सेक्युलरिज्म दिखाने के दांत, खाने के नहीं

Publsihed: 30.Apr.2009, 20:36

वेंकैया नायडू गलतफहमी में रहें। तो अपन टोकने वाले नहीं। नायडू का दावा सुन अपन हंसे। उनने कहा- 'सीबीआई ने बीजेपी के दबाव में आकर क्वात्रोची पर कार्रवाई का वक्त मांगा।' वेंकैया सीबीआई की ताजा अर्जी पर बोल रहे थे। सीबीआई ने कोर्ट से दो महीने की मोहलत मांगी। वेंकैया ने सीबीआई की अर्जी तो देखी। पर हंसराज भारद्वाज का बयान नहीं देखा। उनने कहा- 'बोफोर्स केस में कोई दम-खम नहीं।' अपन नहीं जानते वेंकैया क्यों गलतफहमी में। आडवाणी और जेटली को कोई गलतफहमी नहीं। दोनों की राय- 'कांग्रेस ने अपना काम कर दिया।' वेंकैया के तो उस दावे में भी अपन को दम नहीं लगा। उनने कहा- 'एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिलेगा।' अपन को आडवाणी-जेटली असलियत के करीब दिखे।

जेटली ने कहा- 'एनडीए को बहुमत नहीं मिला। तो हम थर्ड फ्रंट को समर्थन नहीं देंगे।' आडवाणी गांधीनगर में वोट डालकर बोले- 'बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी। एनडीए सबसे बड़ा गठबंधन होगा।' बहुमत का दावा न जेटली का, न आडवाणी का। तीन दौर का चुनाव निपट चुका। गुरुवार को मिलाकर 372 सीटें निपट गई। अब सिर्फ 171 बाकी। मोटे तौर पर बचे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड, झारखंड। दक्षिण का पूरा तमिलनाडु। बाकी बची यूपी-बंगाल की 60 सीटें। जब दो तिहाई निपट गया। तो कांग्रेस-बीजेपी के दावे शुरू हुए। बीजेपी का मोर्चा वेंकैया नायडू ने संभाला। तो कांग्रेस का अश्विनी कुमार ने। अश्विनी कुमार तो वेंकैया नायडू से भी चार कदम आगे निकले। वेंकैया ने तो एनडीए को टू सेवैंटी टू का दावा किया। अश्विनी कुमार ने कांग्रेस को ही टू सेवैंटी टू का दावा ठोक दिया। पर अपन को दोनों के आधे पर निपटने की उम्मीद। आधा नहीं, तो दोनों डेढ़-डेढ़ सौ पर ही निपटेंगी। कांग्रेस-बीजेपी की बात छोड़िए। इस बार किसी गठबंधन को भी बहुमत नहीं मिलना। ताकि सनद रहे, सो रिकार्ड के लिए बता दें। चौदहवीं लोकसभा में यूपीए 220 पर अटका था। एनडीए तो 185 पर ही लटका रह गया। बाकियों के हाथ थी 138 सीटें। इसमें लेफ्ट 59, एसपी-36, बीएसपी-19 थी। लेफ्ट के 59 मिलते ही सोनिया का नंबर 272 पार था। सो घर आए अमर सिंह बेइज्जत होकर लौटे। मायावती ने भी बिन मांगा समर्थन दिया। पर बीति ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले। करुणानिधि तो अब भी यूपीए में मौजूद। अपन लालू, मुलायम, पासवान को भी बाहर नहीं मानते। थर्ड फ्रंट को इशारे कर रहे पवार को भी नहीं। खफा चल रहे शिबू सोरेन को भी नहीं। थर्ड फ्रंट में बैठे देवगौड़ा को भी नहीं। पर अपन ने जिन सातों का नाम लिया। उन सातों के सितारे गर्दिश में। सिर्फ ममता का सितारा बुलंद। या फिर फारुख अब्दुल्ला उसी हालत में। दोनों पिछली बार साथ नहीं थे। ममता-सोनिया की सीटें बढ़ीं भी। तो सोनिया के नवरत्न 220 पार करा देंगे? अपन को तो पंद्रहवीं लोकसभा के महा त्रिशंकु होने की उम्मीद। बात अरुण जेटली के हकीकत से जुड़े आकलन की। जिनने कहा- 'कांग्रेस की कांग्रेस जाने। बीजेपी थर्ड फ्रंट को समर्थन नहीं देगी।' पर इस बार थर्ड फ्रंट जयललिता, मायावती, चंद्रबाबू के बूते मजबूत भले दिखे। बिना कांग्रेस-बीजेपी कोई सरकार नहीं बननी। बीजेपी की तरह कांग्रेस भी अड़ी। तो क्या होगा। थर्ड फ्रंट के सेक्युलरिज्म के परखचे उड़ेंगे हवा में। कई थर्ड फ्रंटियों का सेक्युलरिज्म तो सिर्फ चुनाव जीतने के लिए।

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