गुजरात ने कांग्रेस को दहशत में डाल दिया। सोनिया-राहुल के रोड-शो पर बहुत भरोसा था। अब जांच हो रही है- 'सोनिया को किसने गुमराह किया। क्यों गुमराह किया।' शकील अहमद बोले- 'जांच चल रही है। अगर किसी ने जानबूझ कर गुमराह किया। तो कार्रवाई होनी चाहिए।' तो मौत के सौदागर वाला भाषण लिखने पर जांच शुरू हो चुकी। वैसे जावेद अख्तर ने अपनी तरफ से सफाई दे दी- 'मैंने सोनिया का भाषण नहीं लिखा।' पर अब सोनिया को फूंक-फूंककर चलना होगा। जो लाइन खुद के पल्ले न पड़े। उसे काऊंटर चेक करके बोलें। वरना जितना नाजुक गुजरात। उतना ही नाजुक उड़ीसा और कर्नाटक।
पहले बात उड़ीसा की। जहां सांप्रदायिक भट्टी तपने लगी। यों उड़ीसा के चुनाव को अभी डेढ़ साल बाकी। पर अपन इतिहास याद करा दें। आठ साल पहले हिंदू-इसाई दंगे हुए। ग्राह्म स्टेंस की हत्या हुई। तो सोनिया ने गिरधर गोमांग की कुर्सी छीनी थी। पर गिरधर की कुर्सी छिनी। तो हिंदू कांग्रेस से खार खा गए। चुनावों में फायदा बीजेपी-बीजेडी को हुआ। अब फिर धर्मांतरण पर ईसाई-हिंदू तनाव शुरू। सोमवार को वीएचपी लीडर लक्ष्मणनंद सरस्वती पर हमला हुआ। लक्ष्मणनंद सरस्वती धर्मांतरण विरोधी मुहिम के अगुवा। इसाईयों का काम धर्मांतरण करवाना। लक्ष्मणनंद का काम धर्मांतरण रुकवाना। सो हमले को समझना मुश्किल नहीं। कोई बड़ा वृक्ष गिरता है, तो धरती हिलती ही है। क्रिया होती है, तो प्रतिक्रिया होती ही है। सो सोमवार के हमले का असर मंगल को हुआ। जब हिंदू भड़क उठे। आगजनी हुई, पांच जगह पर कर्फ्यू लगा। पूछा तो शकील अहमद बोले- 'घटना के पीछे विश्व हिंदू परिषद के लोगों का हाथ।' लगता है कांग्रेस को उड़ीसा का इतिहास याद नहीं। गुजरात से भी सबक नहीं सीखा। सीधा आरोप हिंदू कट्टरपंथियों पर मढ़ दिया। पर बीजेपी के रविशंकर प्रसाद ने दिल्ली में नया खुलासा किया। बोले- 'लक्ष्मणनंद सरस्वती पर हमला कांग्रेस एमपी ने करवाया।' कांग्रेस-बीजेपी की सांप्रदायिक लड़ाई होगी। तो फायदे में बीजेपी ही रहेगी। यों उड़ीसा दूर, पर कर्नाटक दूर नहीं। जहां चुनाव अप्रेल-मई तक होना तय। कर्नाटक में मौत के सौदागर जैसी गलती बंटाधार कर देगी। यों कर्नाटक में सांप्रदायिक आग जलनी शुरू हो गई। शनिवार को मेंगलूर में गो-हत्या का मामला पकड़ा गया। पुलिस ने धावा बोला। तो खास किस्म की भीड़ ने पुलिस पर जवाबी हमला किया। मेंगलूर चार दिन से सांप्रदायिक रंग में सराबोर। बकरीद- क्रिसमस के मौके पर ऐसी बदअमनी होगी। तो फायदा बीजेपी को ही। यों भी बीजेपी का पलड़ा भारी। देवगौड़ा अपनी साख खत्म कर चुके। कांग्रेस का गुजरात की तरह ही कोई एक साईं नहीं। मल्लिकार्जुन खड़के, एसएम कृष्णा, धर्म सिंह, सिध्दारमैया की अपनी-अपनी ढपली। अपना-अपना राग। नवंबर का राजनीतिक ड्रामा तो आप भूले नहीं होंगे। जब एमपी प्रकाश ने कांग्रेस से प्यार की पींगें डाली। तो देवगौड़ा परिवार ने मजबूरी में येदुरप्पा को सीएम बनवाया। तब कांग्रेस ने लिंगायत लीडर एमपी प्रकाश को समर्थन नहीं दिया। पर अब कांग्रेस की पींगें प्रकाश पर। बुधवार को आस्कर फर्नाडीस मिलने गए। कांग्रेस में आने का न्यौता दिया। पर एमपी प्रकाश दुविधा में। बीजेपी के साथ जाएं, या कांग्रेस के साथ। पहले येदुरप्पा ने भी एमपी प्रकाश पर डोरे डाले। दो लिंगायत लीडर मिल जाएं। तो बीजेपी की ताकत दुगुनी होगी। पर बीजेपी में अनंत कुमार की ताकत घटेगी। सो अनंत कुमार की कोशिश एमपी प्रकाश को रोकने की। पर एमपी प्रकाश की शर्तों से येदुरप्पा भी दुविधा में। प्रकाश की एक शर्त- 'बेटे एमपी रवि को बीजेपी टिकट दे।' प्रकाश के बेटे रवि की छवि से बीजेपी दहशत में। सो बीजेपी में प्रकाश को लेकर उतना उत्साह नहीं। जितना हफ्ताभर पहले था। प्रकाश कांग्रेस में जाएं। तो येदुरप्पा की मुसीबत टले। इस बार येदुरप्पा का सब कुछ दांव पर। मोदी के शपथ ग्रहण पर सबने येदुरप्पा से कहा- 'अब बारी कर्नाटक की।'
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