Current Analysis

Earlier known as राजनीति this column has been re-christened as हाल फिलहाल.

सवाल नाक का नहीं, आयोग की निष्पक्षता का

Publsihed: 01.Feb.2009, 21:03

सरकार का इरादा विवादास्पद चुनाव आयुक्त नवीन चावला को हटाने का नहीं है। विपक्ष के पास तीन रास्ते हैं- अदालत का दरवाजा फिर से खटखटाना, चुनाव का बायकाट करना और यूपीए के खिलाफ संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट करने का चुनावी मुद्दा बनाना।

अंग्रेजी में कहावत है कि राजा कभी गलत नहीं हो सकता। चुनाव आयोग को भी इस दिशा में चलाने की कोशिश की गई। जिसके मुताबिक सोनिया गांधी कभी गलत नहीं हो सकती और राजनाथ सिंह कभी सही नहीं हो सकते। उदाहरण के लिए दो घटनाएं याद आती हैं- कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुजरात के चुनाव में नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। चुनाव आयोग ने इस तरह की भाषा पर वैसी कड़ाई नहीं बरती, जैसी उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में एक सीडी के मामले में राजनाथ सिंह के खिलाफ बरती। राजनाथ सिंह ने वह सीडी जारी नहीं की थी, जबकि सोनिया गांधी ने अपनी जुबान से नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। चुनाव आयोग ने राजनाथ सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी थी। क्या यह सब भारतीय जनता पार्टी के चुनाव आयुक्त नवीन चावला के खिलाफ अपनाए गए कदम के कारण हो रहा था।

चुनाव प्रणाली बदलेगी तब बचेगा गणतंत्र

Publsihed: 25.Jan.2009, 20:44

मौजूदा संविधान की संसदीय प्रणाली ने जातिवाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद, भ्रष्टाचार और राजनीति के आपराधीकरण का एक ऐसा ढांचा तैयार कर दिया है, जिससे देश का लोकतंत्र खोखला हो चला है। दूसरे संविधान के लिए जनमत संग्रह का समय आ गया है, जिसमें राष्ट्रपति प्रणाली की तरह प्रधानमंत्री का उसकी योग्यता और क्षमता के आधार पर सीधा चुनाव होना चाहिए।

आज हमारा संविधान साठवें साल में प्रवेश कर रहा है। अब हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या इस संविधान से भारत का निर्माण ठीक ढंग से हो रहा है। देश को लोकतांत्रिक प्रणाली देने वाले संविधान ने सबको आजादी, इंसाफ और बराबरी का वादा किया था। क्या इन तीनों कसौटियों पर खरा उतरा है संविधान। हालांकि इस बीच हम सौ बार संविधान में संशोधन कर चुके हैं। एक बार पूरा संविधान ताक पर रखकर आजादी, इंसाफ और बराबरी के हक को कुचला भी जा चुका है। इन तीनों ही मोर्चों पर विफलता की एक लंबी कहानी हमारे सामने है।

कश्मीर पर मध्यस्थता की अमेरिकी-ब्रिटिश साजिश

Publsihed: 18.Jan.2009, 20:45

अमेरिका के नए राष्ट्रपति बाराक ओबामा 20 जनवरी को पदभार ग्रहण कर लेंगे। चुनाव के दौरान उनके मुसलमान होने का विवाद उठा था तो उन्होंने सफाई दी थी वह हमेशा इसाई धर्म अपनाते रहे हैं। खुद को इसाई साबित करने के लिए वह अपनी शपथ में 'गॉड' शब्द का इस्तेमाल करेंगे। अदालत ने उन्हें इसकी इजाजत दे दी है, लेकिन इससे बड़ा सवाल यह है कि मुस्लिम पिता और इसाई मां की संतान बाराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने पर अमेरिका की आतंकवाद के खिलाफ नीति क्या मोड़ लेगी। राष्ट्रपति बुश ने नाईन-इलेवन के बाद आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई शुरू की थी तो ब्रिटेन और पाकिस्तान उनके प्रमुख सहयोगी थे। यूरोप के साथ-साथ अमेरिका, ब्रिटेन और पाकिस्तान में भी लड़ाई के खिलाफ लोग सड़कों पर प्रदर्शन करने उतरे थे। विरोध की वजह आगे चलकर इसके सभ्यताओं की जंग बनने का खतरा था। इस खतरे को राष्ट्रपति बुश भी समझते थे, इसीलिए उन्होंने भारत के सहयोग की पेशकश ठुकराकर पाकिस्तान को मदद का लालच देकर सहयोगी बनाया था।

