अपन ने शुरू में ही कहा था- 'संसदीय कमेटी जांच नहीं कर सकेगी। जांच एजेंसी से करानी चाहिए जांच।' अब जब सांसदों के खरीद-फरोख्त की संसदीय रपट आई। तो किशोर चंद्र देव कमेटी ने लिखा- 'संसदीय कमेटी जांच एजेंसी जैसी नहीं हो सकती। किसी जांच एजेंसी से संजीव सक्सेना की जांच कराई जाए।' सांसदों की खरीद-फरोख्त का एपिक सेंटर तो वही था। वही अशोक अर्गल, कुलस्ते, भगौरा को खरीदने गया था। वही एक करोड़ रुपया अर्गल को देकर आया था। जो उनने सदन पटल पर रखा। अपन को एक बात समझ नहीं आई। जब संजीव सक्सेना का रोल ही तय नहीं हुआ। जब पैसे का स्रोत ही पता नहीं चला। तो अमर सिंह बरी कैसे हुए। अपन को ऐसा लगा। जैसे कमेटी का काम सच जानना नहीं। सच छुपाना था। कमेटी ने अड़तालीसवें पेज पर लिखा- 'कमेटी के पास सक्सेना का झूठ पकड़ने की मशीन नहीं। सो सक्सेना की बातों को झूठ मानकर अमर सिंह पर दोष क्यों मढ़ें।' कमेटी जब सक्सेना की बातों को सच भी नहीं मानती। तो उसके कहे को आधार बनाकर अमर सिंह को बरी भी कैसे किया।
अर्गल ने रपट आने के बाद कहा- 'मैं नारको टेस्ट को तैयार था। सक्सेना का नारको टेस्ट भी कराया जाता।' हां, बात नारको टेस्ट की। कमेटी अपनी रपट में लिखती है- 'नारको टेस्ट अदालत में भी नहीं माना जाता।' क्या आपको नहीं लगा- कमेटी को ऐसी दलीलों की जरूरत क्यों पड़ी। ताकि सनद रहे, सो कानूनी पोजिशन बता दें। हां, नारको टेस्ट सबूत नहीं बनता। पर दूसरा सबूत हो। तो नारको टेस्ट सबूत को पुख्ता करता है। अदालत में नारको टेस्ट रपट अमान्य नहीं होती। इसीलिए तो अदालत देती है टेस्ट की इजाजत। पर कमेटी ने नारको न कराने की दलील गढ़ी। दूसरा सबूत। किशोर चंद्र कमेटी ने सीएनएन-आईबीएन की सीडी ही ली। बाकी सीडी पर नोटिस नहीं लिया। इन्हीं में से एक सीडी थी- सक्सेना के बीजेपी दफ्तर से निकलने की। नहीं, बीजेपी दफ्तर नहीं, अलबत्ता बगलगीर जेटली के घर से। वहां से निकल कर सक्सेना आया अर्गल के घर। यह सीडी उमा भारती ने दिखाई थी। पर अगले ही दिन एक चैनल ने पोल खोली- 'यह सीडी बाद में बनाई गई। सीडी में अर्गल के घर पर बधाई का पोस्टर चिपका है।' इस सीडी का कमेटी ने नोटिस नहीं लिया। पर कमेटी 49वें पेज पर लिखती है- 'सक्सेना अगर अमर सिंह के लिए काम कर रहा था। तो वह बीजेपी दफ्तर में क्यों गया। कहा गया- वहां से उसकी कार में नोटों के बैग रखे गए।' यह तो रहा अमर सिंह के बचाव में दलीलें ढूंढने का सबूत। अब रेवती रमण का किस्सा भी सुनो। वह आधी रात को अर्गल के घर गए। उनने बीजेपी सांसदों को अमर सिंह से मुलाकात को कहा। चाहते थे- बीजेपी सांसद अपनी पार्टी से दगा करें। सरकार को बचाएं। बदले में सपा टिकट और पैसे की बात भी कर लें। अपन रेवती रमण को खरीद-फरोख्त का बिचौलिया न भी मानें। वह दल-बदल विरोधी कानून के खिलाफ तो काम कर ही रहे थे। कमेटी ने रेवती रमण पर सिर्फ अफसोस जताकर पिंड छुड़ा लिया। पर कमेटी चाहती है- संसद पटल पर रिश्वत के पैसे रखने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो। सुहेल हिंदुस्तानी, सुधीन्द्र कुलकर्णी के खिलाफ भी। कमेटी ने एक बात और कही। यों तो अमर सिंह, अहमद पटेल को तलब करने का तौर-तरीका था। कमेटी ने उन्हें न बुलाने के लिए दलील दी- 'अमर सिंह के खिलाफ सीधा सबूत कोई नहीं मिला। तो उन्हें बुलाएं क्यों।' पर अपनी सिफारिश में कमेटी ने लिखा- 'ब्रिटेन की तरह दूसरे सदन के सांसदों को तलब करने के नियम बदले जाएं।' एक बात और। विजय कुमार मल्होत्रा और मोहम्मद सलीम ने कुछ आपत्तियां जताई। उसके आधे हिस्सों पर रपट में किशोर चंद्र देव की कैंची चली। क्यों? यह सूचना के हक का उल्लंघन नहीं? आखिरी बात- स्टिंग आपरेशनों पर भी नकेल की सिफारिश की है कमेटी। ग्यारह सांसद बर्खास्त करने के बाद- 'दिया जब रंज बुतों ने, तो खुदा याद आया।'
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