सोचो, चुनाव नतीजे न आए होते। मुंबई की आतंकी वारदात ही हुई होती। संसद सत्र की शुरूआत होती। तो क्या बुधवार जैसी खामोशी दिखती। दोनों सदनों में सांसद सुधरे हुए बच्चों की तरह बैठे थे। भाजपाई दो राज्य जीतकर भी खामोश थे। पर कांग्रेसी बेंचों पर बधाईयों का आदान-प्रदान हुआ। मुनव्वर हसन की सड़क हादसे में मौत की खबर ने सबको चौंकाया। वीपी सिंह, मुंबई-असम धमाकों में मरने वालों को श्रध्दांजलि हुई। तो मुनव्वर हसन भी जुड़ गए। सो दोनों सदन पहले दिन श्रध्दांजलि देकर उठ गए। उठने से पहले स्पीकर सोमनाथ ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की गुहार लगाई। बोले- 'सदन कठोर कार्रवाई का आह्वान करता है।'
वैसे बात आतंकवाद की चली। तो सदन के बाहर की राय भी बताते जाएं- श्रीश्री रविशंकर जैसे गांधीवादी ने भी कहा- 'जब बात हद से बाहर हो जाए। तो शक्ति का इस्तेमाल करना होगा।' बाबा रामदेव तो और ज्यादा कडे हो गए। उनने कहा- 'पाक नहीं समझ रहा। तो उसे दूसरे तरीके से समझाना पड़ेगा। अब बात हद से बाहर हो चुकी। भारत अपनी फौज का इस्तेमाल अब नहीं करेगा, तो कब करेगा।' बात फौज की चली। तो बताते जाएं- पाक ने तैयारी शुरू कर दी। नेवी को अलर्ट कर दिया। नेवी प्रवक्ता ने बुधवार को कहा- 'भारतीय नौसेना की गतिविधियों को देख, हमने भी नौसेना अलर्ट कर दी है।' पाक की वायुसेना भी अलर्ट। बकौल प्रधानमंत्री गिलानी- 'सेना को पाक की सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना भी चाहिए।' वैसे बात गिलानी की चली। तो बताते जाएं- गिलानी और मुंबई के आतंकियों में एक समानता। दस में से चार आतंकी उसी मुलतान के थे। जहां से गिलानी। पाक भले माने, न माने। सभी आतंकियों के पाक से आने के सबूत मिल चुके। अब नया सबूत सुन लीजिए। आतंकियों ने जिस वायस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल कनेक्शन का इस्तेमाल किया। उसका भुगतान 300 डालर कराची में हुआ था। यह बात एफबीआई, स्काटलैंड यार्ड और मुंबई एसटीएफ जांच में सामने आई। जरदारी, गिलानी भी पाकिस्तानी आतंकवादियों की करतूत से नावाकिफ नहीं। तभी तो धरपकड़ शुरू हुई। अपने विदेश राज्यमंत्री ई. अहमद ने सुरक्षा परिषद में जमात-उद-दावा बैन करने की मांग की। तो पाकिस्तान की घिग्गी बंध गई। पाकिस्तानी राजदूत अब्दुल्ला हुसैन हारून ने हल्फनामा देकर कहा- 'सुरक्षा परिषद बैन लगा दे, तो हम भी लगा देंगे।' वैसे सनद रहे सो बताते जाएं। पाक के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुर्रानी बुधवार को भी कह रहे थे- 'जमात-उद-दावा तो सामाजिक संगठन है। उसने भूकंप के वक्त बहुत मदद की।' लब्बोलुबाब यह- फूंक-फूंककर कदम रख रहा है पाक। अपने यहां भी अब आतंकवाद पर राजनीति के तेवर बदलेंगे। चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी गुमसुम सी दिखी। तो जयंती नटराजन कह रही थी- 'आतंकवाद के खिलाफ जंग में राजनीति नहीं होनी चाहिए।' बाकी आज जब दोनों सदनों में बहस होगी। तो कांग्रेस-बीजेपी के तेवर देखेंगे ही। बात चुनाव नतीजों की चली। तो राजस्थान की बात करते जाएं। वैसे अपन को नहीं लगता जयपुर में वैसा होगा। जैसा अपन ने बुधवार को मुंबई में देखा। वैसे हैं दोनों जगह अशोक। महाराष्ट्र में अशोक चव्हाण। तो राजस्थान में अशोक गहलोत। चव्हाण को सीएम बनाने से कांग्रेस में घमासान। राणे की फेमिली जंग के मूड में आ गई। राणे के बेटे नितेश ने बुधवार को कांग्रेस छोड़ी। तो राणे समर्थकों और अशोक समर्थकों में जमकर मारपीट हुई। सोनिया-राहुल के बैनर फाड़े गए। बात राहुल की चली। तो बताते जाएं- उनने कमान संभाल ली। छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश से हार की रपट तलब की है। वह दोनों प्रदेशों के प्रभारी नहीं। अपन को कांग्रेस का एक और महासचिव बता रहा था- 'इस बार आधे वोटर पैंतीस साल से कम उम्र के होंगे। सो राहुल लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का मुखौटा होंगे।' इसके संकेत रपट तलब से साफ दिखने लगे।
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