खुद मियां फजीहत, दूसरों को नसीहत

Publsihed: 07.Dec.2008, 20:58

पाक पर दोषारोपण करके हम अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। मुंबई पर हमला हमारी खुद की सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी है। जरदारी का हम से सबूत मांगना भी नौटंकी, अजमल अमीर कसाब के घर पर आईएसआई का कब्जा।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी अगर भारत-पाक की आबो-हवा बदलना चाहें तो उनके पास इससे बढ़िया मौका नहीं हो सकता। जरदारी और गिलानी ईमानदार होते तो उन्हें मुंबई के आतंकी हमले में शामिल लोगों के बारे में सबूत मांगने की जरूरत नहीं थी। वारदात के समय गिरफ्तार किए गए मोहम्मद अजमल अमीर कसाब ने बाकी साथियों के नाम और अपने घर का पता बता दिया था। अजमल ने खुद को ओकाडा जिले की दियारपुर तहसील के फरीदकोट गांव का बताया था। जनाब आसिफ अली जरदारी राष्ट्रपति बनने के बाद सितंबर में जब मनमोहन सिंह से न्यूयार्क में मिले थे तो उन्होंने आतंकवाद से मिलजुलकर लड़ने का बचन दिया था। मनमोहन सिंह ने भी उन पर भरोसा करके अनुकूल बयान देते हुए कहा था कि पाकिस्तान भी भारत की तरह आतंकवाद का शिकार है। इसमें कोई शक नहीं है कि तीस साल पहले उसने भारत में आतंकवाद की जो आग लगाई थी, अब खुद उसमें झुलस रहा है।

पाकिस्तान सेना की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई पूरे दक्षिण एशिया में आतंकवाद की एपिक सेंटर बन चुकी है।

पाकिस्तानी फौज और आईएसआई हमेशा से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के खिलाफ रही है। इसलिए आसिफ अली जरदारी की राह आसान नहीं है। उन्होंने मनमोहन  सिंह से आतंकवाद के खिलाफ पूरे सहयोग का वादा कर तो दिया, लेकिन सिरे चढ़ाना आसान नहीं है। जरदारी को अपने सेनाध्यक्ष जनरल अशफाक परवेज कयानी के दबाव में आईएसआई प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शुजा पाशा को भारत भेजने के वादे से मुकरना पड़ा। मनमोहन सिंह गिरफ्तार आतंकवादी अजमल अमीर कसाब के इस खुलासे से गुस्से में थे कि वारदात में हिस्सा लेने वाले सभी आतंकी पाकिस्तान के कराची शहर से समुद्र के रास्ते मुंबई पहुंचे थे। मनमोहन सिंह ने जरदारी से फोन करके कहा कि वह अपने आईएसआई प्रमुख को भारत भेजें, हम उसे अजमल कसाब से मिलवा देंगे। कम से कम भारतीय मीडिया को यही बताया गया था कि जरदारी ने आईएसआई चीफ को भेजने की हामी भरी थी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी ने खुद इसकी पुष्टि की थी, लेकिन इस खबर के बाद जनरल कयानी सक्रिय हो गए और पाकिस्तान मुकर गया। राष्ट्रपति जरदारी ने अगले दिन एक भारतीय पत्रकार को इंटरव्यू में कहा कि मनमोहन सिंह ने उनसे आईएसआई का डायरेक्टर भेजने को कहा था और मैंने हामी भरी थी। जरदारी के इस बयान का मनमोहन सिंह की ओर से खंडन नहीं किया गया। हो सकता है मनमोहन सिंह ने बातचीत में आईएसआई के डायरेक्टर जनरल की जगह डायरेक्टर शब्द का इस्तेमाल किया हो। वैसे आईएसआई चीफ को भेजने की मांग करना अपने आप में गैर कूटनीतिक बात थी, क्योंकि दो देशों में संबंध राजनयिक स्तर पर होता है, न कि खुफिया अफसरों के जरिए। लेकिन सवाल पैदा होता है कि क्या आईएसआई चीफ को भारत भेजने का फैसला बदलने की वजह सेना का दबाव था या प्रणव मुखर्जी के नाम पर किया गया वह फर्जी फोन, जिससे पाक सरकार के पसीने छूट गए थे। ये दोनों ही घटनाएं एक ही दिन हुई थी। अठाईस नवंबर की रात अचानक तनाव बढ़ गया था। आसिफ अली जरदारी के घर पर देर रात उच्च स्तरीय बैठक के बाद एक विशेष विमान इस्लामाबाद से दिल्ली पहुंचा और यहां एक होटल में रुके अपने विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को उठा ले गया। कुरैशी का कार्यक्रम 29 नवम्बर को वामपंथी नेताओं से मुलाकात के बाद लालकृष्ण आडवाणी और जसवंत से मिलकर इस्लामाबाद लौटने का था। पाकिस्तान के उच्चाधिकारी होटल से अपने विदेशमंत्री को तड़के-तड़के इस तरह उठाकर ले गए जैसे उनका अपहरण किया गया हो।