शुरू-शुरू में राष्ट्रपति बुश अपनी रणनीति में कामयाब रहे थे, लेकिन पाकिस्तान में परवेज मुशर्रफ का आधार लगातार घटता गया। मुशर्रफ सरकार के बुश समर्थक होने के कारण पाकिस्तान भी आतंकवाद का शिकार हो गया।

जम्मू कश्मीर में तीसरी पीढ़ी का राज

Publsihed: 05.Jan.2009, 05:39

शेख अब्दुल्ला और फारुख अब्दुल्ला के साथ कांग्रेस के रिश्ते दोस्ती और दुश्मनी के रहे। अब बारी अब्दुल्ला परिवार के तीसरी पीढ़ी के वारिस उमर अब्दुल्ला के साथ राजनीतिक रिश्तों की। उमर कांग्रेस की मदद से ही मुख्यमंत्री बने हैं।

भारत यह कभी नहीं भूल सकता और भूलना भी नहीं चाहिए कि जम्मू कश्मीर की मौजूदा समस्या की जड़ में अमेरिका का हाथ है। पंडित जवाहर लाल नेहरू जब कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र में लेकर गए थे तो जनमत संग्रह का प्रस्ताव अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर रखा था। छह नवंबर 1952 को पेश किए गए इस प्रस्ताव का मकसद पाकिस्तान को फायदा पहुंचाना था। इस प्रस्ताव में कहा गया था कि दोनों तरफ की फौजों को हटाकर जनमत संग्रह करवाया जाए, जबकि संयुक्त राष्ट्र आयोग के अध्यक्ष की ओर से रखे गए पहले प्रस्ताव में पाकिस्तान की हमलावर फौज को ही हटाने की बात कही गई थी। जम्मू कश्मीर का बाकायदा भारत में विलय हो गया था और वहां चुनी हुई सरकार कायम थी। नवंबर के पहले हफ्ते में विधानसभा ने जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को पारित कर दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला ने विधानसभा में जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को अंतिम करार दिया था। अमेरिका का यह प्रस्ताव साजिश भरा था, जिसका खामियाजा भारत आज तक भुगत रहा है।

जंग हल नहीं, पर चारा भी नहीं

Publsihed: 29.Dec.2008, 06:12

पाक भी अफगानिस्तान की तरह आतंकियों पर कार्रवाई की बजाए सबूत मांग रहा है। पाक आतंकवाद की फैक्टरी बंद नहीं करता, तो सर्जिकल स्ट्राइक ही विकल्प बचा है। अफगानिस्तान-इराक पर हमला करने वाले अमेरिका का दोहरा चेहरा सामने आ चुका है।

सात अगस्त 1998 को ओसामा बिन लादेन के आतंकी संगठन अल कायदा ने नैरोबी, केन्या और तंजानिया के अमेरिकी दूतावासों पर आतंकवादी हमला किया। अमेरिका ने पहली बार आतंकवाद का इतना कड़वा स्वाद चखा था, जबकि भारत इसी तरह के आतंकवादी हमले 1982 से झेल रहा था। तेरह अगस्त, 28 अगस्त और आठ दिसम्बर को संयुक्त राष्ट्र की ओर से पास किए गए प्रस्तावों का लक्ष्य अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को दबाव में लाना था। संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका का ध्यान सिर्फ अफगानिस्तान पर ही लगा हुआ था, जबकि भारत उस समय भी आए दिन पाकिस्तान से आतंकी हमले झेल रहा था। अमेरिका की नीति पाकिस्तान को अपने साथ रखकर अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को उखाड़ फेंकने की थी, जो उस समय ओसामा बिन लादेन को शरण दे रही थी।

