Current Analysis

Earlier known as राजनीति this column has been re-christened as हाल फिलहाल.

विकास पर हावी नकारात्मक सोच

Publsihed: 12.Apr.2009, 20:39

भाजपा के खिलाफ तीन मोर्चे नकारात्मक आधार पर चुनाव लड़ रहे हैं। तीनों मोर्चे आपस में भी एक-दूसरे को कमजोर करने की नकारात्मक सोच के शिकार।

गरीबों के वोट खरीद कर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा फिर खोखला साबित हो गया है। आंध्र प्रदेश जहां लोकसभा के साथ विधानसभा के चुनाव भी हो रहे हैं, इस खोखलेपन को साबित कर रहा है। कर्नाटक विधानसभा चुनावों के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त गोपालस्वामी ने बताया था कि चुनाव के दौरान साढ़े पैंतालीस करोड़ रुपए की नकदी, शराब और अवैध प्रचार सामग्री जब्त की गई। अब जबकि अभी चुनाव प्रचार का दौर चल रहा है, तो आंध्र प्रदेश में पिछले शुक्रवार तक पुलिस ने 25 करोड़ रुपए नकदी और सोने की अंगूठियां पकड़ी हैं। एक-एक, डेढ़-डेढ़ ग्राम सोने की अंगूठियां बनाकर वोटरों को देने की नई परंपरा शुरू हुई है आंध्र प्रदेश में। यह तो वोटरों की सीधे खरीद-फरोख्त की बात। सरकारी धन से अपना वोट बैंक बनाने और वोट बैंक को लुभाने का नंगा नाच भी इस बार खूब हुआ है।

दो देवियों के हाथ में होगी सत्ता की चाबी

Publsihed: 05.Apr.2009, 20:39

कांग्रेस और भाजपा दोनों ही 150-150 के आसपास ही निपट जाएंगे। यूपीए सरकार बनवाने वाले वामपंथी, द्रमुक, राजद, लोजपा, सपा को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। मायावती और जयललिता की सीटें बढ़ेंगी। इन दोनों के हाथों में होगी सत्ता की चाबी।

अगर चुनाव घोषणापत्र के आधार पर मतदाता फैसला करेंगे, तो भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा भारी रहेगा। सबसे ज्यादा लोकलुभावन घोषणापत्र भाजपा ने ही पेश किया है। भाजपा के घोषणापत्र को पढ़कर लगता है कि वह 2004 की गलती को सुधारना चाहती है। तब उसने आम आदमी की उपेक्षा करके उच्च मध्यम और अमीर लोगों की ओर देखना शुरू कर दिया था। नतीजतन अटल बिहारी वाजपेयी की छह साल की शानदार उपलब्धियों के बावजूद भाजपा को 35 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने आठ महीने पहले फरवरी 2004 में लोकसभा भंग करके मध्यावधि चुनाव करवाने का एलान किया तो ऐसा नहीं लगता था कि भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार जाएगी। वह मानकर चल रही थी कि अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता जवाहर लाल नेहरू को भी पार कर गई है। इसलिए वाजपेयी पूरी उम्र प्रधानमंत्री पद पर बने रहेंगे। भाजपा भारत उदय के रथ पर सवार होकर अमर होने की कोशिश कर रही थी।

इस बार महा त्रिशंकु होगी लोकसभा

Publsihed: 29.Mar.2009, 20:39

यूपीए-एनडीए पौने दो- पौने दो सौ में निपटेंगे। तीसरा मोर्चा ज्यादा ताकतवर होकर उभरेगा। कांग्रेस तीसरे-चौथे मोर्चे को समर्थन देने को मजबूर हो सकती है। कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया तो तीसरा मोर्चा टूटेगा। ऐसी हालत में एनडीए सरकार भी संभव।

