आडवाणी तो शुरू से बता रहे थे- 'यह सरकार आतंकवाद को गंभीरता से नहीं ले रही।' पीएम भी होम मिनिस्टर के नकारेपन से खफा थे। पर सोनिया हटाने को राजी नहीं थी। यही हाल विलासराव देशमुख का था। मारग्रेट अल्वा दो साल से समझाती-समझाती खुद नप गई। पर सोनिया नहीं मानी। अब जब नजला खुद पर उतरता दिखा। तो दोनों बलि का बकरा बने। बुधवार को नैनीताल में अपनी कांग्रेस के एक दिग्गज से मुलाकात हुई। जयपुर की चुनावी जिम्मेदारी से लौटे ही थे। गुफ्तगू हुई तो बोले- 'पाटिल का क्या कसूर। वह तो तीन साल पहले ही नकारा साबित हो चुके थे।'
खैर अब एक तरफ नाकामियां छिपाने की कसरत। तो दूसरी तरफ पाक पर निशाना। आईएसआई कम जिम्मेदार नहीं। पर अपन भी कम जिम्मेदार नहीं। अपन ने भी 'पोटा' हटाकर आतंकियों को हरी झंडी दिखाई। अपनी सारी एजेंसियां लुंज-पुंज कर दी। अब फेडरल एजेंसी की हाय तोबा। बात फेडरल एजेंसी की चली। तो बीजेपी बोली- 'बिना फेडरल कानून के एजेंसी किस काम की। कानून भी बनाइए, एजेंसी भी।' वाजपेयी राज में पाक से शांति प्रक्रिया शुरू हुई। अब बीजेपी की मांग- 'शांति प्रक्रिया रोक पाक को चेतावनी दी जाए।' पर बात फेडरल एजेंसी की। तो यह इतना आसान भी नहीं। आखिर लॉ एंड आर्डर स्टेट का मामला। फेडरल एजेंसी के लिए राज्यों की मंजूरी चाहिए। पर सिब्बल कह रहे हैं- 'हम प्रशासनिक आदेश से लागू कर देंगे।' अपन बता दें- कानूनी फच्चर तो फंसेगा ही। पर फिलहाल बात कर रहे थे पाक की। अपना पाकिस्तानी दोस्त अब्दुल क्यूम बेहद खफा। बोला- 'मैरियट होटल पर हमला हुआ। हमने तो रॉ का नाम नहीं लिया। भारत ने पहले दिन ही आईएसआई का राग अलाप दिया।' अपन ने पकड़े गए आतंकी का कबूलनामा बताया। तो उसका एसएमएस आया- 'आखिर आतंकी जीत गए। हम दोनों (भारत-पाक) हार गए। भारतीय मीडिया और आतंकियों ने साबित कर दिया- हम कभी दोस्त नहीं हो सकते। हम दुश्मन थे, हमेशा दुश्मन रहेंगे।' दो पाकिस्तानी संपादकों की दलील भी सुनिए। बुधवार को एनडीटीवी पर बहस में बोले- 'आतंकवाद से पाक भी कम परेशां नहीं। आतंकवादी जितने भारत के दुश्मन, उतने पाक के भी। माना आतंकी कराची से गए होंगे। पर आपकी नेवी क्या कर रही थी। आपका कोस्ट गार्ड क्या कर रहा था। आपकी तटीय सुरक्षा कहां गई। आपकी रॉ-आईबी ने क्या किया। सुरक्षा एजेंसियां कहां थी?' लब्बोलुबाब था- 'गधे का गुस्सा कुम्हार पर क्यों उतार रहा है भारत।' कुछ ऐसी बात राष्ट्रपति जरदारी ने कही। कोंडालीजा राईस तो गुरुवार को पहुंची। पर बुधवार को ही सीएनएन ने गिरफ्तार आतंकी के बारे में पूछा। तो जरदारी बोले- 'भारत ने हमें कोई सबूत नहीं दिया। वह पाकिस्तानी हैं भी या नहीं।' अटल बिहारी वाजपेयी एक जुमला कह गए थे- 'आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता।' अपने सेक्युलर और पाकिस्तानी उसे दोहराते रहे। पर अब जरदारी ने नया जुमला कसा। बोले- 'आतंकवादियों का कोई देश नहीं होता।' यानी वे पाकिस्तानी हों भी, तो पाक नहीं मानेगा। बात कोंडालीजा की चली थी। तो बताते जाएं- पाक जाने से पहले आडवाणी से मिली। आखिर उड़ती चिड़िया के पर पहचान लेता है अमेरिका। सो हवा का रुख पहचानना क्या मुश्किल। चुनाव अब ज्यादा दूर भी नहीं। भारत के चुनाव नजदीक देख अमेरिका को जंग का अंदेशा। इंदिरा 1971 जंग के बाद चुनाव जीती। वाजपेयी 1999 के बाद चुनाव जीते। सो अब कांग्रेस को सिर्फ जंग का सहारा। इसीलिए कोंडालीजा भागी-भागी भारत आई। अपन को समझाकर इस्लामाबाद पहुंची। भारत-पाक जंग के अंदेशे से अमेरिका बेहद भयभीत। पाक फौजें अफगानिस्तान बार्डर से भारतीय बार्डर पहुंची। तो अल कायदा के आतंकी बार्डर पर बफर स्टेट बना लेंगे। अमेरिकी फौज को तब अपने दांत खट्टे होने का अंदेशा। पर आतंकवाद की लड़ाई में पाक बेनकाब हो चुका। सो अमेरिकी रुख पाक पर सख्ती का। सो कोंडालीजा ने पाक को आतंकियों पर शिकंजा कसने को कहा।
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