यह है डायनेस्टिक डेमोक्रेसी मेरे भाई
बीजेपी ने कर्नाटक में छह मंत्रियों के रिश्तेदारों को टिकट दिए। तो कितना बवाल मचा। पर कर्नाटक का नतीजा ही बेहतरीन रहा। सीएम येदुरप्पा का बेटा राघवेंद्र भी जीत गया। हिमाचल के सीएम धूमल का बेटा अनुराग तो दूसरी बार जीता। जसवंत सिंह के बेटे को टिकट मिला तो बवाल। वसुंधरा के बेटे को टिकट मिला तो बवाल। पर परिवारवाद का विरोध करने वाली पार्टी बेटों-बेटियों को टिकट दे। तो बवाल होगा ही। बीजेपी को पंद्रहवीं लोकसभा से सबक लेना चाहिए। सौ से ज्यादा सांसदों के बाप-दादा भी एमपी या एमएलए थे। अपनी जम्हुरियत सौ परिवारों में सीमित हो गई। एक दलील अपन खूब सुनते हैं- 'जब डाक्टर का बेटा डाक्टर हो सकता है। जब पत्रकार का बेटा पत्रकार हो सकता है। तो सांसद का बेटा सांसद क्यों नहीं। मंत्री का बेटा मंत्री क्यों नहीं।' पर ऐसी दलील देने वाले धंधे और जम्हुरियत में फर्क नहीं समझते। धंधे और समाज सेवा में फर्क नहीं समझते।