मोदी का एक्जिट नहीं होगा। एक्जिट पोल कुछ भी कहें। इम्तिहान तो होगा स्टार के एक्जिट पोल का। जिसने साफ-साफ कहा- 'बीजेपी 103, कांग्रेस 76 पर निपटेगी।' यों सीएनएन-आईबीएन ने भी दो टूक भविष्यवाणी की- 'बीजेपी को बहुमत जरूर मिलेगा। किस्मत ने साथ न दिया। तो भी 92 सीटें तो आएंगी ही। पर सौ से ज्यादा नहीं मिलेंगी। कांग्रेस को 77 और लाटरी निकल आई तो 85 तक।' जीटीवी का एक्जिट पोल भी करीब-करीब ऐसा ही। दो सीटें कम या ज्यादा। पर एनडीटीवी एक्जिट पोल न भी करता। तो कोई फर्क नहीं पड़ता। कहा- 'बीजेपी को 90 से 110 के बीच। कांग्रेस को 70 से 95 के बीच।' बीजेपी जीत भी सकती है, हार भी सकती है। कांग्रेस जीत भी सकती है, हार भी सकती है। यानी चित भी मेरी, पट भी।
पर कांग्रेस को 110 सीटों की पूरी उम्मीद। बीजेपी को 120 सीटों की। बाल कटवाने गए एक बंदे ने नाई से पूछा- 'नाई-नाई, मेरे सिर पर कितने बाल?' नाई ने कहा- 'थोड़ा रुक जाओ, अभी सामने आ जाएंगे।' तो इन एक्जिट पोलों की पोल भी संडे खुल जाएगी। संडे की बात चली। तो बताते जाएं। अपने राहुल बाबा ने संडे और मंडे हिमाचल में लगाया। मनमोहन भी जुटे रहे। पर सोनिया आखिरी दिन दांव खेलने नहीं गई। हिमाचल से अपने वाजपेयी का गहरा रिश्ता। गर्मियों की छुट्टियां वहीं मनाते हैं। कुल्लू जिले में अपने प्रीणी वाले मकान में। सो वोटरों पर अटल की अपील का असर। वाजपेयी का असर तोड़ने का ठेका सोनिया ने राहुल को दिया। सो राहुल बोले- 'मेरी दादी इंदिरा को हिमाचल से बहुत लगाव था।' असल में राहुल बाबा बचपन में इंदिरा के साथ हिमाचल गए होंगे। वह याद आ गया होगा। वरना वाजपेयी से ज्यादा लगाव तो नेहरू को था। नेहरू ने पीएम के नाते अपनी पहली छुट्टी हिमाचल में बिताई थी। पर बात वाजपेयी का असर तोड़ने के ठेके की। यों भी कांग्रेस में दो ही नेता। बाकी सब तो उप नेता। मनमोहन से लेकर प्रणव मुखर्जी तक। अर्जुन से लेकर चिदंबरम तक। जिन चारों का अपन ने जिक्र किया। उन चारों के नेता अब राहुल। गुजरात को ही लो। अर्जुन-प्रणव जैसे पचास साला दिग्गज प्रेस कांफ्रेंस तक सिमट गए। कांग्रेस को मोदी का कद बीजेपी से बड़ा होने पर एतराज। अपने अरुण जेटली बोले- 'कांग्रेसियों को मोदी का कद बीजेपी से बड़ा होने की फिक्र। पर अपना कद राहुल से छोटे होने पर कोई शर्मिंदगी नहीं।' पर बात हिमाचल की। तो राहुल ने वाजपेयी के कुल्लू से ही शुरूआत की। पर सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली बात हुई। तो कांग्रेसी बोले- 'राहुल की सभा अचानक हुई, इसलिए फ्लाप हुई।' बताते जाएं- आडवाणी की सभा तो छोड़िए, मायावती की सभा भी राहुल से बड़ी हुई। मंडे प्रचार का आखिरी दिन था। मनमोहन ने शिमला संभाला। राहुल ने मंडी, हमीरपुर। मनमोहन बोले- 'बीजेपी वाले विकास नहीं करते। सिर्फ जाति-धर्म पर ही राजनीति करते हैं।' मनमोहन गुजरात होकर लौटे। सो गुजरात का भाषण नहीं भूले। वरना खबर ली होती, तो पता होता- हिमाचल में जाति-धर्म का कोई फंडा ही नहीं। शनिवार को सोनिया ने बीजेपी का भूत दिखाया। तो सोमवार को मनमोहन ने। दोनों के सिर पर मिड टर्म का भूत। वरना दोनों वीरभद्र की कारगुजारियों का राग अलापते। बात मिड टर्म पोल की चली। तो आडवाणी को गुजरात-हिमाचल जीतने के बाद मिड टर्म की उम्मीद। पर अपन को ऐसे नतीजों से मिड टर्म पर पानी फिरने की उम्मीद। बीजेपी से डरकर कांग्रेस-कम्युनिस्ट फिर कोई रास्ता निकाल लेंगे। मनमोहन ही एटमी करार पर चुप्पी साध लें। तो हैरानी नहीं होगी। वैसे सोमवार को प्रणव दा कोलकाता में बोले- 'सरकार कब गिर जाए, क्या भरोसा। गठबंधन में मिड टर्म की तलवार तो हमेशा।'
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