फर्क अंतुले और नवाज शरीफ में

Publsihed: 21.Dec.2008, 21:17

नवाज शरीफ ने कसाब को पाकिस्तानी बताया तो वहां के प्रिंट मीडिया ने इसे ब्लैक आउट किया। अंतुले ने मालेगांव की अपुष्ट जांच को एटीएस चीफ करकरे की हत्या से जोड़ दिया, तो भारतीय मीडिया ने इसे जमकर तूल दिया। मुंबई के बाद अपने खिलाफ उपजा गुस्सा राजनीतिज्ञ चार दिन में भूल गए। वोट बैंक की राजनीति से कोई राजनेता नहीं बन सकता।

निरंकुश स्वतंत्र प्रेस का नुकसान मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले के समय सभी को दिखाई दिया। इससे पहले दिसम्बर 1999 में जब भारतीय विमान का अपहरण हुआ था, तब भी भारतीय प्रेस की भूमिका संदिग्ध हो गई थी। मीडिया का एक वर्ग विमान में सवार परिवारों को सामने करके सरकार पर आतंकवादियों से बातचीत करने का दबाव बना रहा था। अब जब सामाजिक दबाव में विजुअल मीडिया ने कुछ पाबंदियों पर सहमति जाहिर कर दी है तो पुरानी भूलों को भी कबूल किया जाना चाहिए। विमान अपहरण के समय विजुअल मीडिया हवाई अड्डे पर मौजूद यात्रियों के परिजनों का इंटरव्यू प्रसारित कर रहा था। एक चैनल ने उन परिजनों को प्रधानमंत्री के आवास तक पहुंचाने की व्यवस्था की थी, ताकि प्रधानमंत्री के घर पर प्रदर्शन का सीधा प्रसारण कर सकें। मीडिया ने सारे देश को दो हिस्सों में बांटने में भूमिका अदा की थी।

बसपा बनी कांग्रेस के रास्ते का कांटा

Publsihed: 14.Dec.2008, 20:43

राजस्थान में बसपा ने कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत से रोका, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी अड़चन बनी। आडवाणी को पीएम बनाने के लिए भाजपा को राजस्थान संभालना होगा, मौजूदा सीटों में पच्चीस-तीस का इजाफा करना होगा और तमिलनाडु, आंध्र, यूपी में नए सहयोगी ढूंढने होंगे।

हाल ही में हुए पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव नतीजों से एक संकेत तो साफ है कि मिजोरम की लोकसभा सीट कांग्रेस को आएगी। चौदहवीं लोकसभा में यह सीट मिजो नेशनल फ्रंट के पास थी, जो विधानसभा चुनावों में बुरी तरह लुढ़क गई है। मिजोरम की अगर मध्यप्रदेश की तरह 29 सीटें होती, या राजस्थान की तरह 25 सीटें होती तो पंद्रहवीं लोकसभा पर गहरा प्रभाव पड़ता। इसलिए कांग्रेस भी मिजोरम के चुनाव नतीजों से लोकसभा चुनाव नतीजों पर असर पड़ने की कोई संभावना नहीं देखती होगी। वैसे तो दिल्ली की सात लोकसभा सीटें भी भारतीय राजनीति की दिशा तय नहीं करती। दिल्ली में विजय कुमार मल्होत्रा से लोकसभा चुनाव हारकर मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्रीं बनना इसका सबूत है।

