Current Analysis

Earlier known as राजनीति this column has been re-christened as हाल फिलहाल.

बीजेपी आलाकमान के नाम खुली चिट्ठी

Publsihed: 26.Oct.2009, 10:09

हमें आपकी नहीं, देश की फिक्र है, आप सुधरोगे तो लोकतंत्र मजबूत होगा। लोकतंत्र मजबूत होगा तो देश मजबूत होगा। आपने अपने अनुभव से कुछ नहीं सीखा तो युवा पीढ़ी के नए तौर तरीकों से राजनीति का क ख ग सीखिए। राहुल गांधी से सीखिए।

वैसे तो आपको आलाकमान कहूं या नहीं। इस पर मन में असमंजस है। पर परंपरा निभाने के लिए आलाकमान शब्द का इस्तेमाल कर रहा हूं। वैसे तो भाजपा में आलाकमान का होना ही हास्यास्पद सा लगता है। राजनीति में आलाकमान शब्द का इस्तेमाल कांग्रेस में ही शोभा देता है। इंदिरा गांधी के जमाने में आलाकमान शब्द चलन में आया। उससे पहले कांग्रेस में सिंडिकेट हुआ करता था, जिसे आम भाषा में सामूहिक नेतृत्व कह सकते हैं। नेहरू की मौत के बाद कांग्रेस में सामूहिक नेतृत्व का चलन शुरू हुआ था। इंदिरा गांधी ने सामूहिक नेतृत्व को तहश-नहश करके कमान अपने हाथ में ली। वह कांग्रेस की आलाकमान बन गई। इस तरह राजनीति में आलाकमान की शुरूआत हुई।

अमेरिकी शर्तें भारत के अनुकूल

Publsihed: 12.Oct.2009, 08:42

पाक में जमहूरियत समर्थक और विरोधी आमने-सामने आ गए हैं क्योंकि अमेरिकी असैन्य आर्थिक मदद की शर्तें सेना और आईएसआई की बेजा हरकतों पर अंकुश लगाने वाली हैं।

सार्क सम्मेलन के मौके पर जनवरी 2004 में पाकिस्तान जाना हुआ तो जियो टीवी के मौजूदा सीईओ आमिर मीर के साथ बातचीत का मौका मिला। होटल के बाहर सड़क पर ही काफी देर टहलते-टहलते बात होती रही। आमिर मीर की भारत से शिकायत थी कि वह पाकिस्तान के चुने हुए शासकों के साथ बातचीत नहीं करता, लेकिन जब-जब सैनिक शासक आ जाता है, बातचीत तेजी से शुरू कर देता है। उनका कहना था कि भारत के इस रवैये ने पाकिस्तान में लोकतंत्र मजबूत नहीं होने दिया। आमिर मीर की यही शिकायत अमेरिका के साथ भी थी।

केंद्र का इम्तिहान नहीं होते विधानसभा चुनाव

Publsihed: 05.Oct.2009, 09:53

हरियाणा में विपक्ष कई हिस्सों में बंटा हुआ है, जिसका कांग्रेस को सीधा फायदा होगा। लेकिन महाराष्ट्र में ऐसी बात नही है। जहां  लोकसभा में सीटें बढ़ने के बावजूद विधानसभा क्षेत्रों में हारी है कांग्रेस। अरुणाचल में चीन की सीमा पर इंफ्रांस्टक्चर की कमी मुख्य चुनावी मुद्दा।

पंद्रहवीं लोकसभा का गठन हुए पांच महीने हो चले हैं। इस बीच हुए विभिन्न विधानसभाओं के उपचुनावों को यूपीए सरकार की लोकप्रियता में गिरावट का पैमाना नहीं माना जा सकता। इन उप चुनावों में मोटे तौर पर उन्हीं राजनीतिक दलों की जीत हुई, जिनकी उन राज्यों में सरकारें थी। यूपीए सरकार की लोकप्रियता या अलोकप्रियता का पैमाना राज्य विधानसभा चुनावों के नतीजों को भी नहीं माना जाना चाहिए।

