सवाल नाक का नहीं, आयोग की निष्पक्षता का
सरकार का इरादा विवादास्पद चुनाव आयुक्त नवीन चावला को हटाने का नहीं है। विपक्ष के पास तीन रास्ते हैं- अदालत का दरवाजा फिर से खटखटाना, चुनाव का बायकाट करना और यूपीए के खिलाफ संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट करने का चुनावी मुद्दा बनाना।
अंग्रेजी में कहावत है कि राजा कभी गलत नहीं हो सकता। चुनाव आयोग को भी इस दिशा में चलाने की कोशिश की गई। जिसके मुताबिक सोनिया गांधी कभी गलत नहीं हो सकती और राजनाथ सिंह कभी सही नहीं हो सकते। उदाहरण के लिए दो घटनाएं याद आती हैं- कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुजरात के चुनाव में नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। चुनाव आयोग ने इस तरह की भाषा पर वैसी कड़ाई नहीं बरती, जैसी उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में एक सीडी के मामले में राजनाथ सिंह के खिलाफ बरती। राजनाथ सिंह ने वह सीडी जारी नहीं की थी, जबकि सोनिया गांधी ने अपनी जुबान से नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था। चुनाव आयोग ने राजनाथ सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी थी। क्या यह सब भारतीय जनता पार्टी के चुनाव आयुक्त नवीन चावला के खिलाफ अपनाए गए कदम के कारण हो रहा था।