खुद मियां फजीहत, दूसरों को नसीहत

Publsihed: 07.Dec.2008, 20:58

पाक पर दोषारोपण करके हम अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। मुंबई पर हमला हमारी खुद की सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी है। जरदारी का हम से सबूत मांगना भी नौटंकी, अजमल अमीर कसाब के घर पर आईएसआई का कब्जा।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी अगर भारत-पाक की आबो-हवा बदलना चाहें तो उनके पास इससे बढ़िया मौका नहीं हो सकता। जरदारी और गिलानी ईमानदार होते तो उन्हें मुंबई के आतंकी हमले में शामिल लोगों के बारे में सबूत मांगने की जरूरत नहीं थी। वारदात के समय गिरफ्तार किए गए मोहम्मद अजमल अमीर कसाब ने बाकी साथियों के नाम और अपने घर का पता बता दिया था। अजमल ने खुद को ओकाडा जिले की दियारपुर तहसील के फरीदकोट गांव का बताया था। जनाब आसिफ अली जरदारी राष्ट्रपति बनने के बाद सितंबर में जब मनमोहन सिंह से न्यूयार्क में मिले थे तो उन्होंने आतंकवाद से मिलजुलकर लड़ने का बचन दिया था। मनमोहन सिंह ने भी उन पर भरोसा करके अनुकूल बयान देते हुए कहा था कि पाकिस्तान भी भारत की तरह आतंकवाद का शिकार है। इसमें कोई शक नहीं है कि तीस साल पहले उसने भारत में आतंकवाद की जो आग लगाई थी, अब खुद उसमें झुलस रहा है।

सिर्फ पाटिल नहीं, नीतियां भी पलटिए

Publsihed: 30.Nov.2008, 12:15

यूपीए सरकार ने चार सालों में अपनी नीतियों से राष्ट्रीय सुरक्षा का ढांचा तहस-नहस कर दिया, आतंकवाद के विभत्स रूप की जान-बूझकर अनदेखी करती रही यूपीए सरकार। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में खुफिया रिपोर्टों की अनदेखी आदत में शुमार हो गई।

पन्द्रह साल पहले जब मैं पहली बार शिवराज पाटिल से मिला था तो वह लोकसभा के स्पीकर थे। नरसिंह राव ने उनकी अध्यापकीय पृष्ठभूमि को देखते हुए उनके लिए सही पद चुना था। वह अध्यापक से ज्यादा हेडमास्टर ही हो सकते थे। पिछला लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद भी सोनिया गांधी ने उन्हें देश का गृहमंत्री बनाने का फैसला किया, तो पाटिल को जानने वालों को हैरानी हुई थी। कुछ को तो सदमा भी लगा था। मुझे लगता है कि वित्त मंत्री के तौर पर पी. चिदम्बरम को छोड़ शायद ही कोई और मंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी मर्जी से बनाया होगा। पिछले तीन-चार सालों से हो रही हर आतंकवादी वारदात के बाद पाटिल की काबिलियत पर सवाल उठाए जाते रहे थे।

क्या हिंदुओं में अस्तित्व की चिंता जाग रही है?

Publsihed: 23.Nov.2008, 20:39

परिदृश्य-एक
ब्रिटिश हुकूमत के साथ छह साल के संघर्ष के बाद 1781 में तेरह राज्यों ने मिलकर यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका का गठन कर लिया था। इससे ठीक 75 साल बाद 1856 में ब्रिटिश हुकूमत ने बर्मा में तैनात करने के लिए भारतीय सेना में एक नई टुकड़ी का गठन करने का फैसला किया। सेना में यह अफवाह जोरों पर फैल गई कि बर्मा में तैनात किए जाने वाले सैनिक धार्मिक परंपराओं का पालन नहीं कर पाएंगे जबकि सेना में ईसाई धर्म गुरुओं को तैनात किया जाएगा। इन अफवाहों को उस समय जोर मिला, जब ब्रिटिश हुकूमत की ओर से सेना के लिए एक नई राईफल भेजने और उसके कारतूस को