इस घटना के सात दिन बाद खुलासा हुआ कि राष्ट्रपति जरदारी एक फर्जी फोन से मिली धमकी से घबरा गए थे। अठाईस नवंबर की रात जब पाकिस्तान के विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी दिल्ली में थे। उसी समय किसी ने खुद को प्रणव मुखर्जी बताकर जरदारी को फोन किया और उन्हें जंग के लिए तैयार रहने की धमकी दी थी। बड़ी हैरानी की बात है कि राष्ट्रपति सचिवालय ने बिना पुष्टि किए तथाकथित प्रणव मुखर्जी की बात जरदारी से करवा दी थी। राष्ट्रपति भवन को क्या यह भी नहीं पता कि भारत और पाक के बीच हॉट लाईन व्यवस्था कायम है। राष्ट्रपति भवन सचिवालय को क्या यह भी नहीं पता था कि राष्ट्रपति स्तर पर बातचीत की पूर्व सूचना दी जाती है और संबंधित दूतावास या उच्चायोग को बीच में शामिल किया जाता है। फर्जी फोन काल के बाद पाकिस्तान में सेना को अलर्ट कर दिया गया और इस्लामाबाद के ऊपर युध्दक विमान मंडराने लगे। आधिकारिक तौर पर बयान जारी करके कहा गया कि युध्द के हालात बने तो पाक अफगानिस्तान से लगती सीमा पर तैनात 90,000 फौजियों को हटाकर भारत सीमा पर तैनात कर देगा। यह बयान अमेरिका को बीच-बचाव करने के लिए दिया गया, क्योंकि अफगानिस्तान सीमा से फौज हटने का मतलब होगा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई से पाक का पीछे हटना। किसी ने इस बात की पुष्टि नहीं की कि राष्ट्रपति जरदारी ने जिस फोन पर बात की थी वह दिल्ली से आया था या पाकिस्तान से ही किसी ने किया था। अगले दिन जब पाकिस्तान ने अमेरिकी विदेशमंत्री कोंडालीजा राईस को प्रणव मुखर्जी के फोन की जानकारी दी तो कोंडालीजा राईस ने प्रणव मुखर्जी से बात की। प्रणव मुखर्जी ने बताया कि उन्होंने तो जरदारी या गिलानी से कोई बात ही नहीं की, तब जाकर गलत फहमी दूर हुई। चौबीस घंटे के भारत-पाक तनाव को कोंडालीजा राईस ने बीच बचाव करके दूर किया, लेकिन इस घटना से अमेरिका की भी नींद उड़ गई थी। इसलिए कोंडालीजा राईस ने पहले भारत और फिर पाकिस्तान का दौरा किया। भारत अमेरिकी मध्यस्थता को हमेशा नकारता रहा है लेकिन मुंबई की आतंकवादी वारदात में पाकिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल किए जाने के सबूत कोंडालीजा राईस के माध्यम से भेजे गए।

