बहादुर शाह जफर को मरते समय भी गम रहा। बर्मा की मांडले जेल में मरे। वहीं पर दफनाए गए। जफर को पता था- हिंद में नहीं दफनाया जाएगा। सो उनने पहले ही लिख दिया- 'दो गज जमीं न मिली, कु-ए-यार में।' पर बेनजीर भुट्टो को मौत ही पाकिस्तान ले आई। वरना आठ साल बाद वतन लौटने की न सोचती। बेनजीर लौटते ही आतंकियों के निशाने पर आ गई। अपन ने तब तालिबानी नेता बेतुल्ला महमूद की धमकी लिखी थी। उनने कहा था- 'बेनजीर का स्वागत फिदाइन करेंगे।' आखिर 18 अक्टूबर की पहली ही रात बेनजीर पर आतंकी हमला हुआ। वह खुद तो बच गई। पर पौने दो सौ बेगुनाह मारे गए। अपन तो क्या, सब को आशंका थी- 'तालिबान चुपकर के नहीं बैठेंगे।'
आखिर वही हुआ। जब गुरुवार को रावलपिंडी के लियाकत बाग में गोलियों से छलनी कर दिया। लियाकत बाग की बात चली। तो बता दें- अंग्रेजों के जमाने में यही कंपनी बाग था। जहां पाक के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खां को गोली मारी गई। गोली मारने वाला शख्स था- अकबर अली खां। अकबर अली खां को भी फौरन गोली मार दी गई। हत्या की साजिश का राज हाथों-हाथ दफन हो गया। सो पाक में हत्या की राजनीति नई बात नहीं। पहले पीएम की भी हत्या हुई। हत्या की राजनीति पर बात शुरू हो ही गई। तो जरा और इतिहास बता दें। बेनजीर भुट्टो के दादा थे सर शाहनवाज भुट्टो। बटवारे से पहले जूनागढ़ के दीवान थे। जूनागढ़ का बादशाह पाक भाग गया। तो शाहनवाज भुट्टो भी भाग गए। पर मौत शाहनवाज को पाक ले गई थी। जाते ही हत्या कर दी गई। शाहनवाज के हत्यारों का आज तक पता नहीं चला। बेनजीर के पिता जुल्फिकार अली का इतिहास पुराना नहीं। जिया उल हक ने 1979 में जुल्फिकार का तख्ता पलट फांसी पर चढ़ाया। भुट्टो पर आरोप था- 'उनने महमूद कसूरी के पिता की हत्या करवाई।' जिया उल हक ने बेनजीर को भी कई बार जेल में डाला। बेनजीर का पूरा परिवार राजनीतिक साजिश का शिकार। अपन पहले भी लिख चुके। फिर याद करा दें। बेनजीर का बड़ा भाई शाहनवाज 1985 में फ्रांस में मरा पाया गया। दूसरे भाई मुर्तुजा को 1996 में राष्ट्रपति फारुख लेघारी ने मरवा दिया। अब बेनजीर की हत्या। बेनजीर की बस एक बहन बची हैं सनद। जो 18 अक्टूबर को ही बेनजीर के साथ इंग्लैंड से लौटी। बेनजीर ने इसी 21 जून को 54 साल पूरे किए। तीन बच्चों की मां बेनजीर ऑक्सफोर्ड और हावर्ड में पढ़ी-लिखी। शिमला समझौते के समय पिता के साथ भारत आई। तो सिर्फ 18 साल की थी। बेनजीर को तब अपने अखबारों में पिंकी लिखा गया। पिंकी बेनजीर का घर का नाम था। बेनजीर अक्टूबर के हमले में बाल-बाल बचीं। तो लाल कृष्ण आडवाणी ने फोन कर हालचाल पूछा। पर अब का हमला जानलेवा साबित हुआ। बेनजीर की हत्या पर अपन को 1991 याद आ गया। तब भारत में चुनाव हो रहे थे। राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। अब पाकिस्तान में चुनाव हो रहे हैं। बेनजीर की हत्या कर दी गई। इंदिरा की हत्या राजीव को राजनीति में ले आई। जुल्फिकार की फांसी बेनजीर को राजनीति में ले आई। राजीव और बेनजीर का राजनीतिक उदय भी एक जैसे हालत में हुआ। मौत भी एक जैसे हालात में हुई। बात पाकिस्तान के आतंकी माहौल की। जो आने वाले दिनों में और बिगड़ेगा। अपन को पाकिस्तान की मशहूर लेखिका सादिका का कहा बताना पड़ेगा। उनने पिछले हफ्ते ही लिखा था- 'पाक में शोले दहक रहे हैं। कभी भी आग भड़क उठेगी।'
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