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Exclusive Articles written by Ajay Setia

आतंकवाद, महंगाई के साथ कैश फॉर वोट भी

Publsihed: 17.Dec.2008, 08:36

संसदीय कमेटी की रपट उलटी होती। तो अपन को कमेटी का मीडिया पर भड़कना जमता। तीन अखबारों की खबर पर कमेटी ने एतराज जताया। खबरें थी 19-20 अगस्त और छह अक्टूबर की। जैसी खबरें थीं, हू-ब-हू वैसी रपट आई। तो कमेटी की मीडिया पर भड़कना चाहिए। या लीक करने वाला अपना मेंबर ढूंढना चाहिए। कमेटी ने भड़ककर स्पीकर से कार्रवाई की सिफारिश की। सोमवार को रपट पेश हुई। तो मंगलवार को स्पीकर की बारी आई। दादा ने मीडिया को लताड़ा। बोले- 'सदन सजा देने के हक का इस्तेमाल कर सकता है। सदन की खामोशी को न उसकी कमजोरी समझा जाए, न अक्षम।' स्पीकर मीडिया पर कार्रवाई करते। तो टकराव का दूसरा दौर शुरू होता। कमेटी की रपट पर सदन में बहस भी शुरू होती। रपट आखिर सर्वसम्मत नहीं। दो मेंबरों ने रपट पर सहमति नहीं दी। मंगलवार को संतोष गंगवार और अनंत कुमार ने यह मुद्दा उठाया भी। पर इससे भी ज्यादा खरी बात- खबरों की।

लीपापोती साबित हुई खरीद-फरोख्त की जांच

Publsihed: 15.Dec.2008, 21:28

अपन ने शुरू में ही कहा था- 'संसदीय कमेटी जांच नहीं कर सकेगी। जांच एजेंसी से करानी चाहिए जांच।' अब जब सांसदों के खरीद-फरोख्त की संसदीय रपट आई। तो किशोर चंद्र देव कमेटी ने लिखा- 'संसदीय कमेटी जांच एजेंसी जैसी नहीं हो सकती। किसी जांच एजेंसी से संजीव सक्सेना की जांच कराई जाए।' सांसदों की खरीद-फरोख्त का एपिक सेंटर तो वही था। वही अशोक अर्गल, कुलस्ते, भगौरा को खरीदने गया था। वही एक करोड़ रुपया अर्गल को देकर आया था। जो उनने सदन पटल पर रखा। अपन को एक बात समझ नहीं आई। जब संजीव सक्सेना का रोल ही तय नहीं हुआ। जब पैसे का स्रोत ही पता नहीं चला। तो अमर सिंह बरी कैसे हुए। अपन को ऐसा लगा। जैसे कमेटी का काम सच जानना नहीं। सच छुपाना था। कमेटी ने अड़तालीसवें पेज पर लिखा- 'कमेटी के पास सक्सेना का झूठ पकड़ने की मशीन नहीं। सो सक्सेना की बातों को झूठ मानकर अमर सिंह पर दोष क्यों मढ़ें।' कमेटी जब सक्सेना की बातों को सच भी नहीं मानती। तो उसके कहे को आधार बनाकर अमर सिंह को बरी भी कैसे किया।

पाकिस्तान की गोद में छोरा दुनिया में सबूत का ढिंढोरा

Publsihed: 12.Dec.2008, 21:00

तो आज वसुंधरा-माथुर की क्लास लगेगी। आडवाणी ही नहीं, बीजेपी का बच्चा-बच्चा जानता है। कम से कम राजस्थान में तो गुटबाजी ने हरवाया। यह गुटबाजी कोई चुनावों में नहीं पनपी। चुनावों से पहले भी थी। चुनावों के दौरान भी थी। सो गलती तो आलाकमान की। जो सब जानबूझकर भी अनजान बना रहा। आलाकमान की लापरवाहियां नतीजों में सिर चढ़कर बोली। अकबर इलाहाबादी ने ठीक ही लिखा था- 'गफलतों का खूब देखा है तमाशा दहर में, मुद्दतें गुजरी हैं तुझको होश में आए हुए।' पर अपने शिवराज की शपथ के बाद वेंकैया नायडू खबरचियों से बोले- 'वसु-माथुर को दिल्ली तलब किया है। ताकि ऐसी गलती लोकसभा चुनाव के वक्त न हो।' आज अपने गहलोत शपथ लेकर राहत की सांस लेंगे। तो वसुंधरा सीएम की 'एक्टिंग' से भी मुक्त होंगी।