राष्ट्रपति जरदारी ने शनिवार को टर्की में फिर कहा कि अगर उन्हें वारदात में किसी पाकिस्तानी के शामिल होने के सबूत दिए गए तो कार्रवाई की जाएगी। राष्ट्रपति जरदारी का यह बयान उनके सचिवालय की बचकानी हरकत जैसा ही लगता है। पकड़े गए एकमात्र आतंकवादी कसाब ने अपने घर का पता बता दिया है, जो पूरी दुनिया को पता चल चुका है। सबूत खुद पाकिस्तान के पास मौजूद हैं। बीबीसी पाकिस्तान का संवाददाता अली सलमान उस गांव में जाकर देख आया है कि कसाब के घर पर आईएसआई के लोग सफेद कपड़ों में मौजूद हैं। गांव का हर बाशिंदा कसाब को अपने गांव का लड़का बता रहा है, यह भी बताया गया है कि वह कई महीनों से अपने घर से लापता था। गांव के लोग बताते हैं कि मुंबई में हुए आतंकी हमले के अगले ही दिन पुलिस कसाब के सभी रिश्तेदारों को उठाकर ले गई है। राष्ट्रपति जरदारी को भारत से कोई सबूत मांगने की बजाए पहले अपना घर संभालना चाहिए।

लेकिन घर तो हमें भी अपना संभालना चाहिए। हम अपनी कमजोरियों का ठीकरा पाकिस्तान के सिर नहीं फोड़ सकते। हमारे घर की सुरक्षा करना हमारी अपनी जिम्मेदारी है। इसलिए हमने कई तरह की व्यवस्था की हुई है। सेना के तीन अंग, तीन तरह के अर्ध्दसैनिक बल, समुद्रीय सुरक्षा के लिए कास्टल गार्ड, राज्यों की पुलिस, इन सभी सुरक्षा बलों को मदद पहुंचाने के लिए दर्जनभर खुफिया एजेंसियां। जब हमारा सारा ढांचा विफल हो रहा है, तो हम अपनी विफलता का ठीकरा पाकिस्तान के सिर पर फोड़कर जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते। ऐसा नहीं हो सकता कि हम खुद तो मियां फजीहत बने रहें और दूसरों को नसीहत देते रहें। राजनीतिक स्तर पर आतंकवाद से लड़ने की गंभीरता दिखाई दे तो नीचे की सभी एजेंसियां भी चुस्त-दुरुस्त हों। मौजूदा सरकार ने पिछले चार सालों में आतंकवाद से लड़ने में गंभीरता दिखाने की बजाए आतंकवादियों से उदारवादी रवैया अपनाया। आतंकवाद से सख्ती के साथ ही निपटा जा सकता है, इसलिए किसी कानून को ज्यादा सख्त बताकर रद्द करना आतंकवाद के प्रति नरम रवैया अपनाने का सबूत है। मौजूदा यूपीए सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ बनाए गए सख्त कानून को यह कहकर रद्द किया था कि यह एक संप्रदाय के खिलाफ है। एक तरफ यह कहना कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता और दूसरी तरफ आतंकवाद विरोधी कानून को संप्रदाय विशेष से जोड़ना परस्पर विरोधी है। कानून को संप्रदाय के साथ जोड़कर यूपीए के घटक दलों ने देश के सेक्युलर ढांचे को नुकसान पहुंचाया है। मुंबई की आतंकी वारदात के बाद हमारी सरकार ने जिस तरह सारा ठीकरा पाकिस्तान के सिर फोड़कर भारतीयों के मन में पाक के प्रति नफरत उभारने की कोशिश की है, उसने यह साबित कर दिया है कि हमारे शासकों और पाकिस्तानी शासकों में कोई फर्क नहीं है। पाकिस्तानी शासक भी पिछले साठ साल से अपने आवाम के दिलो दिमाग में भारत के प्रति नफरत के बीज बोते रहे हैं। नफरत की राजनीति से सत्ता का खेल बंद कर अब दोनों ही देशों को ईमानदारी से आतंकवाद के खिलाफ लड़ना होगा। दोनों ही देशों में अपने राजनीतिज्ञों का चेहरा बेनकाब हो रहा है।

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