संसदीय कमेटी की रपट उलटी होती। तो अपन को कमेटी का मीडिया पर भड़कना जमता। तीन अखबारों की खबर पर कमेटी ने एतराज जताया। खबरें थी 19-20 अगस्त और छह अक्टूबर की। जैसी खबरें थीं, हू-ब-हू वैसी रपट आई। तो कमेटी की मीडिया पर भड़कना चाहिए। या लीक करने वाला अपना मेंबर ढूंढना चाहिए। कमेटी ने भड़ककर स्पीकर से कार्रवाई की सिफारिश की। सोमवार को रपट पेश हुई। तो मंगलवार को स्पीकर की बारी आई। दादा ने मीडिया को लताड़ा। बोले- 'सदन सजा देने के हक का इस्तेमाल कर सकता है। सदन की खामोशी को न उसकी कमजोरी समझा जाए, न अक्षम।' स्पीकर मीडिया पर कार्रवाई करते। तो टकराव का दूसरा दौर शुरू होता। कमेटी की रपट पर सदन में बहस भी शुरू होती। रपट आखिर सर्वसम्मत नहीं। दो मेंबरों ने रपट पर सहमति नहीं दी। मंगलवार को संतोष गंगवार और अनंत कुमार ने यह मुद्दा उठाया भी। पर इससे भी ज्यादा खरी बात- खबरों की।
तीनों खबरें सौ फीसदी सही निकली। कमेटी की रपट अब संसद की लाइब्रेरी का हिस्सा। पचास साल बाद भी कोई पढ़ेगा। तो रपट पर हंसेगा। रपट में 'कमेटी की कार्यवाही' और आखिर में 'नत्थी खबरें' हू-ब-हू एक सी। खबरों में रपट से पहले ही लिख दिया था- नतीजा क्या होगा। नतीजा भी वही निकला। सो कमेटी चेयरमैन किशोर चंद्र देव को गुस्सा आना ही था। पर गुस्सा रपट का हिस्सा बनकर बेनकाब हो गया। सोमवार को मीडिया ने किशोर चंद्र देव को कटघरे में खड़ा किया। तो उनके पास जवाब नहीं थे। मंगलवार को वही हालत जयंती नटराजन की हुई। मीडिया में लीपापोती की खबरों से सकपकाई नटराजन बोली- 'कमेटी की रपट पर टिप्पणीं नहीं करनी चाहिए। मीडिया कमेटी पर लांछन न लगाए।' अपन को जम्हूरियत में तानाशाही सी बू आई। पर बात सिर्फ मीडिया की नहीं। कैश फॉर वोट की दूसरी जंग शुरू हो गई। स्पीकर ने संजीव सक्सेना के साथ सुधीन्द्र कुलकर्णी, सुहेल हिंदुस्तानी को भी जोड़ दिया। कहा- 'मैं तीनों नाम कार्रवाई के लिए गृहमंत्रालय को भेज रहा हूं।' संजीव सक्सेना को बरी करना तो कमेटी के लिए मुश्किल था। जैसा अपन ने कल लिखा- 'कैश फॉर वोट का एपिक सेंटर तो वही था।' बाईस सितम्बर को सुबह नो से दस बजे वह कहां था। उसके मोबाइल प्रोवाईडर से पता लगाना मुश्किल नहीं। अगर वह उस समय अमर सिंह के घर था। तो फैसला हो गया। अर्गल, कुलस्ते ने कमेटी में कहा था- 'अमर सिंह ने हमारी संजीव सक्सेना से मुलाकात करवाई। कहा- यही आएंगे आपके पास।' मोहम्मद सलीम ने कहा- 'मोबाईल जांच क्यों नहीं करवाई?' किशोर चंद्र देव के पास जवाब नहीं। सक्सेना का एपिक सेंटर होना तो कमेटी को भी मानना पड़ा। पर सुधीन्द्र कुलकर्णी, सुहेल हिंदुस्तानी पर कार्रवाई क्यों? क्योंकि उनने स्टिंग ऑपरेशन की साजिश रची। फिर ग्यारह सांसदों को बर्खास्त करते समय रिश्वत देने वालों को क्यों बख्शा? इसे कहते हैं चोर को छोड़ सिपाही को पकड़ना। अपन जयंती नटराजन की मांग से सहमत- 'काले धन का पता लगाया जाए। वह एक करोड़ रुपया आया कहां से?' पर काले धन की जड़ में जाने की बात नहीं हुई। कहा गया- 'एक महीने तक एक करोड़ पर कोई दावा न करे। तो सरकारी फंड में जमा करा दिया जाए।' अपन को लगता है- अब वह मौका आ गया। जब बीजेपी स्पीकर को चिट्ठी लिखकर पैसा थाने में जमा कराने को कहे। पैसा सदन पटल पर रखा गया था। काले धन की खोज सदन को करानी चाहिए। सदन न कराए, तो बीजेपी एफआईआर से पीछे न हटे। तभी बनेगा- कैश फॉर वोट चुनावी मुद्दा। जैसा आडवाणी ने मंगलवार को पार्लियामेंट्री पार्टी की मीटिंग में कहा। उनने कहा- 'आतंकवाद और महंगाई के साथ कैश फॉर वोट को भी चुनावी मुद्दा बनाएं।'
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