लोकसभा चुनावों की तस्वीर अब साफ होने लगी है। देश की 543 सीटों में से 265 सीटों पर चुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है। गठबंधनों ने नया रूप लेना शुरू कर दिया है। यूपीए से एक नए मोर्चे ने जन्म ले लिया है और पहले से बन-बिगड़ रहा तीसरा मोर्चे की तस्वीर भी उभर चुकी है। इस तीसरे मोर्चे में वामपंथी दलों को छोड़कर वे सभी क्षेत्रीय दल शामिल हैं जो कभी न कभी एनडीए में रहे हैं। दूसरी तरफ लालू-मुलायम के चौथे नए सेक्युलर मोर्चे में शामिल सभी दल हाल ही तक यूपीए के साथ थे। दूसरे शब्दों में यह कहा जा  सकता है कि वामपंथी दलों को छोड़कर तीसरे मोर्चे में शामिल बाकी सभी घटक दल जरूरत पड़ने पर एनडीए में शामिल हो सकते हैं। इसी तरह चौथे मोर्चे में शामिल सभी दल जरूरत पड़ने पर यूपीए में शामिल हो जाएंगे। यहां महत्वपूर्ण यह है कि तीसरे और चौथे मोर्चे के सभी घटक दल 1989 की वीपी सिंह और 1996-97 की देवगौड़ा-गुजराल सरकारों में शामिल थे।

वोटरों, सांसदों की खरीद-फरोख्त वाला लोकतंत्र

Publsihed: 22.Mar.2009, 20:39

सबको वोट के हक से शुरू हुई लोकतंत्र में खराबी। पहले दलितों के वोट खरीदे जाते थे। फिर सरकारी खजाने का बेजा इस्तेमाल शुरू हुआ। अब तो राजनीतिक दल टिकट बेच रहे हैं। विधायक-सांसद खुद बिक रहे हैं।

चुनाव में वोटरों को खरीदने की बात कोई नई नहीं है। पहले गांवों में दलितों को ऊंची जातियों के लोग वोट नहीं डालने देते थे फिर दलितों के एक नेता को एक पसेरी चावल पहुंचा कर ऊंची जाति के लोग पूरे समुदाय की ठेकेदारी उसी को दे देते थे। वक्त बीता तो दलितों के कई नेता उभरने लगे और खरीदारों की तादाद भी बढ़ गई। धीरे-धीरे नौबत यह आ गई कि उम्मीदवार और राजनीतिक दल नगदी और शराब की बोतल लेकर सीधे दलित के घर पहुंचने लगे। इस तरह सत्ता खुद दलित के घर तक पहुंच गई। पचास साल के भारतीय लोकतंत्र का यह सफर सुनने में बड़ा अजीब लगता है। फिर भी इस सच्चाई को नकारना अपनी आंखों पर पट्टी बांधने जैसा ही होगा। पिछले पचास सालों से लोकतंत्र धन्ना सेठों का बंधक होकर रह गया है। पैसा भी उन कुछ परिवारों तक सीमित हो गया है, जिन्होंने राजनीति को अपना पेशा बना लिया है।

संविधान निर्माताओं के मन में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं थी। उन्होंने सोचा भी नहीं था कि राजनीति धन कमाने का जरिया बन जाएगी। उनके मन में ऐसी आशंका भी पैदा नहीं हुई होगी कि कुछ परिवार राजनीति से धन कमाकर वोटरों को खरीदने का धंधा शुरू कर देंगे।

चुनावों के बाद होगा असली धुव्रीकरण

Publsihed: 16.Mar.2009, 06:29

तीसरे मोर्चे की सरकार नहीं बनी, तो नए सिरे से धुव्रीकरण होगा। मुलायम-करुणानिधि के समर्थन वाली यूपीए सरकार बनने से रोकने के लिए मायावती, जयललिता अपनी वजह से एनडीए को समर्थन देने पर मजबूर होंगे। जबकि नवीन पटनायक, चंद्रबाबू कांग्रेस विरोध की वजह से ऐसा ही कदम उठा सकते हैं।

