Current Analysis

Earlier known as राजनीति this column has been re-christened as हाल फिलहाल.

आपातकाल की वजह जेपी आंदोलन नहीं था

Publsihed: 28.Jun.2009, 20:39

इंदिरा गांधी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए जेपी आंदोलन के कारण आपातकाल नहीं लगाया था। अलबत्ता इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से लोकसभा में उनका निर्वाचन रद्द करने के फैसले के कारण लगाया था।

पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में पहली बार वोट डालने वाले 18 साल के नौजवान को उस आपातकाल के बारे में नहीं पता होगा। जो उसके जन्म से 16 साल पहले भारत में लगा था। बीते हफ्ते 25 जून को आपातकाल को 34 साल पूरे हो चुके थे। आज की पीढ़ी को लोकतंत्र के उस काले अध्याय के बारे में बताना जरूरी है, ताकि वह अपने वोट की कीमत समझ सके। आपातकाल में लोकसभा का कार्यकाल पांच साल से बढ़ाकर छह साल कर दिया गया था। अगर उसे बदल नहीं दिया जाता तो अप्रेल-मई 2009 में पंद्रहवीं लोकसभा के लिए पहली बार वोट डालने वाला नौजवान बारहवीं या तेरहवीं लोकसभा के लिए वोट डाल रहा होता।

बंगाल में पतन की ओर वामपंथी

Publsihed: 21.Jun.2009, 20:36

ममता से मुकाबले के लिए माकपा ने खुद माओवादियों को बंगाल में बुलाया। अब माओवादी किसानों, मजदूरों, आदिवासियों के जख्मों पर मरहम रख खोद रहे हैं वामपंथी जमीन।

अंग्रेज देश की राजधानी तो कोलकाता से दिल्ली ले आए थे। लेकिन आजादी के बाद पचास के दशक तक कोलकाता देश की आर्थिक राजधानी बनी हुई थी। देश के राजस्व का चालीस फीसदी कोलकाता से आता था। साठ के दशक में ज्योति बसु और प्रमोद दासगुप्त नाम के दो वामपंथियों ने खेत मजदूरों और कामगारों की एटक में भर्ती शुरू की। बड़े पैमाने पर मार्क्सवादी थ्योरी पर आधारित पुस्तकें और पैंम्फलेट तैयार करके पढ़े-लिखे लोगों को प्रभावित करने में सफलता हासिल की गई। जमीनी तौर पर मजबूत होते ही कम्युनिस्टों ने अपने काडर के अलावा बाकी सभी को बुर्जुआ, सामंती, अमेरिका का पिट्ठू और सीआईए का एजेंट कहना शुरू कर दिया। प्रशासनिक पदों पर तैनात अधिकारियों, व्यापारिक संस्थानों और औद्योगिक घरानों को जनविरोधी, गरीब विरोधी, किसान विरोधी और वर्कर विरोधी कहा गया।

सामाजिक न्याय का महिला आरक्षण भी संभव

Publsihed: 14.Jun.2009, 20:36

पाकिस्तान की तरह राजनीतिक दलों को आम चुनाव में मिली सीटों के अनुपात में महिलाओं को मनोनीत करने का अधिकार देकर 33 फीसदी आरक्षण सहजता से लागू किया जा सकता है। राजनीतिक दल सभी वर्गों की महिलाओं को मनोनीत करने की नैतिक जिम्मेदारी से बंध जांएगे।

मनमोहन सरकार ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील के लिए तैयार किए पहले अभिभाषण में अपनी सरकार की पहले सौ दिनों में लागू की जाने वाली पच्चीस प्राथमिकताएं गिनाई हैं। इन प्राथमिकताओं में सबसे ज्यादा चर्चा और विवाद संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण को लेकर है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मनमोहन सरकार अपने वादे को पूरा कर पाएगी।

सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेदारी युवाओं के प्रति

Publsihed: 07.Jun.2009, 20:36

जो युवा राहुल गांधी के लिए पलक पांवड़े बिछाए हुए हैं, उनके सपने साकार नहीं हुए, तो वे सूपड़ा साफ करने में भी देर नहीं लगाएंगे। कांग्रेस की एक गलती उसे भारी पड़ सकती है।

