शुकर है, मनमोहन सिंह ने मान लिया। एनडीसी खत्म हुई। तो आतंरिक सुरक्षा पर मुख्यमंत्रियों की मीटिंग हुई। मनमोहन बोले- 'नक्सलियों ने अपना जाल बढ़ा लिया।' एक दिन ऐसा भी आएगा। जब मनमोहन कहेंगे- 'आतंकवादियों ने अपनी जड़ें मजबूत कर लीं।' पहले बात नक्सलवाद की। अपन अगर मनमोहन के कहे की जड़ में जाएं। तो गढ़े मुर्दे उखड़ेंगे ही। याद करो आंध्र प्रदेश। जहां चंद्रबाबू नायडू पर नक्सली हमला हुआ। वह बाल-बाल बच गए। पर मई 2004 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीती। तो पहली बार नक्सली संगठनों पर बैन हटा।
राजशेखर रेड्डी ने बातचीत का न्योता दिया। मौके का फायदा उठाया नक्सलियों ने। उनने पूरे आंध्र में पहली बार रैलियां की। हथियारों का नंगा नाच हुआ। जगह-जगह नई भर्ती शुरू हुई। छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार के नक्सली आंध्र पहुंचे। नए हथियारों की नई टे्रनिंग लेकर लौटे। आंध्र में बातचीत फेल हो गई। तो नक्सलियों ने नरसंहार शुरू कर दिया। एमएलए नरसी रेड्डी की हत्या हुई। तो केंद्र-आंध्र की सरकारें नींद से जागीं। नक्सलियों पर फिर बैन लगाया गया। पर एक साल का वक्फा नक्सलियों में जान फूंक गया। अब मनमोहन कहते हैं- 'नक्सलियों ने अपना आधार बढ़ा लिया।' यों उनने बीजेपी की हिंदू विरोधी नक्सली थ्योरी नहीं मानी। बीजेपी की थ्योरी- 'नक्सलियों का रेड कारिडोर पशुपतिनाथ से तिरुपति बालाजी तक।' मनमोहन बोले- 'यह तो बढ़ा-चढ़ाकर कहने वाली बात।' पर अपन बताते जाएं। नक्सलियों-माओवादियों-आतंकियों की सांठ-गांठ। नक्सलियों के पांव फैल चुके। फिलहाल मनमोहन ने सिर्फ इतना माना। एक दिन ऐसा भी जरूर आएगा। जब मनमोहन मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में कहेंगे- 'विदेशी आतंकवादियों ने देश में अपनी जड़ें मजबूत कर लीं।' अपन लगते हाथों आतंकवाद की नई धमकी बता दें। भले ही खुलासा गुरुवार को तब हुआ। जब दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा प्रबंधों की समीक्षा की। पर हाईकोर्ट को ई-मेल की धमकी दो दिन पहले आ चुकी थी। धमकी दिल्ली हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को मिली। वैसे पहली दिसम्बर को ही आईबी ने पुलिस को रपट दी थी। रपट में कहा था- 'दिल्ली की बड़ी इमारतें। भीड़-भाड़ वाली जगहें आतंकियों के निशाने पर। सिर्फ दिल्ली नहीं। फैजाबाद, अजमेर, लखनऊ में भी आतंकी हमले की आशंका।' जहां तक नए ई-मेल की बात। तो उसमें हाईकोर्ट, संसद और ताज महल का जिक्र। लश्कर-ए-तोएबा और हूजी पर शक की सुई। शक की सुई अपन किसी पर भी टिका दें। कोई फर्क नहीं पड़ता। आतंकियों का मकसद एक ही। नाम अलग-अलग। बात हूजी की चली। तो बताएं- हूजी ओसामा बिन लादेन के इशारे पर 1992 में बना। साल भले ही 1992 था। पर इसका बाबरी ढांचा टूटने से कोई लिंक नहीं। हूजी का मकसद था- 'बांग्लादेश को अफगानिस्तान की तरह तालिबानी रंग में रंगना।' अपन अपनी खुफिया एजेंसियों की रपट पर भरोसा करें। तो बांग्लादेश में कम से कम पंद्रह हजार हूजी आतंकी। हूजी का मतलब है- 'हरकत-उल-जेहादी-ए-इस्लामी।' पर जब अयोध्या में बाबरी ढांचा टूटा। तो सबसे पहले हूजी के आतंकी भारत पहुंचे। मुम्बई के बम धमाकों में हूजी के ही मोहम्मद तुफैल हुसैनी थे। हूजी का ही शाहिद बिलाल अपने यहां कई बड़ी वारदातें कर चुका। अपनी खुफिया एजेंसियों की मानें। तो शाहिद बिलाल का अड्डा अब पाकिस्तान। दो महीने पहले जब भारत-पाक की आतंकवाद विरोधी मीटिंग हुई। तो अपन ने शाहिद बिलाल का नाम दिया। पर पाकिस्तान का जवाब अभी तक नहीं आया। भले ही अपने मनमोहन सिंह अमेरिका में जाकर कह आए- 'पाकिस्तान भी आतंकवाद का शिकार।' पर पाक का आतंकवाद कट्टरवाद की अंदरूनी जंग। जो अपन ने पहले इस्लामाबाद की लाल मस्जिद में देखी। फिर बेनजीर के लौटने पर कराची में देखी। पर बात आस-पड़ोस की नहीं। बात अपने घर की। पहले सांपों को दूध पिलाना। फिर कहना- 'सांप-सांप-सांप।'
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