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू से 70 किलोमीटर दूर छोटी सी जगह है तुमकुर। तुमकुर का भारतीय राजनीति में कोई खास महत्व कभी नहीं रहा, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि मौजूदा सरकार के गठन में तुमकुर का खास महत्व था। चौदहवीं लोकसभा के चुनाव से ठीक पहले लालकृष्ण आडवाणी की तुमकुर में रैली हुई थी। आडवाणी उस समय देश के उपप्रधानमंत्री थे इसलिए वह एयरफोर्स के विमान पर तुमकुर गए थे, लेकिन उसी दिन लोकसभा चुनावों का ऐलान हो गया था। आचार संहिता लागू हो गई थी और आडवाणी को इंडियन एयरलाइंस की रेगुलर फ्लाइट पर बेंगलुरू से दिल्ली लौटना पड़ा था। उसके बाद लालकृष्ण आडवाणी सरकारी विमान का इस्तेमाल नहीं कर पाए।

विरासत को लेकर कितनी चिंतित सरकार

Publsihed: 09.Mar.2009, 06:08

भारत की विरासत को लेकर जुड़ी वस्तुओं को वापस लाने की कोई स्पष्ट नीति नहीं बन पाई। महात्मा गांधी से जुड़ी वस्तुएं जब-जब नीलाम होती है, सरकार के हाथ-पांव फूल जाते हैं। नीति का ड्राफ्ट पर्यटन मंत्रालय में धूल फांक रहा है।

रामसेतु और भगवान राम के अस्तित्व की तरह इस कहानी को भी नकारा जा सकता है। अलबत्ता नकारा ही जाएगा, लेकिन यह कहानी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। बिल्कुल वैसे ही जैसे भगवान राम पैदा हुए थे और उन्होंने जानकी सीता को रावण से वापस लाने के लिए श्रीलंका पर चढाई की थी। जिसके लिए उन्होंने पुल बनाया था, जिसे हजारों सालों से रामसेतु के तौर पर जाना जाता

एक दशक से दक्षिण बना-बिगाड़ रहा सरकार

Publsihed: 01.Mar.2009, 20:39

आठवीं लोकसभा के बाद किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। पंद्रहवीं लोकसभा भी त्रिशंकु होगी। तीसरा मोर्चा अभी भले ही उभरता दिखाई दे रहा हो, लेकिन तीसरे मोर्चे की सरकार नहीं बनीं, तो चंद्रबाबू, जयललिता, मायावती एनडीए के साथ जा सकती हैं। तीनों पहले भी एनडीए के साथ रहे हैं।

यूपीए सरकार ने अल्पमत में होते हुए अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। पहले वामपंथी दलों के समर्थन से और बाद में समाजवादी पार्टी के समर्थन से सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। कांग्रेस को दो बार अल्पमत सरकार चलाने का मौका मिला। और दोनों ही बार उसने सांसदों की खरीद-फरोख्त करके अपना

शरीयत पर इतनी हायतौबा भी ठीक नहीं

Publsihed: 22.Feb.2009, 21:01

पाकिस्तान के एनएफडब्ल्यूपी में लोगों की समस्याओं और आक्रोश का निदान करने के लिए शरीयत लागू की गई है। मौलाना सुफी मोहम्मद के साथ हुआ समझौता उनके तालिबानी दामाद मौलवी फजलुल्लाह को अलग-थलग करने में सहायक हुआ, तो यह स्वात घाटी में तालिबान की कमर तोड़ने में सहायक होगा।

पिछले हफ्ते इसी कालम में मैंने तालिबान के भारत के सिरहाने तक आ पहुंचने की चिंता जताई थी। जिस दिन यह कालम छपा उस दिन इसी तरह की खबरें आनी शुरू हो गई थी। पिछले सोमवार का यह वही दिन था जब पेशावर में एनडब्ल्यूएफपी प्रशासन और वहां शरीयत कानून लागू करने की मांग कर रहे मुल्लाओं में समझौता हुआ। एनडब्ल्यूएफपी ने कट्टरपंथी मौलवी सूफी मोहम्मद की तहरीक-ए-निफाज-ए-शरीयत-ए मोहम्मदी (टीएनएसएम) के साथ समझौता किया है जिसके मुताबिक एनडब्ल्यूएफपी के मालाकंड डिवीजन में निजाम-ए-अदल शरीयत का कानून लागू हो जाएगा। इस खबर ने दुनियाभर को चौंका दिया क्योंकि इस घटनाक्रम को पाकिस्तान सरकार का तालिबान के सामने घुटने टेकना माना गया।