पंद्रहवीं लोकसभा के साथ संसदीय इतिहास का नया अध्याय शुरू हुआ है। राजीव गांधी प्रचंड जीत के बाद पिछले बीस साल से संसद में भारी राजनीतिक टकराव का वातावरण बना रहा। छह साल सत्ता में रहने के बाद लगातार दूसरी हार ने भाजपा को हताश कर दिया है। वह अब टकराव का रास्ता छोड़ती हुई दिखाई दे रही है। अपनी मां इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी सहानुभूति की लहर पर सवार होकर लोकसभा की 414 सीटें जीतकर ले आए थे। विपक्ष की हालत 1952 से भी बुरी हो गई थी, जब देश का पहला लोकसभा चुनाव हुआ था। राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल में अपनी मां की ओर से विरासत में मिली पंजाब, मिजोरम, नगालैंड, मणिपुर जैसी अनेक समस्याओं को हल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। पड़ोसी देश चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए उन्होंने खुद चीन का दौरा किया। ऐसे समय में जब सोवियत संघ का टूटना साफ दिखाई देने लगा था राजीव गांधी ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को जिंदा रखने की कोशिश की थी। उन्होंने देश को एहसास दिलाया था कि युवा नेतृत्व चाहे तो क्या कुछ कर सकता है,

चेहरा, चाल और चरित्र भी बदलना होगा

Publsihed: 31.May.2009, 20:36

भाजपा के दो पावर सेंटर पार्टी की हार का कारण बने। कांग्रेस खुद को और मजबूत करने में लगी है, जबकि भाजपा अभी भी गुटबाजी का शिकार। चेहरे और चाल के साथ चरित्र भी बदलना होगा भाजपा को। भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को छोड़कर राजनीतिक राष्ट्रवाद अपनाए, तो उसका आधार ज्यादा व्यापक हो सकता है।

मनमोहन सिंह का मंत्रिमंडल बन जाने के बाद अब सोनिया गांधी का ध्यान कांग्रेस की तरफ लग गया है। इस बार कांग्रेस संगठन के बदलाव में राहुल गांधी की अहम भूमिका होगी। राहुल गांधी ने अपने भारत दर्शन के दौरान संगठन के ढांचे और पदों पर बैठे नेताओं की कार्यशैली को बारीकी से देखा है। सरकार बन जाने के बाद राहुल गांधी अपना भारत दर्शन फिर से चालू करने वाले हैं। उनके इस बार के भारत दर्शन में काफी बदलाव देखने को मिलेगा। वह जहां भी जाएंगे उनका स्वागत 1975 से 1977 के समय हुए संजय गांधी के स्वागत की याद ताजा करेगा। अब वह उतने ही ताकतवर हो गए हैं, जितने उस समय संजय गांधी हो गए थे।

इंडिया शायनिंग की जगह इंटरनेट पर सवार थी भाजपा

Publsihed: 25.May.2009, 07:44

भाजपा राजस्थान और उत्तराखंड में पार्टी की गुटबाजी के कारण हारी। मध्यप्रदेश में घमंड पर सवार होकर हारी। हरियाणा में गलत गठबंधन के कारण हारी। इन चारों राज्यों में भाजपा को 30 सीटों से हाथ धोना पड़ा। ये सभी तीस सीटें कांग्रेस को मिली हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने शिवराज सिंह चौहान को नरेंद्र मोदी की तरह पार्टी के भावी नेता के रूप में देखना शुरू कर दिया था। यह छोटी सी जीत पर शायनिंग मध्यप्रदेश दिखाई देने जैसी हालत ही थी। राजस्थान में भाजपा की हार का सिलसिला पांच महीने पहले विधानसभा चुनावों में शुरू हो गया था। जहां भाजपा भारी गुटबाजी के चलते हारी थी और यह गुटबाजी पार्टी की केंद्रीय गुटबाजी का ही नतीजा था। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने भी चुनाव के दौरान अपनी नाराजगी को सार्वजनिक करके भाजपा को नुकसान पहुंचाया।

राष्ट्रपति के सामने विकल्प

Publsihed: 10.May.2009, 20:36

यह तो तय ही है कि पंद्रहवीं लोकसभा में किसी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिल रहा। यह भी तय ही है कि किसी चुनाव पूर्व गठबंधन को भी बहुमत नहीं मिल रहा। मोटा-मोटा अनुमान यह है कि कांग्रेस और भाजपा आठ-दस सीटों के अंतर से 150 के आसपास आगे-पीछे होंगी। यह अनुमान लगाना गलत नहीं होगा कि यूपीए और एनडीए में से कोई भी 200 का आंकड़ा पार नहीं कर पाएगा। वैसे लोकसभा चुनावों में यूपीए एक गठबंधन के तौर पर चुनाव मैदान में नहीं था। चुनावों का ऐलान होने से ठीक पहले कांग्रेस कार्यसमिति ने यूपीए के तौर पर चुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर लिया था। सिर्फ एनडीए एकमात्र गठबंधन था। तीसरे मोर्चे का भी विधिवत कोई गठन नहीं हुआ था।

