विलास राव- राणे लड़ाई पहुंची दिल्ली

Publsihed: 21.Dec.2007, 20:37

राष्ट्रपति का चुनाव हुआ। तो अपन ने शिवसेना-कांग्रेस मेलजोल का खुलासा किया। शिवसेना एनडीए उम्मीदवार की हार का कारण बनी। शिवसेना शुरूआत न करती। तो नतीजा कुछ और होता। तब अपन ने खुलासा किया था- 'बाल ठाकरे ने मराठी अस्मिता को मुद्दा तो बनाया। पर नारायण राणे को सीएम न बनाने की शर्त भी रखी।' नारायण राणे जब कांग्रेस में आए। तो अघोषित वादा था- 'देर सबेर सीएम की कुर्सी सौंपेंगे।' राणे के आने से कांग्रेस की जान में जान आई। तब तक तो एनसीपी का पलड़ा भारी था। राणे ने आकर कांग्रेस की सीटें एनसीपी से ज्यादा की। पर राणे से किया वादा नहीं निभा।

राष्ट्रपति चुनाव का मराठी खेल न होता। तो अब तक राणे सीएम हो चुके होते। पर अब लगता है राणे का सब्र टूट चुका। यों तो महाराष्ट्र में राणे-विलासराव का टकराव जग जाहिर। पर शुक्रवार को टकराव दिल्ली आ पहुंचा। नारायण राणे ने अघोषित लड़ाई शुरू कर दी। फिलहाल तो उनने मारग्रेट अल्वा के सामने अल्ख जगाई। पर दिल्ली में जम गए। सो अब सोनिया को मिलकर ही जाएंगे। सोनिया का दरवाजा कब खुलेगा। कौन जाने, पर राणे को भरोसा- सोमवार तक खुलने का। चौबीस अकबर रोड में घूमते हुए राणे बोले- 'अगर ऐसे ही एक व्यक्ति की सरकार चलती रही। तो चुनावों में कांग्रेस की मुश्किल होगी।' राणे का इशारा किसी और की ओर नहीं। अलबत्ता विलास राव की ओर ही। यों तो राणे तीखे तेवरों के लिए मशहूर। आखिर उनकी राजनीतिक पैदाइश शिवसेना से हुई। सो तीखे तेवर तो होंगे ही। पर तीखे तेवर कांग्रेस में चलेंगे। इस पर अपन को शक। कांग्रेस में जब करुणाकरन के तीखे तेवर नहीं चले। जो कांग्रेस के सबसे पुराने एआईसीसी मेंबर। तो शिवसेना से आए राणे की क्या औकात। पर राणे कांग्रेस छोड़ गए। तो महाराष्ट्र में कांग्रेस की लुटिया डूबनी तय। सो कांग्रेस के सामने इधर कुआं, तो उधर खाई। राणे की रणनीति भी अपन बता दें। राणे कांग्रेस में आते ही नहीं। अगर राज ठाकरे पहले ही बाल ठाकरे से नाता तोड़ देते। राणे शिवसेना में राज ठाकरे के साथ थे। उध्दव ठाकरे हावी हुए। तो राज समर्थकों का शिवसेना में जीना हराम हुआ। राज ठाकरे ने फैसले में देरी की। पर इतनी हिम्मत राणे की नहीं थी। सो राणे पहले हिम्मत छोड़ कांग्रेस में जा मिले। अब राज ठाकरे अपनी पार्टी बना चुके। सो राणे के पास दूसरा विकल्प खुला। सो राणे तीखे तेवरों के साथ दिल्ली आ धमके। राणे बैरंग लौटेंगे। या भरोसा लेकर लौटेंगे। भरोसा मिला, तो कब तक इंतजार करेंगे। आखिर कांग्रेस में इंतजार की घड़ियां भी आसानी से खत्म नहीं होती। पर जिस राणे ने राज ठाकरे का इंतजार नहीं किया। वह सोनिया गांधी का इंतजार कब तक करेगा। अपन को तो बहुत जल्द ही महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल की उम्मीद।

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