हमला हल नहीं, पर पाक हमें कमजोर न समझे

Publsihed: 11.Dec.2008, 21:07

अपन को उम्मीद नहीं थी। आडवाणी इतनी जल्दी मान जाएंगे। पर उनने राजस्थान-दिल्ली में हार की वजह गुटबाजी मान ली। उनने लोकसभा में कांग्रेस से कहा- 'हम राजस्थान-दिल्ली में हार गए। तो इस गलतफहमी में मत रहिएगा- आतंकवाद मुद्दा नहीं। हम अपनी गलतियों से हारे। कांग्रेस की वजह से नहीं। आतंकवाद देश के सामने गंभीर मुद्दा।' तो उनने मान लिया- राजस्थान में गुटबाजी ले डूबी। तो दिल्ली में मल्होत्रा को सीएम प्रोजेक्ट करने की गलती। पर बात आतंकवाद की। संसद के दोनों सदनों में आतंकवाद पर एकजुटता दिखी। आडवाणी ने कहा- 'यहां कौरव-पांडव एकजुट। दुश्मन के खिलाफ हम सौ और पांच नहीं, अलबत्ता एक सौ पांच।' चिदंबरम से लेकर प्रणव दा तक। आडवाणी से लेकर मोहम्मद सलीम तक। सबने पाकिस्तान को आतंकवाद का जिम्मेदार माना।

कांग्रेस का वोट कैचर मुखौटा होंगे राहुल

Publsihed: 10.Dec.2008, 21:03

सोचो, चुनाव नतीजे न आए होते। मुंबई की आतंकी वारदात ही हुई होती। संसद सत्र की शुरूआत होती। तो क्या बुधवार जैसी खामोशी दिखती। दोनों सदनों में सांसद सुधरे हुए बच्चों की तरह बैठे थे। भाजपाई दो राज्य जीतकर भी खामोश थे। पर कांग्रेसी बेंचों पर बधाईयों का आदान-प्रदान हुआ। मुनव्वर हसन की सड़क हादसे में मौत की खबर ने सबको चौंकाया। वीपी सिंह, मुंबई-असम धमाकों में मरने वालों को श्रध्दांजलि हुई। तो मुनव्वर हसन भी जुड़ गए। सो दोनों सदन पहले दिन श्रध्दांजलि देकर उठ गए। उठने से पहले स्पीकर सोमनाथ ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की गुहार लगाई। बोले- 'सदन कठोर कार्रवाई का आह्वान करता है।'

सत्ता का सेमीफाइनल था, तो ड्रा ही रहा

Publsihed: 08.Dec.2008, 20:58

उम्मीद से ज्यादा मिला कांग्रेस को। कांग्रेस को राजस्थान पर तो उम्मीद थी। पर दिल्ली, मिजोरम पर कतई नहीं थी। मिजोरम में एमएनएफ की सरकार थी। जो चारों खाने चित हुई। जिन पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आए। उनमें कांग्रेस के पास खोने को सिर्फ दिल्ली था। जो उसने खोया नहीं। बीजेपी के पास हारने को तीन राज्य थे। पर वह सिर्फ राजस्थान हारी। दिल्ली में तो कांग्रेस की हैटट्रिक लग गई। ज्योतिबसु के बाद शीला हैटट्रिक वाली दूसरी सीएम हो गई। गुजरात में बीजेपी की हैटट्रिक जरूर लगी। पर मोदी की हैटट्रिक अभी बाकी। अपन दिल्ली में कांग्रेस को जीता नहीं मानते। अलबत्ता दिल्ली में बीजेपी हारी। जिसका फायदा कांग्रेस को मिला। शीला दीक्षित को खुद जीत की उम्मीद नहीं थी। जब लीड मिल रही थी। तो शीला ने खुशी जताने से परहेज किया। बोली- 'पहले नतीजे आ जाने दो, फिर ही बोलूंगी।' राजस्थान में भी कांग्रेस नहीं जीती। अलबत्ता बीजेपी-वसुंधरा आपसी टकराव में हारे। जिसका फायदा कांग्रेस को मिला।