इम्तिहान तो दोनों राष्ट्रीय दलों का

Publsihed: 03.May.2009, 20:36

लोकतंत्र का मतलब ही यही है कि देश हर पांच साल बाद अपनी नई सरकार और उसका मुखिया चुने। लोकतंत्र किसी एक राजनीतिक दल को ही सत्ता हासिल करने या उसी को प्रधानमंत्री पद हासिल करने का हकदार नहीं बनाता। लोकतंत्र का मतलब जनादेश से सत्ता तक पहुंचकर अपनी नीतियों से सरकार चलाना है। भारत के संसदीय लोकतंत्र में दो दलीय व्यवस्था भी नहीं है, कि छोटे-छोटे दलों को अपना विकास करके प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने का हक न हो। इसलिए इस बार जब प्रधानमंत्री पद के कई दावेदार दिखाई दे रहे हैं, तो इस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यही लोकतंत्र की विशेषता है। पांच साल के शासनकाल के बाद भी कांग्रेस अगर देशभर में 150 सीटों का आंकड़ा पार नहीं करती है, तो जनादेश उसके खिलाफ माना जाएगा।

हर चुनाव में कंधार का सवाल

Publsihed: 26.Apr.2009, 20:36

आडवाणी और जसवंत सिंह अपनी आत्मकथाओं में ज्यादा पारदर्शिता दिखाते, तो उनके प्रतिद्वंदी कांग्रेस को हर चुनाव में कंधार का सवाल उठाने का मौका न मिलता। सर्वदलीय बैठक में भी यात्रियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की बात कही गई थी।

पूर्व विदेश मंत्री और दार्जिलिंग से भाजपा के उम्मीदवार जसवंत सिंह ने कंधार विमान अपहरण पर अपने ताजा बयान में कोई नया खुलासा नहीं किया। राजनीति और देश की घटनाओं पर निगाह रखने वाला हर जागरूक नागरिक पहले से जानता था कि लालकृष्ण आडवाणी आतंकवादियों को छोड़ने के हक में नहीं थे। सिर्फ आडवाणी ही क्यों, केन्द्रीय मंत्रिमंडल का हर सदस्य यात्रियों के बदले आतंकवादियों को छोड़ने के हक में नहीं था। जब यह घटना हुई थी, और सरकार ने तीन आतंकवादियों को छोड़कर 161 विमान यात्री मुक्त कराने का मन बनाया था तो लालकृष्ण आडवाणी बेहद खफा थे। उन्होंने गृहमंत्री के पद से इस्तीफा देने का मन बना लिया था और अपने मन की बात अपने अंतरंग लोगों के सामने प्रकट भी कर दी थी। संभवत: अपनी नाराजगी का इजहार उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के सामने भी किया होगा। लेकिन उन्होंने अपनी किताब 'माई कंट्री, माई लाइफ' में इसका जिक्र न करके अपनी आत्मा की आवाज को 1999 की तरह 2008 में भी दबाए रखा।

मनमोहन के राजनीतिक सितारे गर्दिश में

Publsihed: 19.Apr.2009, 20:39

1998 में जयललिता, मायावती, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाया था। आडवाणी का पीएम बनना भी इन चारों पर निर्भर।

यह जरूरी नहीं है कि देश का अगला प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी या मनमोहन सिंह में से एक हो। मनमोहन सिंह जबसे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने हैं उनके चेहरे पर तनाव झलकने लगा है। अब तक वह सोनिया गांधी की दी गई खड़ाऊ पर विराजमान थे। तनाव की झलक उस समय साफ दिखाई दी जब उन्होंने डाक्टर अम्बेडकर की जयंती पर लालकृष्ण आडवाणी की नमस्ते का जवाब देना भी मुनासिब नहीं समझा। आडवाणी को गहरा झटका लगा। दूसरा झटका उन्हें उस समय लगा जब वह मध्यप्रदेश के अपने दौरे में अपने साथ ब्रिटिश अखबार 'दि डेली टेलीग्राफ' के पत्रकार डीन नेल्सन को लेकर गए। नेल्सन ने आडवाणी को बताया कि वह पिछले हफ्ते राहुल गांधी का इंटरव्यू करने के लिए रायबरेली में उनकी कार में सवार हुआ था। इंटरव्यू खत्म होते ही राहुल गांधी ने कार रोककर दरवाजा खोल दिया।