अमेरिकापरस्ती बनी बेनजीर की मौत
बहादुर शाह जफर को मरते समय भी गम रहा। बर्मा की मांडले जेल में मरे। वहीं पर दफनाए गए। जफर को पता था- हिंद में नहीं दफनाया जाएगा। सो उनने पहले ही लिख दिया- 'दो गज जमीं न मिली, कु-ए-यार में।' पर बेनजीर भुट्टो को मौत ही पाकिस्तान ले आई। वरना आठ साल बाद वतन लौटने की न सोचती। बेनजीर लौटते ही आतंकियों के निशाने पर आ गई। अपन ने तब तालिबानी नेता बेतुल्ला महमूद की धमकी लिखी थी। उनने कहा था- 'बेनजीर का स्वागत फिदाइन करेंगे।' आखिर 18 अक्टूबर की पहली ही रात बेनजीर पर आतंकी हमला हुआ। वह खुद तो बच गई। पर पौने दो सौ बेगुनाह मारे गए। अपन तो क्या, सब को आशंका थी- 'तालिबान चुपकर के नहीं बैठेंगे।'