव दा ने चीन के विदेश मंत्री यांग जीएची से भी बात की। याद दिला दें- यूसुफ रजा गिलानी ने कहा है- 'पाकिस्तान अलग-थलग नहीं हुआ। चीन हमारे साथ।' सो प्रणव दा ने चीन को भी भरोसे में लिया। उनने जीएची से कहा- 'पाकिस्तान पर दबाव बनाया जाए। वह आतंकियों पर कार्रवाई शुरू करे।' चीन की तरह सऊदी अरब भी पाक का रिश्तेदार। सो सऊदी अरब के सऊद अल फैसल शुक्रवार को दिल्ली में थे। तो प्रणव दा ने उनसे भी गुहार लगाई। अल फैसल ने कहा- 'सभी देशों को आतंकवाद के खिलाफ एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए।' सो कूटनीतिक लिहाज से अपना पलड़ा भारी। अमेरिका और यूरोप पहले ही अपने साथ। पर अपन बात कर रहे थे वजीरीस्तान की। पेशावर से आई खबर अपने लिए तो खतरे की घंटी है ही। अमेरिका के लिए और भी ज्यादा। आतंकियों ने अमेरिकी-नाटो फौजों की सामान सप्लाई रोक दी। अब न तो खाने-पीने का सामान जा रहा है। ना साजो-सामान। बेतुल्लाह मसूद की तहरीक-ए-तालिबान ने रास्ते रोक दिए। कराची से सप्लाई रुकी। तो अफगानिस्तान में अमेरिकी-नाटो फौजों की हालत खराब। पाक फौज की सप्लाई मुहैया कराने में दिलचस्पी नहीं। अलबत्ता उत्तरी पश्चिम बार्डर से फौजें पूर्वी बार्डर की तरफ कूच कर गई। यानी अफगानिस्तान के बार्डर से हटकर फौजें भारतीय बार्डर पर। बीस हजार फौजी बार्डर के लिए रवाना। डेरा इस्माइल खां से खबर आई- 'लोगों ने फौजियों के चालीस ट्रक अफगान बार्डर से कूच करते देखे।' जब बार्डर पर इतनी हरकतें हो रही हों। तो अपन सिर्फ कूटनीति के सहारे नहीं रह सकते। अब सिर्फ जुबान की जंग नहीं। तैयारियां भी करनी होंगी। खासकर तब, जब कारगिल के षड़यंत्रकारी मुशर्रफ ने कहा- 'भारत ने बुरी आंख से देखा। तो देख लेंगे।' वह लाहौर में खुर्शीद महमूद कसूरी के बेटे की रिशैप्सन पर आए थे। वहीं पर जहर उगला। इसे कहते हैं सांप मर गया, बल नहीं गया। सो मनमोहन सिंह कूटनीति पर टिके नहीं रह सकते। उनने भी शुक्रवार को तीनो सेनाओं के प्रमुखों को बुलाया। थल सेना के दीपक कपूर। नौसेना के एडमिरल सुरेश मेहता। वायुसेना के एयर मार्शल फाली एस मेजर। तीनों के साथ सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन भी मौजूद थे। एक हफ्ते में तैयारियों की यह दूसरी मीटिंग। पहली मीटिंग वार रूम में हुई। तो दूसरी पीएमओ में।
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