मुंबई के पुलिस प्रमुख का ताज मुक्त करवाने का दावा झूठा निकला। एनएसजी शुक्रवार को भी दिनभर आतंकियों से जूझती रही। पर राजनीतिक दलों में तू-तू, मैं-मैं शुरू हो गई। अपन ने कल मनमोहन-आडवाणी के मुंबई दौरों की कहानी तो सुनाई ही थी। नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को नया खुलासा किया। वह बोले- 'मैंने गुरुवार को ही महाराष्ट्र के सीएम से बात की थी। हर तरह के सहयोग का वादा किया। मुंबई आने की इच्छा जताई। पर विलासराव ने कहा- आज मत आइए।' मोदी शुक्रवार को बिना पूछे चले गए। पूछने की जरूरत भी नहीं थी। विलासराव की गुजारिश तो सिर्फ गुरुवार के लिए थी। यह गुजारिश आडवाणी से भी की थी। पर मनमोहन को आने से नहीं रोका।
मनमोहन अपने साथ सोनिया और अमर सिंह को भी ले गए। इसकी भनक लगते ही आडवाणी गए। बात शुक्रवार की। मोदी के एटीएस चीफ के घर पहुंचने की खबर मिली। तो विलासराव को भी चौबीस घंटे बाद करकरे याद आ गए। बाकी सारे काम छोड़कर मोदी से पहले करकरे के घर गए। पर मोदी का करकरे के घर जाना ज्यादा महत्वपूर्ण। मालेगांव जांच से मोदी खुश नहीं थे। फिर भी उनने आतंकवाद से लड़ते-लड़ते शहीद होने पर करकरे को नमन किया। सिर्फ इतना नहीं। शहीद सिपाहियों को एक करोड़ सम्मान राशि का ऐलान कर आए। मोदी का ताज होटल जाना तो विलासराव को मिर्ची लगा गया। जब राजनीति आडवाणी को मुंबई न ले जाने से शुरू हो गई थी। तो मोदी क्यों पीछे रहते। उनने मौका-ए-वारदात पर जाकर कहा- 'मनमोहन सिंह के राष्ट्र के नाम संदेश ने निराश किया। आतंकवादियों से लडने में कठोरता का कोई संदेश नहीं दिखा।' मोदी तो मुंबई से राजस्थान पहुंच गए। आडवाणी सुबह ही पहुंच गए थे। पर मोदी के बयान से कांग्रेस दिनभर जली-भुनी रही। विलासराव की जरूर दिल्ली से खाट खड़ी हुई होगी। जो मोदी के पीछे-पीछे ताज होटल पहुंचे। सवालों से घिरे। तो मोदी पर बरसे। राजनीति करने का आरोप लगाया। कांग्रेस के पसीने का अंदाज इस बात से लगाइए। विलासराव के बाद श्रीप्रकाश जायसवाल भी गए। वह भी मोदी पर बरसकर आए। आतंकवाद पर आइना दिखा। तो कांग्रेसियों की रोनी सूरत दिखने लगी। वसुंधरा राजे ने शहीद सिपाहियों को नमन क्या किया। कांग्रेस को उस पर भी ऐतराज। पर अपन याद दिला दें- मोहन चंद्र शर्मा बाटला मुठभेड़ में शहीद हुए। तो दिल्ली में कांग्रेस ने शवयात्रा पर कब्जा कर लिया था। वह तो लालुओं-पासवानों-अमरसिंहों के भड़कने पर पीछे हटी। पर राजनीति की बात सिर्फ अपने यहां तक सीमित नहीं रही। चुनावों में घाटा होते दिखा। तो प्रणव मुखर्जी पाकिस्तान पर चढ़ दौडे। प्रेस कांफ्रेंस में बोले- 'अब तक के संकेत आतंकियों के पाकिस्तान से आने के। पाक ने पहले वाजपेयी से वादा किया। फिर मनमोहन से वादा किया। पर आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप अभी भी जारी।' पाक के विदेश मंत्री शफी महमूद कुरैशी तो अजमेर में ही थे। उनने जवाब देने में एक मिनट नहीं लगाया। बोले- 'आतंकवाद पर राजनीति मत करिए।' दिल्ली लौटकर वीमेन प्रेस क्लब में पहुंचे। तो बोले- 'काबुल विस्फोट का ठीकरा भी हमारे सिर फोड़ा था। पर अब तक एक भी सबूत नहीं दिया। समझौता एक्सप्रेस का आरोप भी हमारे सिर था। पर अब जांच की दिशा बदल चुकी। क्या पता मुंबई की जांच भी दिशा बदल दे। सो आरोपबाजी नहीं होनी चाहिए।' मनमोहन की पाक पीएम गिलानी से बात हुई। तो पीएम बोले- 'आईएसआई चीफ को बात करने भेजो।' राष्ट्रपति जरदारी ने फोन किया। तो वह आईएसआई चीफ अहमद शुजा पाशा को भेजने पर राजी हो गए। वैसे अपन को मनमोहन की ख्वाइश पर हैरानी हुई। वह तो कहते थे- भारत की तरह पाक भी आतंकवाद का शिकार। अपन ने खोज खबर की। तो पता चला- आपसी बयानबाजी से खफा हुआ अमेरिका। तो उसी ने सलाह दी थी। यानी अमेरिकी बीच-बचाव शुरू।
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