सोनिया हिमाचल में बीजेपी के खिलाफ गरजी। तो अपन को शक हुआ- कहीं गुजरात वाला भाषण तो नहीं पढ़ आई। आखिर हिमाचल में तो बीजेपी का राज नहीं। पर नहीं, यह गुजरात-हिमाचल के बाद का इशारा। लोकसभा चुनाव अब बहुत दूर नहीं। लेफ्ट ने इसी महीने की लक्ष्मण रेखा खींच दी। मनमोहन ने एटमी ऊर्जा की मृग तृष्णा न छोड़ी। लक्ष्मण रेखा पार कर ली। तो लेफ्ट सत्ता का अपहरण करेगा। फिर जो चुनावी युध्द जीतेगा। वही दिल्ली की अयोध्या पर राज करेगा। पर फिलहाल बात गुजरात-हिमाचल की। आडवाणी आज वोट डालकर हिमाचल का रुख करेंगे। पर गुजरात की वोटिंग से पहले बीजेपी को मध्य प्रदेश में जोरदार झटका धीरे से लगा।
दोनों उप चुनाव हार गई। माधव राव सिंधिया का चेला तुलसी सिलावट जीत गया। उधर सुभाष यादव का बेटा अरुण यादव भी। अब सुभाष यादव का खूंटा मजबूत होगा। दिग्गी राजा की रणनीति यादव को हटवाने की थी। पर सोनिया का ही सुरेश पचौरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाने का हो। तो कोई कुछ नहीं कर सकता। पर मध्य प्रदेश में शिवराज चौहान की चूलें हिलने लगी। चौहान के रहते बीजेपी लगातार पांच चुनाव हार चुकी। ताजा सबक बीजेपी को उमा भारती की तरफ ले जाए। तो हैरानी नहीं होगी। वरना सिर्फ मध्य प्रदेश कहां। राजस्थान-छत्तीसगढ़ का किला भी दरकेगा। तीनों राज्यों में बीजेपी ने वक्त रहते घर न संभाला। तो पिछले हफ्ते का चार साला जश्न बीजेपी का आखिरी होगा। पर अपन बात कर रहे थे लेफ्ट की खींची लक्ष्मण रेखा की। कांग्रेस दोनों राज्यों में लुढक़ी। जिसकी अपन को ज्यादा उम्मीद। तो दिल्ली में आखिरी धक्का लेफ्ट देगा। लेफ्ट के तेवरों ने ही संघपरिवार में युध्द विराम कराया। आडवाणी को कमान सौंपी गई। आडवाणी पीएम भले न बन पाएं। पर चुनाव जिताने की ताकत आडवाणी में ही। राजनाथ, जसवंत, जोशी के बूते में नहीं। पर क्या एनडीए चुनावों के लिए तैयार? एनडीए की हालत बीजेपी से भी खस्ता। गुजरात-हिमाचल को ही देखो। दोनों जगह एनडीए में दरार। जेडीयू ने अपने उम्मीदवार उतारे। एनडीए की हालत का अंदाज इस बात से लगाइए। वाजपेयी की सेहत खराब। जॉर्ज फर्नाडीस की सेहत ठीक नहीं। अच्छा ड्राइवर सफर पर चलने से पहले क्लच प्लेट, ब्रेक ऑयल चेक करता है। तो क्या चुनावी सफर से पहले एनडीए के क्लच-प्लेट, ब्रेक ऑयल बदलने की जरूरत? तो कौन संभालेगा अटल-जॉर्ज की जगह। अपन ने 11 दिसम्बर को लिखा था- 'आडवाणी-शेखावत देंगे सोनिया को चुनौती।' तो अपन को इसका अहसास शनिवार को भी हुआ। जब भैरोंसिंह शेखावत सक्रिय राजनीति में आते दिखे। यूपी में उनने किसानों का मोर्चा संभाला। तो हरियाणा में सैनिकों की विधवाओं का। भिवानी के पास विधवाओं को सम्मानित करते शेखावत की आंखें भर आईं। बोले- 'बासठ, पैंसठ, इकहत्तर की युध्द विधवाओं को भी मिले कारगिल की विधवाओं जैसा मुआवजा।' उनने वाजपेयी सरकार की जमकर तारीफ की। अब आज बारी जयपुर की। वहां भी पूर्व सैनिकों से रू-ब-रू होंगे। पर शेखावत की राजनीति में वापसी की झलक अपन को सड़कों पर भी दिखी। जगह-जगह हाथ हिलाकर लोगों ने ऐसे स्वागत किया। जैसे कह रहे हों- 'छोड़िए संन्यास। लौटिए राजनीति में।' लौटते समय बहादुरगढ़ में तो गजब हुआ। बीजेपी वर्करों ने सड़क पर रोक लिया। मजबूरन फूल-मालाएं पहनाई गई। तो शेखावत पिघल गए। कार से नीचे उतरकर लोगों से बात भी की। खबरचियों के सवालों के जवाब भी दिए। जरा झलक देखिए- अफजल की फांसी पर क्या राय? जवाब- 'फांसी दी जानी चाहिए।' सवाल- पहले अब्दुल कलाम राष्ट्रपति थे, जब फांसी रुकी? जवाब- फैसला राष्ट्रपति ने नहीं, सरकार ने रोका। सवाल- आतंकवाद तो एनडीए राज में भी खूब हुआ? जवाब- 'इतना नहीं, जितना अब।' तो इन राजनीतिक जवाबों से अंदाज लगाइए।
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