एनपीटी-सीटीबीटी पर दस्तखत का दबाव

Publsihed: 28.Sep.2009, 10:22

अमेरिका ने भारत को एनपीटी-सीटीबीटी करारों के दायरे में लाने के लिए चौतरफे दबाव शुरू कर दिए हैं। मनमोहन सरकार समझती थी कि एनएसजी और आईएईए से छूट मिलने के बाद अब भारत को इन दोनों प्रस्तावों पर दस्तखत की जरूरत नहीं पड़ेगी।

यह सवाल तो तब से उठ रहा है जबसे मनमोहन सरकार अमेरिका के करीब हुई है। लेकिन अब यह सवाल ज्यादा गंभीरता से पूछा जा रहा है- क्या भारत सीटीबीटी पर दस्तखत कर देगा? नरसिंह राव ने सीटीबीटी पर भी वही रुख अपनाया था, जो इंदिरा गांधी ने एनपीटी के समय अपनाया था। नरसिंह राव के बाद सभी प्रधानमंत्रियों ने भी अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की ओर से तय की गई विदेश नीति अपनाई। इसलिए कोई अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं झुका।

सीमाओं पर लापरवाही

Publsihed: 20.Sep.2009, 21:27

नेहरू की तरह मनमोहन सिंह भी सीमाओं पर चीन की घुसपैठ को वक्त रहते गंभीरता से नहीं ले रहे। अलबत्ता मीडिया पर घुसपैठ को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने का आरोप लगा रहे हैं। सीमाओं पर हमारी सतर्कता और तैयारी आपराधिक लापरवाही की सीमा तक चली गई है।

सितम्बर के शुरू में यह खबरें आनी शुरू हुई थी कि लद्दाख में चीनी सेना घुस आई है। पहले-पहल खबर सिर्फ वायु सीमा अतिक्रमण की थी, पर धीरे-धीरे छनकर खबर आई कि कुछ दिन पहले चीनी सेना ने मेकमाहोन रेखा भी पार की थी। यह घटना एक बार नहीं, बल्कि कई बार हुई थी लेकिन सरकार ने इसे देश की जनता से छुपाए रखा। एक बार चीनी सैनिकों ने हमारे क्षेत्र में घुसकर गडरियों को मारा-पीटा और वहां से चले जाने को कहा। उनका दावा था कि वह क्षेत्र चीन का है, भारत का नहीं। दूसरी बार वे अपने साथ लाल रंग और ब्रुश लाए थे, जिससे उन्होंने पत्थरों पर मेंडरिन भाषा में चीन लिखा।

भावनाएं, विरासत और लोकतंत्र

Publsihed: 07.Sep.2009, 10:17

आंध्र प्रदेश के कांग्रेसी विधायकों की ओर से राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग भावनात्मक तो है ही। कांग्रेस की राजनीतिक विरासत वाली वंशानुगत लोकतंत्र की परंपरा भी है।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री राजशेखर रेड्डी की हेलीकाप्टर दुर्घटना में हुई मौत ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। दुर्घटना से जुड़े तकनीकी सवाल तो अपनी जगह हैं, लेकिन राजनीतिक सवाल ज्यादा गंभीर हैं। कांग्रेस के 156 में से 148 विधायकों ने राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग करके लोकतांत्रिक ढांचे की नई परिभाषा गढ़ दी है।

विदेशनीति में भटकाव

Publsihed: 26.Jul.2009, 20:39

मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में देश की विदेशनीति में भारी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। नीति का झुकाव अमेरिका की तरफ दिखाई दे रहा है और पाकिस्तान के मामले में कूटनीतिक विफलताएं सामने आ रही हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने पर आम धारणा थी कि विदेशनीति का झुकाव अमेरिका की तरफ हो जाएगा। जवाहर लाल नेहरू से लेकर नरसिंह राव तक देश की विदेशनीति गुटनिरपेक्ष की बनी रही थी। हालांकि नेहरू से लेकर नरसिंह राव तक कांग्रेस की हर सरकार का झुकाव दोनों में से एक गुट सोवियत संघ की तरफ बना रहा था। आम धारणा के विपरीत वाजपेयी सरकार की विदेशनीति अपेक्षाकृत ज्यादा गुटनिरपेक्ष साबित हुई।