लाशों पर राजनीति का नजारा दिखा महाराष्ट्र में

Publsihed: 05.Dec.2008, 20:56

मुंबई में अभी दरियां नहीं उठी। मातम अभी खत्म नहीं हुआ। बुधवार को सारे देश ने शोक मनाया। गेट वे ऑफ इंडिया से लेकर इंडिया गेट तक। बेंगलुरुसे लेकर चेन्नई तक। सब जगह लोगों ने मोमबत्तियां जलाई। राजनीतिज्ञों के खिलाफ गुस्सा हर चेहरे पर था। मोमबत्तियों की लौ अभी ठंडी नहीं पड़ी। कांग्रेस में महासंग्राम शुरू हो गया। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कुत्ते-बिल्ली जैसी लड़ाई हुई। जैसे बिल्ली के भागो छिकां फूट पड़ा हो। अपने अभिषेक मनु सिंघवी शुक्रवार को इतरा रहे थे- 'हमने चौबीस घंटे में तीन लोग हटा दिए। पाटिल, देशमुख, आर आर पाटिल। और किसी सरकार ने किसी आतंकी वारदात पर ऐसा नहीं किया।' अभिषेक का इशारा बीजेपी की ओर था। अपन समझ नहीं पा रहे। कांग्रेस का पहला दुश्मन कौन। आतंकवाद या बीजेपी।

आतंकी का धर्म नहीं तो कोई देश भी नहीं

Publsihed: 04.Dec.2008, 20:46

आडवाणी तो शुरू से बता रहे थे- 'यह सरकार आतंकवाद को गंभीरता से नहीं ले रही।' पीएम भी होम मिनिस्टर के नकारेपन से खफा थे। पर सोनिया हटाने को राजी नहीं थी। यही हाल विलासराव देशमुख का था। मारग्रेट अल्वा दो साल से समझाती-समझाती खुद नप गई। पर सोनिया नहीं मानी। अब जब नजला खुद पर उतरता दिखा। तो दोनों बलि का बकरा बने। बुधवार को नैनीताल में अपनी कांग्रेस के एक दिग्गज से मुलाकात हुई। जयपुर की चुनावी जिम्मेदारी से लौटे ही थे। गुफ्तगू हुई तो बोले- 'पाटिल का क्या कसूर। वह तो तीन साल पहले ही नकारा साबित हो चुके थे।'

आखिर पाटिल का हुआ पटिया उलाल

Publsihed: 01.Dec.2008, 03:51

इस्तीफे की पेशकश तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार ने भी की। आखिर पीएम ने शुक्रवार को समीक्षा की। तो पाटिल के अलावा नारायणन भी नदारद थे। पर इस्तीफा सिर्फ पाटिल का मंजूर हुआ। पीएम ने बृजेश मिश्र को बुलाया। तो नारायणन ने इसे इशारा समझा। बृजेश-मनमोहन मुलाकात से अपने कान भी खड़े हुए। अपन को याद आया- 'अमेरिकी समझाइश पर बृजेश मिश्र ने एटमी करार पर यू टर्न लिया था।' जरूर अमेरिकी सलाह से मुलाकात हुई होगी। पर फिलहाल नारायणन बच गए। यों खबर तो रॉ-आईबी चीफ पर भी गाज गिरने की। अपन उन दोनों का कसूर नहीं मानते। कसूर राजनीतिक लैवल पर हुआ।

मोदी ने सच्ची बात कही तो तिलमिला गई कांग्रेस

Publsihed: 28.Nov.2008, 20:48

मुंबई के पुलिस प्रमुख का ताज मुक्त करवाने का दावा झूठा निकला। एनएसजी शुक्रवार को भी दिनभर आतंकियों से जूझती रही। पर राजनीतिक दलों में तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई। अपन ने कल मनमोहन-आडवाणी के मुंबई दौरों की कहानी तो सुनाई ही थी। नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को नया खुलासा किया। वह बोले- 'मैंने गुरुवार को ही महाराष्ट्र के सीएम से बात की थी। हर तरह के सहयोग का वादा किया। मुंबई आने की इच्छा जताई। पर विलासराव ने कहा- आज मत आइए।' मोदी शुक्रवार को बिना पूछे चले गए। पूछने की जरूरत भी नहीं थी। विलासराव की गुजारिश तो सिर्फ गुरुवार के लिए थी। यह गुजारिश आडवाणी से भी की थी। पर मनमोहन को आने से नहीं रोका।