तो आज वसुंधरा-माथुर की क्लास लगेगी। आडवाणी ही नहीं, बीजेपी का बच्चा-बच्चा जानता है। कम से कम राजस्थान में तो गुटबाजी ने हरवाया। यह गुटबाजी कोई चुनावों में नहीं पनपी। चुनावों से पहले भी थी। चुनावों के दौरान भी थी। सो गलती तो आलाकमान की। जो सब जानबूझकर भी अनजान बना रहा। आलाकमान की लापरवाहियां नतीजों में सिर चढ़कर बोली। अकबर इलाहाबादी ने ठीक ही लिखा था- 'गफलतों का खूब देखा है तमाशा दहर में, मुद्दतें गुजरी हैं तुझको होश में आए हुए।' पर अपने शिवराज की शपथ के बाद वेंकैया नायडू खबरचियों से बोले- 'वसु-माथुर को दिल्ली तलब किया है। ताकि ऐसी गलती लोकसभा चुनाव के वक्त न हो।' आज अपने गहलोत शपथ लेकर राहत की सांस लेंगे। तो वसुंधरा सीएम की 'एक्टिंग' से भी मुक्त होंगी।
एक कुर्सी गंवाकर, एक कुर्सी पाकर अपने-अपने आलाकमान को नत्मस्तक होंगे। जैसे अशोक चव्हाण शुक्रवार को सोनिया के आगे नत्मस्तक थे। चव्हाण दिल्ली आए। तो मत्था टेकने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शरद पवार का जन्मदिन था। सो भुजबल के साथ बधाई देने पहुंचे। पीएम-एचएम से तो संसद भवन में ही मिल लिए। बात संसद की चली। तो बताते जाएं- सात साल पहले आज के दिन ही संसद पर हमला हुआ था। आठ लोग आतंकियों की गोली से शहीद हुए। पर सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें संसद की इमारत में नहीं घुसने दिया। उन सभी आठ शहीदों को शुक्रवार को ही श्रध्दांजलि हो गई। मुंबई के आतंकी हमले का असर सत्र पर तीसरे दिन भी दिखा। दोनों सदनों की कार्यवाही बिना झमेले चली। वैसे हाजिरी कम ही रही। गुरुवार देर रात तक चलने का असर रहा। या दो दिन की छुट्टी से पहले शुक्रवार होने का असर। यों गुरुवार को जब आतंकवाद पर बहस हो रही थी। तब भी हाजिरी शर्मनाक थी। राज्यसभा में तो राजीव शुक्ल ने चुटकी ली- 'सांसदों की गंभीरता उनकी हाजिरी देखकर दिखती है।' बात आतंकी हमले की चली। तो बताते जाएं- गुरुवार रात पास हुए प्रस्ताव में पाक पर सीधा निशाना हुआ। प्रस्ताव की बात चल ही पड़ी। तो सीएम की कुर्सी पर पहुंचने से पहले ही लुढ़के मल्होत्रा की बात। उनने नाइत्तफाकी जाहिर करते कहा- 'प्रस्ताव पास करने से क्या होगा। प्रस्ताव तो चीन से एक-एक ईंच जमीन वापस लेने का भी हुआ था। प्रस्ताव तो पाक अधिकृत कश्मीर लेने का भी हुआ था।' सच्ची बात जरा कड़वी होती है। सो संसद ने कड़वा घूट पी लिया। पर अब पाकिस्तान की खैर नहीं। उधर सुरक्षा परिषद ने जमात-उद-दावा को बैन किया। इधर अमेरिकी उपविदेश मंत्री जोहन नेगरोपोंटे इस्लामाबाद पहुंच गए। हाथ में आतंकियों पर कार्रवाई की लंबी लिस्ट लेकर। लिस्ट में लश्कर-ए-तोएबा, जमात-ए-इस्लामी, अल रशीद ट्रस्ट, पासबान अहले-ए-हदीथ का नाम। यों तो पाकिस्तानी विदेशमंत्री कुरैशी शुक्रवार को भी सबूत की रट लगाए रहे। पर जुम्मे का दिन जरदारी सरकार पर भारी पड़ा। पाकिस्तान के ही डॉन अखबार ने सबूत पेश कर दिया। डॉन ने अजमल कसाब के अब्बा अमीर कसाब से कबूल करवा लिया। अमीर कसाब ने कहा है- 'शुरू-शुरू में मुझे लगता था- मुंबई में पकड़ा गया आतंकी मेरा बेटा नहीं होगा। पर अब मैंने अखबार में फोटू देख ली। यह सच है, वह मेरा ही बेटा है।' पकोड़ों की रेहड़ी लगाकर गुजारा करने वाले अमीर कसाब ने खुलासा किया- 'चार साल पहले ईद पर अजमल ने नए कपड़े मांगे थे। मैं नहीं दिला पाया। वह गुस्से में घर से भाग गया। फिर नहीं लौटा।' घर से भागकर अजमल पहले लाहौर में छोटे-मोटे क्राइम करने लगा। फिर रावलपिंडी में एक इस्लामी गुट में जा मिला। अजमल को जंग की ट्रेनिंग दी गई। मक्कारी देखिए। यह खबर पढ़कर भी कुरैशी सबूत मांगते हैं। पंजाब में एक कहावत है- 'गोद में छोरा, शहर में ढींढोरा।' पाकिस्तान के पंजाब में भी यही कहावत होगी।
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