ब्लूचिस्तान का जिक्र मनमोहन की विफलता

Publsihed: 19.Jul.2009, 20:41

ऐसा नहीं है कि मनमोहन सिंह ने  बिना कुछ हासिल किए ही बातचीत दुबारा शुरु कर दी है। पाकिस्तान ने मुंबई हमले की पांच साजिश कर्ताओं के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। लेकिन ब्लूचिस्तान का साझा बयान में  जिक्र कूटनीतिक विफलता का  सबूत है।

कई बार ऐसा होता है, जो होता है वह दिखता नहीं, जो दिखता है वह होता नहीं। सरसरी नजर में 16 जुलाई 2009 को भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की ओर से मिस्र में जारी किया गया सचिव स्तरीय बातचीत शुरु करने का साझा बयान भारत की करारी हार दिखाई देता है। पाकिस्तान ने ऐसे कोई ठोस सबूत नहीं दिए थे, जिनसे यह लगता हो कि वह मुंबई पर आतंकवादी हमला करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर रहा है। मुंबई पर आतंकवादी हमले के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान से हो रही समग्र वार्ता को बंद कर दिया था।

जाहिर होने लगा एटमी करार का सच

Publsihed: 13.Jul.2009, 00:23

ईरान-पाक-भारत गैस पाइप लाईन को रद्द करने का अमेरिकी मकसद पूरा होता दिखाई दे रहा है। पेट्रोलियम मंत्रालय पाइप लाईन को घाटे का सौदा बताकर खारिज करने के पक्ष में है। यही था अमेरिका का मकसद।

अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री बनने के पौने दो महीने बाद ही 11 मई 1998 को अपने घर पर जल्दबाजी में बुलाई एक प्रेस कांफ्रेंस में देश के परमाणु शक्ति संपन्न हो जाने का ऐलान किया था। उस समय हम कांग्रेस दफ्तर में थे और प्रेस कांफ्रेंस की जानकारी मिलते ही प्रधानमंत्री आवास सात रेस कोर्स की ओर दौड़े थे। वाजपेयी के लिए रखी कुर्सी के पीछे दोनों ओर राष्ट्रीय ध्वज लगाए गए थे। तब तक ऐसा मंच अमेरिकी राष्ट्रपति की प्रेस कांफ्रेंस में दिखाई देता था,

भाजपा, कांग्रेस और लिब्राहन आयोग

Publsihed: 05.Jul.2009, 20:39

बाबरी ढांचा टूटने के साढ़े सोलह साल बाद जस्टिस एमएस लिब्राहन ने तीस जून को अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी। जबकि आयोग के अध्यक्ष के नाते उनकी नियुक्ति ढांचा टूटने के दसवें दिन सोलह दिसंबर 1992 को हो गई थी। तीन-तीन महीने करके उन्होंने 48 बार अपना कार्यकाल बढ़वाया। भारतीय संसद के इतिहास में किसी भी आयोग ने इतना लंबा समय नहीं लिया। ढांचा टूटने और आयोग के गठन की घटना कांग्रेस शासन में हुई थी और रिपोर्ट भी कांग्रेस शासन में ही आई। सरकार किसी भी आयोग की रिपोर्ट ज्यादा से ज्यादा छह महीने अपने पास रख सकती है। छह महीने में उसे आयोग की रिपोर्ट संसद पटल पर रखनी ही होगी। मनमोहन सिंह सरकार फूंक-फूंककर कदम रखना चाहती है क्योंकि वह पहले भांप लेना चाहती है कि इससे राजनीतिक फायदा और नुकसान क्या होगा।