तालिबान अब हमारे सिरहाने

Publsihed: 16.Feb.2009, 06:52

पाकिस्तान का शासन अब सिर्फ दो प्रांतों पंजाब और सिंध तक ही सीमित रह गया है। जरदारी ने यह मान लिया है कि फाटा और एनडब्ल्यूएफपी के ज्यादातर इलाकों में अलकायदा का कब्जा हो गया है। पाकिस्तान की नींद अब उखड़ी है, जब बहुत देर हो चुकी है। अब भी अगर पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ खड़ा नहीं होता, तो भारत और अमेरिका को सैन्य कार्रवाई करनी पड़ेगी।

अमेरिका के नए राष्ट्रपति बाराक हुसैन ओबामा ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस करवाने में बीस दिन का लंबा वक्त लिया। भारत के प्रधानमंत्री की तरह तुरुत -फुरुत अपनी नीतियों का खुलासा करने के बजाए ओबामा ने अपनी रणनीति पर अमल शुरू करने के बाद खुलासा किया। जैसी कि उम्मीद थी ओबामा ने दुनियाभर की भावनाओं की कद्र करते हुए इराक में बुश प्रशासन की गलतियों को सुधारना शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ अफगानिस्तान के मोर्चे पर और कड़ाई बरतनी शुरू की है, ताकि तालिबान और अलकायदा का फैलाव रोका जा सके। जार्ज बुश के अफगानिस्तान पर हमले का नतीजा यह निकला है कि इन दोनों कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवादी संगठनों का फैलाव पाकिस्तान के फाटा (फैडरली एडमिनस्टर्ड ट्राइबल एरिया), एनडब्ल्यूएफपी(नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस) और ब्लूचिस्तान तक हो गया है। फिलहाल पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत ही इन दोनों आतंकी संगठनों के प्रभाव से बचे हुए हैं। हालांकि यह दावा के साथ नहीं कहा जा सकता कि इन आतंकी संगठनों का इन दोनों प्रांतों में बिल्कुल प्रभाव नहीं है।

चुनाव आयोग को निष्पक्ष बनाने की जरूरत

Publsihed: 08.Feb.2009, 20:41

मुख्य चुनाव आयुक्त गोपालस्वामी ने न सिर्फ  पक्षपात करने वाले आयुक्त नवीन चावला को हटाने की सिफारिश की है, अलबत्ता आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोलजियम बनाने और रिटायरमेंट के बाद पद या राजनीति में आने की पाबंदी लगाने की सिफारिश भी की है।

मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी को देश के दो सौ सांसदों ने चुनाव आयुक्त नवीन चावला के खिलाफ शिकायत की थी। गोपालस्वामी का यह काम था कि वह उस याचिका पर अपना फैसला सुनाते। यह अलग बात है कि उन्हें अपने सहयोगी चुनाव आयुक्त के खिलाफ सिफारिश करने का हक है या नहीं। इस बात का फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगी, क्योंकि संविधान के किसी प्रावधान पर कोई मतभेद हों तो उसका फैसला केंद्रीय मंत्रिमंडल नहीं कर सकता। संवैधानिक प्रावधानों और यहां तक कि संसद की ओर से बनाए गए कानूनों की समीक्षा करना सुप्रीम कोर्ट का काम है। इसी अधिकार के तहत सुप्रीम कोर्ट संसद की ओर से पारित और राष्ट्रपति से हस्ताक्षरित कई कानूनों को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताकर रद्द कर चुकी है। संविधान के अनुच्छेद 324 में चुनाव आयुक्त को हटाने के मामले में मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश का जिक्र है।