लाशों पर राजनीति का नजारा दिखा महाराष्ट्र में

Publsihed: 05.Dec.2008, 20:56

मुंबई में अभी दरियां नहीं उठी। मातम अभी खत्म नहीं हुआ। बुधवार को सारे देश ने शोक मनाया। गेट वे ऑफ इंडिया से लेकर इंडिया गेट तक। बेंगलुरुसे लेकर चेन्नई तक। सब जगह लोगों ने मोमबत्तियां जलाई। राजनीतिज्ञों के खिलाफ गुस्सा हर चेहरे पर था। मोमबत्तियों की लौ अभी ठंडी नहीं पड़ी। कांग्रेस में महासंग्राम शुरू हो गया। मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए कुत्ते-बिल्ली जैसी लड़ाई हुई। जैसे बिल्ली के भागो छिकां फूट पड़ा हो। अपने अभिषेक मनु सिंघवी शुक्रवार को इतरा रहे थे- 'हमने चौबीस घंटे में तीन लोग हटा दिए। पाटिल, देशमुख, आर आर पाटिल। और किसी सरकार ने किसी आतंकी वारदात पर ऐसा नहीं किया।' अभिषेक का इशारा बीजेपी की ओर था। अपन समझ नहीं पा रहे। कांग्रेस का पहला दुश्मन कौन। आतंकवाद या बीजेपी।

अभिषेक के बयान से एक बात तो साफ हो गई। आतंकवाद कांग्रेस के एजेंडे पर नहीं। कांग्रेस के एजेंडे पर सिर्फ बीजेपी। बात भाजपा की चली। तो बताते जाएं। अपन ने अरुण जेटली से कहा- 'यूपीए ने चुनाव से पहले अफजल को फांसी दे दी। तो आपका एजेंडा पिट जाएगा।' जेटली बोले- 'तब कांग्रेस की हालत ऐसे धोबी की होगी। जो न घर का न घाट का। जनता कांग्रेस की चुनावी नौटंकी बेनकाब करेगी।' वैसे चुनावी बिसात बिछनी शुरू हो गई। मुरली देवड़ा ने पेट्रोल की कीमतें घटा दी। पेट्रोल पांच रुपए, डीजल दो रुपए, रसोई गैस बीस रुपए सस्ती। ताकि सनद रहे, सो बता दें। इंटरनेशनल मार्केट के हिसाब से कीमतें नहीं घटी। उस हिसाब से पेट्रोल दस, डीजल पांच रुपए घटता। पर चुनाव को अभी काफी वक्त बाकी। लगते हाथों रसोई गैस की बात बता दें। रसोई गैस अभी भी अच्छी खासी सबसीडी पर। सो रसोई गैस की कीमतें घटाना वोट बैंक की राजनीति। आतंकवाद पर तुष्टिकरण का नतीजा अपन ने देख ही लिया। अपन बात कर रहे थे जंग के मंसूबों की। सत्ता के गलियारों में ऑपरेशन पराक्रम की स्टडी शुरू। अपन याद करा दें- संसद पर हमला हुआ। तो वाजपेयी ने ऑपरेशन पराक्रम किया था। मुशर्रफ पर दुनियाभर का दबाव बढ़ा। तो होश ठिकाने आ गए। कहा- 'सर-जमीं पाक से आतंकवाद नहीं पनपने देंगे।' तब कांग्रेस ने ऑपरेशन पराक्रम की खिल्ली उड़ाई थी। आलोचना की थी। अब कूटनीति के जानकार मनमोहन को बता रहे हैं- ऑपरेशन पराक्रम के फायदे। सो कुछ वैसा ही दोहराने की सुगबुगाहट। वैसे अपन पाक को कितना भी कोसें। पर जब अपन अपना घर नहीं संभाल पा रहे। तो दूसरों को दोष देने का क्या फायदा। यूपीए को चुनावी नफे-नुकसान की फिक्र न हो। तो आतंकवाद पर सख्त हो। आप नोट कर लें। कांग्रेस को अफजल की फांसी से फायदा दिखा। तो चुनाव से पहले देख लेना। राजनीति का घटियापन तो अपन ने मुंबई में देख लिया। अभिषेक इतरा रहे थे- 'हमने 48 घंटे में तीन की बलि ले ली।' पर जिस विलासराव की बलि हुई। उसके विकल्प पर 144 घंटे लगे। लाशों पर राजनीति का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा। नारायण राणे सीएम नहीं बन पाए। तो बगावत कर गए। बोले- 'विलासराव तो मुख्यमंत्री के नाम पर कलंक थे। वही 183 हत्याओं के जिम्मेदार।' वैसे कांग्रेसी राजनीति की तस्वीर दिखा दें। राणे ने भले ही शरद पवार की तारीफ की। पर अपन याद दिला दें- सोनिया ने कोंकण में पवार के खिलाफ राणे का कंधा इस्तेमाल किया था। अब मौका मिला, तो पवार क्यों चूकते। वैसे राणे ने बंदूक की नली अहमद पटेल पर तानी। पटेल तो राणे के रास्ते का कांटा थे ही। पर अबके पटेल ने राहुल के कंधे का इस्तेमाल किया। अशोक चव्हाण सीएम हो गए। एसबी चव्हाण के बेटे हैं अशोक। आज के ही दिन सोलह साल पहले बाबरी ढांचा टूटा। तो चव्हाण देश के गृहमंत्री थे। जो अपने आका नरसिंह राव के साथ बैठकर ढांचा टूटने का सीधा प्रसारण देख रहे थे।

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